(भाग – 13)
आपने अभी तक “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”, “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3) हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)” , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4) लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा” , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5) यमनोत्री धाम की यात्रा”, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन”, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –7) गंगोत्री धाम की यात्रा", आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –8) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -1"), आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –9) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -2", आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –10) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -3"), आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –11) ऊखीमठ की यात्रा" एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –12) बद्रीनाथ धाम की यात्रा -1" में पढ़ा कि कैसे ब्लॉग एवं अन्य माध्यम से जानकारी जुटा कर मैंने यात्रा से संबंधित एक बारह दिवसीय कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाई. जब विश्वसनीय वेब-साईट से पता चला कि सड़क एवं मौसम यात्रा के लिए अनुकूल है तब जाकर हमलोग ने अपनी यात्रा प्रारंभ की. “हर की पौड़ी”, ऋषिकेश, यमनोत्री, बड़कोट, उत्तरकाशी, गंगोत्री यात्रा एवं सिद्ध गुरु बाबा चौरंगीनाथ के मंदिर दर्शन एवं ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ धाम दर्शन के के साथ ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ जी का रुद्राभिषेक करने के बाद श्री केदारनाथ जी की शीतकालीन निवास स्थल के नैनाभिराम दृश्य एवं विशाल बद्री के दर्शन कर रात में श्री बद्रीनाथ के एक गेस्ट हाउस में रुके.
अब आगे ....
श्री बद्रीनाथ जी का दर्शन सुबह 7 से 8 बजे तक आम जनता के लिए सुलभ है. अन्य सभी तीर्थ स्थल दर्शन से पहले वाली रात को हमलोग जल्दी खाना खा कर सो जाते थे इसलिए सुबह उठने में कभी दिक्कत नहीं हुई. परन्तु कल रात सोने में करीब रात के 11 बजे गए थे अतः देर से उठने के कारण हमलोग सपरिवार सुबह 7:30 बजे मंदिर पहुँच कर दर्शन हेतु कतार में खड़े हुए. सिंह द्वार में प्रवेश करने तक बहुत अव्यवस्था थी परन्तु सभा मंडप के बाद कतार सीधी हो गई और सीधे हमलोग गर्भगृह के प्रवेश द्वार से अंदर गए तो दाहिने तरफ श्री बद्री-विशाल की प्रतिमा देख कर हम सभी अभिभूत हो गए. वहाँ के सेवादार भक्तों को श्री बद्रीनाथ जी का दर्शन के लिए चंद सेकेंड ही देते हैं. हमलोग को भी दर्शन के लिए चंद सेकेंड मिले उसके बाद सेवादारों द्वारा आगे बढ़ने के लिए धकेल दिए गए, परन्तु गर्भगृह बहुत बड़ा था. मूर्ति और दर्शन मंडप के बीच लगभग 12 फीट की जगह थी, तो हमलोग थोड़ा पीछे खड़े हो गए और जी भर कर श्री बद्री-विशाल जी का दर्शन किए. गर्भगृह से बाहर निकलने पर मैंने देखा कि निकास द्वार पर भी भक्तों की कतार लगी थी. बाद में पता चला की यह कतार बुजुर्गों के लिए है, यह अलग बात थी कि अनुचित ढ़ंग से कुछ भक्तों का प्रवेश इस द्वार से हो रहा था, जिसके कारण एक बुजुर्ग वहाँ के सेवादार से उलझ पड़े. खैर ! जब हम गर्भगृह के निकास द्वार से निकले तो सामने श्री महालक्ष्मी मंदिर दिखा. वहाँ महिला भक्तों की भीड़ जमा थी. वहाँ भीड़ होने का मुख्य कारण उस मंदिर के पुरोहित द्वारा रूपए लेकर श्री महालक्ष्मी जी के भेँट किए गए साड़ीयों को देना था. महिला भक्तों को मिली साड़ी की किस्म पुरोहित के हाथ में पड़े रूपए के आधार पर निर्धारित था. मेरी भी पत्नी आशीर्वाद स्वरुप साड़ी को लेने में सफल हुई. हमलोग गर्भगृह का परिकर्मा करने हेतु आगे बढ़े तो अगले भवन में भी विभिन्न प्रकार के मंदिर में भेँट किए गए कपड़े जैसे- धोती, तौलिया, साड़ी, पैन्ट-शर्ट आदि कार्यकर्ताओं द्वारा बेचे जा रहे थे. इसके बाद परिकर्मा कर हमलोग श्री बद्रिनाथ जी का आशीर्वाद एवं प्रसाद ले कर बाहर आ गए. बाहर कल-कल बहती अलकनंदा का सौदर्य अनुपम है. नारद कुंड एवं तप्त कुंड होते हुए अलकनंदा जी की भी एक परिक्रमा हमलोगों ने किया फिर नास्ता कर भारत की आखरी गाँव माणा के लिए रवाना हुए.
