(भाग – 7)
गंगोत्री धाम की यात्रा
आपने अभी तक “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”, “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3) हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)” , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4) लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा” , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5) यमनोत्री धाम की यात्रा” एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन”में पढ़ा कि कैसे ब्लॉग एवं अन्य माध्यम से जानकारी जुटा कर मैंने यात्रा से संबंधित एक बारह दिवसीय कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाई. जब विश्वसनीय वेब-साईट से पता चला कि सड़क एवं मौसम यात्रा के लिए अनुकूल है तब जाकर हमलोग ने अपनी यात्रा प्रारंभ की. “हर की पौड़ी”, ऋषिकेश, यमनोत्री, बड़कोट एवं उत्तरकाशी की मनोरम यादों को दिल में सहेज कर खाना खाने के बाद अपने अगले पड़ाव गंगोत्री की अलस-भोर में यात्रा करने हेतु रात्रि विश्राम के लिए अपने-अपने बिस्तर पर सो गए.
अब आगे ....
उत्तराखण्ड गढ़वाल क्षेत्र के पर्यटन स्थल में उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग द्वारा सुंदर लकड़ी के मंडप बनाकर उसके चारों दीवार पर हिंदी और अंग्रेजी में वहाँ के बारे में संक्षिप्त जानकारी एवं अपने विभाग का प्रचार लिखा होता है जो मुझे बहुत अच्छा लगा. ऐसा ही एक मंडप हर्षिल में दिखा जिस के एक दीवार पर लिखा था –“उत्तरकाशी जिले में यह गाँव और छावनी क्षेत्र गंगा भागीरथी नदी के किनारे हिन्दू तीर्थ गंगोत्री के मार्ग में है. हर्षिल को एक प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्र के लिए भी जाना जाता है. यहाँ ब्रिटिशर विलसन ने 19 वीं शताब्दी में प्रथम सेब के पोधे का वृक्षारोपण किया.
हर्षिल एक अदुषित एवं अदृश्य उत्तराखंड का आभूषण है जो कि शांति एवं निस्तब्धता की आकांक्षा रखने वाले लोगो को हिमालय की गोद में आकर्षित करता है. घने देवदार के जंगल, भागीरथी नदी का बहता पानी, पंक्षियों की चहचहाहट, स्वास्थ्यवर्धक वातावरण एवं शांत माहौल इस छोटे से एकांत गंतव्य में प्रकाश डालते है. हर्षिल के आस-पास के अनेक क्षेत्रों के मार्गों में आप साहसिक ट्रेकिंग कर सकते है. हर्षिल खूबसूरत घाटी में स्थित है.” तस्वीरों के माध्यम से आप भी देखें:
हर्षिल से जब हमलोग चले तो हलकी फुहारों वाली बारिश हो रही थी और यह मौसम गंगोत्री से लौटने तक कायम थी. सुबह 11 बजे हमलोग गंगोत्री पहुँचे . ठंडी हवा बह रही थी और भागीरथी नदी भी तीव्र वेग से बलखाती हुई बह रही थी. नदी का पानी बर्फ से भी ठंडा था. नदी में डुबकी लगाने की हिम्मत किसी की नहीं हो रही थी. वहाँ स्नान कर कपड़े बदल रहे एक सज्जन ने कहा "भाई साहब मेरा यह मग लीजिए और जल्दी-जल्दी तीन-चार मग पानी अपने सर के ऊपर डाल लीजिए. जब शारीर का तापमान पानी के तापमान के बराबर हो जाएगा फिर आपको नहाने में ठंड नहीं लगेगी." यह सुनकर मैंने हिम्मत की और सुझाव को पालन करते हुए स्नान किया. यकीन मानिए स्नान के बाद अद्भुत आनंद एवं आत्मिक शांति की अनुभूति हो रही थी. मेरे स्नान करने के बाद सभी हिम्मत करके स्नान किए. उसके बाद भागीरथ तपोस्थली के पास पूजा कर माँ गंगे के मंदिर का दर्शन किया और फिर हमलोग खाना खाने के बाद दोपहर को दो बजे गंगोत्री से चल पड़े और हेरिटेज हैली पैड हर्षिल रुकते हुए उत्तरकाशी के होटल पहुँचे.