श्री बद्रीनाथ मंदिर के आस पास का प्राकृतिक नज़ारा अद्वितीय है. श्री बद्रीनाथ धाम को धरती का बैकुंठ भी कहते है. यह मंदिर, नर और नारायण पर्वत के गोद में बसा है जिसके पाँव स्वयं अलकनंदा नदी पखारती रहती हैं. मंदिर के सामने नर पर्वत एवं पार्श्व में नारायण पर्वत जो नीलकंठ पर्वत की चोटी के पीछे है. मंदिर की बाहरी संरचना का वास्तुकला हिन्दू मंदिर वास्तुकला से भिन्न है. मंदिर की खिड़कियाँ, प्रवेश द्वार , दीवारें की संरचना एवं उस पर किए गए चमकीले रंग-रोगन किसी बौद्ध विहार की याद दिलाती है। ऐसे भी कहा जाता है कि 8 वीं शताब्दी तक यह मंदिर बौद्ध विहार बना रहा जब आदिशंकराचार्य ने अलकनंदा नदी से श्री बद्रीनाथ जी की शालिग्राम पत्थर से बनी मूर्ति को निकाला और इसे तप्त कुंड के गर्म झरनों के पास एक गुफा में स्थापित किया। बाद में आदिशंकराचार्य ने बौद्धों को यहाँ से एक परमार शासक राजा कनक पाल की मदद से निष्कासित कर दिया और उसके बाद परमार शासक ने इस मंदिर में मूर्ति को स्थापित किया। मंदिर की वर्तमान संरचना गढ़वाल के राजाओं द्वारा बनाई गई थी। मंदिर में तीन खंड हैं - गर्भगृह, दर्शन मंडप, और सभा मंडप।गर्भगृह में सात मूर्तियाँ हैं . मुख्य मूर्ति भगवान बद्रीनाथ जी का है उनके बायें भाग में छोटी सी मूर्ति नारदजी की है। नारदजी के पृष्ठ भाग में चांदी की दिव्य मूर्ति उद्धव जी की है. नारद जी के बायें भाग मे शंख-चक्र-पद्म धारण किये, पद्मासन के स्थित नारायण भगवान के दर्शन होते हैं। भगवान नारायण के बायें भाग में बाएँ पैर के अंगूठा पर खड़े नर की मूर्ति है. भगवान बदरीनाथजी के दायें भाग में गरुड़जी की मूर्ति है और इनके दायीं तरफ श्री कुबेरजी की मूर्ति है।
श्री बद्रीनाथ मंदिर के दक्षिणावर्ती परिक्रमा में क्रमानुसार मौजूद प्रमुख्य स्थानों की सूची:
सबसे पहले भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ जी की मूर्ति बद्रीनाथ मंदिर के सिंह द्वार में हैं।हनुमान जी की एक विशाल दक्षिणीमुखी मूर्ति, श्री गणपति जी की मूर्ति, दान-पर्ची कार्यालय, श्री महालक्ष्मी मंदिर, वस्त्र भण्डार, श्री शंकरचार्य जी की गद्दी, प्रसाद विक्रेता, धर्मशिला (भक्त यहां गौ दान करते हैं.), जब भगवान बद्रीनाथ और अन्य देवताओं की मूर्तियां दूध, चंदन, दही, केसर आदि के साथ रावल द्वारा नहाए जाते हैं तो गर्भगृह के पीछे जल को चरणामृत के नाम से जाना जाता है., घंटाकर्ण की मूर्ति (इनको बद्रीनाथ मंदिर के क्षेत्रपाल कहा जाता है.) और अंत में यज्ञ कुंड (भगवान बद्रीनाथ के लिए यज्ञ यहां किया जाता है.)
भगवान् बद्री जी का शीतकालीन निवास जोशी मठ में होता है. स्थानीय भाषा में बद्री का अर्थ बेर है. कहा जाता है कि जब भगवान् विष्णु तपस्या करने के लिए यहाँ आए तो लक्ष्मी जी उनको प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए बेर का पेड़ बन गई तभी से भगवान् विष्णु को बद्रीनाथ कहा जाने लगा.