यहाँ गंगोत्री और उत्तरकाशी के होटल में दो अलग-अलग घटनाओं का मुझे जिक्र करना जरूरी है. पहली घटना मानवीय मूल्यों से जुड़ी है - जब हम स्नान कर कपड़ा बदल रहे थे तो मैंने देखा कि भागीरथी नदी के दुसरे किनारे पर एक खच्चर दलदल में फँस गया था जिसे तीस-चालीस लोगों की कड़ी मशक्कत के बाद उस खच्चर को सकुशल निकाला गया. नीचे तस्वीर में देखें .
भाग -1 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”
भाग -2 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”
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आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3) हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)”
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आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4) लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा”
भाग -5 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5) यमनोत्री धाम की यात्रा”
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आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन”
मैंने इस यात्रा के दौरान महसूस किया कि अगर यात्रा में सम्मलित सभी सदस्य अनुशासित एवं समयनिष्ठ रहेंगे तभी आपकी यात्रा मंगलमय और सुखदायक रहेगा और सौभाग्य से इस यात्रा के दौरान बड़ों से लेकर छोटे बच्चे तक इस सूत्र का पालन कर रहे थे जिससे अभी तक हमलोगों की यात्रा सुखद और आरामदायक रही. इसी सूत्र को पालन करते हुए हम सबों ने सुबह साढ़े पाँच बजे गंगोत्री के की यात्रा शुरू कर दी. अब पहाड़ों के नज़ारे हमें आकर्षित तो कर ही रहे थे और साथ ही अलौकिक आत्मिक शांति भी प्रदान कर रह थे परन्तु जो उत्सुकता पहले थी उसमें कमी जरूर आ गई थी. उत्तरकाशी के मुख्य-बाज़ार से होते हुए लगभग आधे घंटे के बाद हमलोगों को मनेरी बाँध और वहाँ बसे बस्ती देखने को मिला. वहाँ का दृश्य बरबस अपनी ओर आकर्षित कर रहा था और मैंने भी उस मनमोहक दृश्य को अपने कैमरे में कैद कर लिया, आप भी देखें.
इस छोटे चार धाम यात्रा की जानकारी जब इंटरनेट से हमलोग जुटा रहे थे तो पता चला था कि यात्री एवं वाहन का पंजीकरण कराना होता है. इसी क्रम में मुझे उत्तराखण्ड टूरिज्म का वेब साईट http://www.onlinechardhamyatra.com/ मिला जहाँ प्रति यात्री 50 रु. पंजीकरण शुल्क लिया जाता है. जब मैंने अपनी निजी संबंधों के माध्यम से जानकारी हासिल की तो पता चला कि निजी वाहन के पंजीकरण की आवश्यकता नहीं है और यात्री पंजीकरण हरिद्वार स्टेशन या रास्ते में कहीं पर हो जायेगी. तो हमलोगों ने अपना आधार कार्ड साथ में रख लिए. अभी तक तो कहीं भी किसी सरकारी कर्मचारी ने हमलोगों की पहचान की जाँच नहीं की थी परन्तु जैसे ही मनेरी बाँध को देखते हुए आगे बढ़े तो उत्तराखंड के सरकारी कर्मचारी ने एक डायवर्सन लगा रखा था. वहीँ पर एक मोबाइल वैन में यात्री पंजीकरण कंप्यूटर के द्वारा हो रहा था. जिसके लिए आधार कार्ड की जरूरत थी अर्थात बायोमैट्रिक के द्वारा यात्री पंजीकरण हो रहा था. स्वच्छ भारत अभियान के तहत टेंटों वाले शौचालय यात्रियों के लिए उपलब्ध थे. हम सभी ने वहाँ अपना-अपना पंजीकरण जो पूर्णतः निःशुल्क था, करा कर आगे बढ़े तो आगे ट्रैफिक पुलिस ने हमलोगों की जाँच की. इन सब में लगभग एक घंटा लग गया.
भागीरथी नदी एवं हिमालय पर्वत का साथ हमलोगों को उत्तरकाशी से लगातार मिल रहा था. नयनाभिराम दृश्यों को निहारते हुए हमारा सफ़र आराम से कट रहा था. रास्ते में गंगनानी का गर्म कुण्ड मिला. तीर्थयात्रियों का वहाँ हुजूम था. पार्किंग की कोई व्यवस्था नहीं होने के कारण वहाँ आधे घंटे के जाम का सामना करना पड़ा. उसके बाद हर्षिल पहुँचने से बीस मिनट पहले भेड़ों के झुण्ड ने लगभग दस मिनट रास्ता रोके रखा तब जाकर हमलोग हर्षिल पहुँचे. गंगनानी के बाद प्रकृति में एक नया आकर्षण जुड़ गया और वह था छोटे-बड़े झरनें. इस यात्रा में हर्षिल देखने का कार्यक्रम नहीं था परन्तु मंदाकिनी जलप्रपात जो सड़क के किनारे पर था, को देख कर सभी मचल उठे और वहाँ के आस-पास का स्थलों के सौन्दर्य का नैनों से रसपान किया. हर्षिल उत्तराखंड के सबसे खूबसूरत और सुरम्य घाटियों में से एक है और इसे मिनी स्विट्ज़रलैंड के रूप में भी जाना जाता है। गंगोत्री मंदिर यहाँ से लगभग 22 किमी की दूरी पर है. यहाँ पर फ़िल्म “राम तेरी गंगा मैली” की शूटिंग हुई थी. हर्षिल में प्राकृतिक नजारों का लुफ़्त उठा कर हमलोगों ने होटल मधुबन में गर्मा-गर्म आलू के पराठों का जम कर नास्ता किया और गंगोत्री के लिए निकले, अभी मिनट भी नहीं बिता था कि एक भागीरथी नदी के किनारे हेरिटेज हैली पैड और उसी के पास एक झरना को देख कर सभी फिर से मचलने लगे तो सभी को मैंने आश्वासन दिया कि हमलोग जब लौट कर आयेंगे तो यहाँ कुछ पल बिताएंगे और वैसा मैंने किया भी . आप तस्वीरों के माध्यम से हर्षिल का आनंद लें.
उत्तराखण्ड गढ़वाल क्षेत्र के पर्यटन स्थल में उत्तराखण्ड पर्यटन विभाग द्वारा सुंदर लकड़ी के मंडप बनाकर उसके चारों दीवार पर हिंदी और अंग्रेजी में वहाँ के बारे में संक्षिप्त जानकारी एवं अपने विभाग का प्रचार लिखा होता है जो मुझे बहुत अच्छा लगा. ऐसा ही एक मंडप हर्षिल में दिखा जिस के एक दीवार पर लिखा था –“उत्तरकाशी जिले में यह गाँव और छावनी क्षेत्र गंगा भागीरथी नदी के किनारे हिन्दू तीर्थ गंगोत्री के मार्ग में है. हर्षिल को एक प्रमुख सेब उत्पादक क्षेत्र के लिए भी जाना जाता है. यहाँ ब्रिटिशर विलसन ने 19 वीं शताब्दी में प्रथम सेब के पोधे का वृक्षारोपण किया.
हर्षिल एक अदुषित एवं अदृश्य उत्तराखंड का आभूषण है जो कि शांति एवं निस्तब्धता की आकांक्षा रखने वाले लोगो को हिमालय की गोद में आकर्षित करता है. घने देवदार के जंगल, भागीरथी नदी का बहता पानी, पंक्षियों की चहचहाहट, स्वास्थ्यवर्धक वातावरण एवं शांत माहौल इस छोटे से एकांत गंतव्य में प्रकाश डालते है. हर्षिल के आस-पास के अनेक क्षेत्रों के मार्गों में आप साहसिक ट्रेकिंग कर सकते है. हर्षिल खूबसूरत घाटी में स्थित है.” तस्वीरों के माध्यम से आप भी देखें:
हर्षिल से जब हमलोग चले तो हलकी फुहारों वाली बारिश हो रही थी और यह मौसम गंगोत्री से लौटने तक कायम थी. सुबह 11 बजे हमलोग गंगोत्री पहुँचे . ठंडी हवा बह रही थी और भागीरथी नदी भी तीव्र वेग से बलखाती हुई बह रही थी. नदी का पानी बर्फ से भी ठंडा था. नदी में डुबकी लगाने की हिम्मत किसी की नहीं हो रही थी. वहाँ स्नान कर कपड़े बदल रहे एक सज्जन ने कहा "भाई साहब मेरा यह मग लीजिए और जल्दी-जल्दी तीन-चार मग पानी अपने सर के ऊपर डाल लीजिए. जब शारीर का तापमान पानी के तापमान के बराबर हो जाएगा फिर आपको नहाने में ठंड नहीं लगेगी." यह सुनकर मैंने हिम्मत की और सुझाव को पालन करते हुए स्नान किया. यकीन मानिए स्नान के बाद अद्भुत आनंद एवं आत्मिक शांति की अनुभूति हो रही थी. मेरे स्नान करने के बाद सभी हिम्मत करके स्नान किए. उसके बाद भागीरथ तपोस्थली के पास पूजा कर माँ गंगे के मंदिर का दर्शन किया और फिर हमलोग खाना खाने के बाद दोपहर को दो बजे गंगोत्री से चल पड़े और हेरिटेज हैली पैड हर्षिल रुकते हुए उत्तरकाशी के होटल पहुँचे.