शेष 21-12-2018 के अंक में .................................
इस यात्रा के दौरान नजारों का लुत्फ़ आप नीचे दिए गए चित्रों से लें :
अब आगे ....
श्री बद्रीनाथ जी का दर्शन सुबह 7 से 8 बजे तक आम जनता के लिए सुलभ है. अन्य सभी तीर्थ स्थल दर्शन से पहले वाली रात को हमलोग जल्दी खाना खा कर सो जाते थे इसलिए सुबह उठने में कभी दिक्कत नहीं हुई. परन्तु कल रात सोने में करीब रात के 11 बजे गए थे अतः देर से उठने के कारण हमलोग सपरिवार सुबह 7:30 बजे मंदिर पहुँच कर दर्शन हेतु कतार में खड़े हुए. सिंह द्वार में प्रवेश करने तक बहुत अव्यवस्था थी परन्तु सभा मंडप के बाद कतार सीधी हो गई और सीधे हमलोग गर्भगृह के प्रवेश द्वार से अंदर गए तो दाहिने तरफ श्री बद्री-विशाल की प्रतिमा देख कर हम सभी अभिभूत हो गए. वहाँ के सेवादार भक्तों को श्री बद्रीनाथ जी का दर्शन के लिए चंद सेकेंड ही देते हैं. हमलोग को भी दर्शन के लिए चंद सेकेंड मिले उसके बाद सेवादारों द्वारा आगे बढ़ने के लिए धकेल दिए गए, परन्तु गर्भगृह बहुत बड़ा था. मूर्ति और दर्शन मंडप के बीच लगभग 12 फीट की जगह थी, तो हमलोग थोड़ा पीछे खड़े हो गए और जी भर कर श्री बद्री-विशाल जी का दर्शन किए. गर्भगृह से बाहर निकलने पर मैंने देखा कि निकास द्वार पर भी भक्तों की कतार लगी थी. बाद में पता चला की यह कतार बुजुर्गों के लिए है, यह अलग बात थी कि अनुचित ढ़ंग से कुछ भक्तों का प्रवेश इस द्वार से हो रहा था, जिसके कारण एक बुजुर्ग वहाँ के सेवादार से उलझ पड़े. खैर ! जब हम गर्भगृह के निकास द्वार से निकले तो सामने श्री महालक्ष्मी मंदिर दिखा. वहाँ महिला भक्तों की भीड़ जमा थी. वहाँ भीड़ होने का मुख्य कारण उस मंदिर के पुरोहित द्वारा रूपए लेकर श्री महालक्ष्मी जी के भेँट किए गए साड़ीयों को देना था. महिला भक्तों को मिली साड़ी की किस्म पुरोहित के हाथ में पड़े रूपए के आधार पर निर्धारित था. मेरी भी पत्नी आशीर्वाद स्वरुप साड़ी को लेने में सफल हुई. हमलोग गर्भगृह का परिकर्मा करने हेतु आगे बढ़े तो अगले भवन में भी विभिन्न प्रकार के मंदिर में भेँट किए गए कपड़े जैसे- धोती, तौलिया, साड़ी, पैन्ट-शर्ट आदि कार्यकर्ताओं द्वारा बेचे जा रहे थे. इसके बाद परिकर्मा कर हमलोग श्री बद्रिनाथ जी का आशीर्वाद एवं प्रसाद ले कर बाहर आ गए. बाहर कल-कल बहती अलकनंदा का सौदर्य अनुपम है. नारद कुंड एवं तप्त कुंड होते हुए अलकनंदा जी की भी एक परिक्रमा हमलोगों ने किया फिर नास्ता कर भारत की आखरी गाँव माणा के लिए रवाना हुए.
श्री बद्रीनाथ मंदिर के आस पास का प्राकृतिक नज़ारा अद्वितीय है. श्री बद्रीनाथ धाम को धरती का बैकुंठ भी कहते है. यह मंदिर, नर और नारायण पर्वत के गोद में बसा है जिसके पाँव स्वयं अलकनंदा नदी पखारती रहती हैं. मंदिर के सामने नर पर्वत एवं पार्श्व में नारायण पर्वत जो नीलकंठ पर्वत की चोटी के पीछे है. मंदिर की बाहरी संरचना का वास्तुकला हिन्दू मंदिर वास्तुकला से भिन्न है. मंदिर की खिड़कियाँ, प्रवेश द्वार , दीवारें की संरचना एवं उस पर किए गए चमकीले रंग-रोगन किसी बौद्ध विहार की याद दिलाती है। ऐसे भी कहा जाता है कि 8 वीं शताब्दी तक यह मंदिर बौद्ध विहार बना रहा जब आदिशंकराचार्य ने अलकनंदा नदी से श्री बद्रीनाथ जी की शालिग्राम पत्थर से बनी मूर्ति को निकाला और इसे तप्त कुंड के गर्म झरनों के पास एक गुफा में स्थापित किया। बाद में आदिशंकराचार्य ने बौद्धों को यहाँ से एक परमार शासक राजा कनक पाल की मदद से निष्कासित कर दिया और उसके बाद परमार शासक ने इस मंदिर में मूर्ति को स्थापित किया। मंदिर की वर्तमान संरचना गढ़वाल के राजाओं द्वारा बनाई गई थी। मंदिर में तीन खंड हैं - गर्भगृह, दर्शन मंडप, और सभा मंडप।गर्भगृह में सात मूर्तियाँ हैं . मुख्य मूर्ति भगवान बद्रीनाथ जी का है उनके बायें भाग में छोटी सी मूर्ति नारदजी की है। नारदजी के पृष्ठ भाग में चांदी की दिव्य मूर्ति उद्धव जी की है. नारद जी के बायें भाग मे शंख-चक्र-पद्म धारण किये, पद्मासन के स्थित नारायण भगवान के दर्शन होते हैं। भगवान नारायण के बायें भाग में बाएँ पैर के अंगूठा पर खड़े नर की मूर्ति है. भगवान बदरीनाथजी के दायें भाग में गरुड़जी की मूर्ति है और इनके दायीं तरफ श्री कुबेरजी की मूर्ति है।
श्री बद्रीनाथ मंदिर के दक्षिणावर्ती परिक्रमा में क्रमानुसार मौजूद प्रमुख्य स्थानों की सूची:
सबसे पहले भगवान विष्णु के वाहन गरुड़ जी की मूर्ति बद्रीनाथ मंदिर के सिंह द्वार में हैं।हनुमान जी की एक विशाल दक्षिणीमुखी मूर्ति, श्री गणपति जी की मूर्ति, दान-पर्ची कार्यालय, श्री महालक्ष्मी मंदिर, वस्त्र भण्डार, श्री शंकरचार्य जी की गद्दी, प्रसाद विक्रेता, धर्मशिला (भक्त यहां गौ दान करते हैं.), जब भगवान बद्रीनाथ और अन्य देवताओं की मूर्तियां दूध, चंदन, दही, केसर आदि के साथ रावल द्वारा नहाए जाते हैं तो गर्भगृह के पीछे जल को चरणामृत के नाम से जाना जाता है., घंटाकर्ण की मूर्ति (इनको बद्रीनाथ मंदिर के क्षेत्रपाल कहा जाता है.) और अंत में यज्ञ कुंड (भगवान बद्रीनाथ के लिए यज्ञ यहां किया जाता है.)
भगवान् बद्री जी का शीतकालीन निवास जोशी मठ में होता है. स्थानीय भाषा में बद्री का अर्थ बेर है. कहा जाता है कि जब भगवान् विष्णु तपस्या करने के लिए यहाँ आए तो लक्ष्मी जी उनको प्राकृतिक आपदा से बचाने के लिए बेर का पेड़ बन गई तभी से भगवान् विष्णु को बद्रीनाथ कहा जाने लगा.
शेष 21-12-2018 के अंक में .................................
इस यात्रा के दौरान नजारों का लुत्फ़ आप नीचे दिए गए चित्रों से लें :
भाग -1 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”
भाग -3 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
भाग -4 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4) लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा”
भाग -5 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5) यमनोत्री धाम की यात्रा”
भाग -6 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन”
भाग -7 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –7) गंगोत्री धाम की यात्रा)
भाग -8 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –8) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -1
भाग -9 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –9) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -2
भाग -10 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –10) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -3
भाग -11 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –11) ऊखीमठ की यात्रा
भाग -12 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –12) बद्रीनाथ धाम की यात्रा -1
© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
No comments:
Post a Comment
मेरे पोस्ट के प्रति आपकी राय मेरे लिए अनमोल है, टिप्पणी अवश्य करें!- आपका राकेश श्रीवास्तव 'राही'