यहाँ गंगोत्री और उत्तरकाशी के होटल में दो अलग-अलग घटनाओं का मुझे जिक्र करना जरूरी है. पहली घटना मानवीय मूल्यों से जुड़ी है - जब हम स्नान कर कपड़ा बदल रहे थे तो मैंने देखा कि भागीरथी नदी के दुसरे किनारे पर एक खच्चर दलदल में फँस गया था जिसे तीस-चालीस लोगों की कड़ी मशक्कत के बाद उस खच्चर को सकुशल निकाला गया. नीचे तस्वीर में देखें .
दूसरी घटना होटल में ठहरने वाले यात्रियों को सीख देने वाली है, तो हुआ यूँ कि जब हमलोग गंगोत्री के लिए रवाना हुए तो रूम क्लीनिंग के लिए कमरे की चाभी होटल वाले को दे दिए. जब हमलोग गंगोत्री से वापस आए तो सभी फ्रेश हो कर खाना खाने डायनिंग हॉल जाने लगे तो मैंने कहा की आपलोग चलो मैं फ्रेश हो कर आता हूँ . सभी चले गए और मैं कमरे का कुंडा लगाकर बाथरूम में चला गया. चूँकि कमरे में कोई नहीं था तो जल्दबाजी में बाथरूम का दरवाजा खुला रह गया . जब मैं बाथरूम में था तो लगा कि कोई दरवाजा खोल रहा है. मैंने सोचा, शायद हममें से कोई आया होगा इसलिए नॉब से दरवाजा खोलने की कोशिश कर रहा है. मगर किसी ने आवाज नहीं लगाई तो मैंने सोचा, शायद खाना लग गया होगा और वे मुझे बुलाने आए होंगे. इस लिए जल्दी से मैं बाथरूम से बाहर निकलते ही सामने का नज़ारा देख कर मेरे होश उड़ गए. उसी होटल का रूम सर्विस बॉय जिसकी उम्र लगभग 15-16 साल की होगी, वह मेरे पत्नी के पर्स की तलाशी ले रहा था. मुझे बहुत गुस्सा आया और मैंने उसे रंगे हाथों पकड़ा और गुस्से में पीटने वाला ही था कि उसकी दायनिए स्थिति को देख कर हाथ स्वतः रुक गया. सामान्यतः ऐसी स्थिति में मैं निष्ठुर हो जाता हूँ, पर न जाने क्यूँ मैं उसे समझाने लगा. फिर उसे पकडे हुए स्थिति में इण्टरकॉम से अपने भाई को कमरे में भेजने को कहा. भाई को समझ में कुछ नहीं आ रहा था. उसके आने में विलंब होने पर मैं उस लड़के का हाथ पकड़ कर जब डायनिंग हॉल पहुँचा तो सबके होश उड़ गए पर उनको माजरा समझ नहीं आ रहा था. जब विस्तार में सभी को बात बताई तो वहाँ के होटल स्टाफ उस लडके की तरफ से माफ़ी माँगने लगे. हम लोग भी धार्मिक यात्रा पर निकले थे अतः इस मामले को ज्यादा तूल नहीं दिए और कमरे में सोने चले आए परन्तु नींद तो कोसों दूर थी.
इस घटना के पीछे जो गतिविधि हुई वह यह है कि वह लड़का पहले नॉब से चेक किया कि दरवाजा लॉक है की नहीं जिससे यह पता चल सके कि अंदर कोई है तो नहीं फिर वह पूर्व-नियोजित रूप से रूम क्लीनिंग के समय ही खिड़की की छिटकनी खोल रखा था जिससे वह कमरे में प्रवेश किया. शिक्षा यह लेनी है कि जब आप कमरे में रहें या लॉक कर के कहीं जाएँ तो खिड़की और सभी दरवाजे अवश्य जाँच लें कि सब सही तरह से बंद है.
शेष 09-11-2018 के अंक में .................................
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”
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आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन”
© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
आपके शब्द मेरे दिल छू गए। बड़ी सिद्दत से लिखा है आपने। मेरे लेख को भी पढ़ सकते है। गंगोत्री धाम की पौराणिक अवधारणा
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