(भाग – 3)
हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)
आपने अभी तक “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व” एवं “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व” में पढ़ा कि कैसे ब्लॉग एवं अन्य माध्यम से जानकारी जुटा कर मैंने यात्रा से संबंधित एक बारह दिवसीय कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाई. मित्रों एवं यू-टियूब के माध्यम से मौसम एवं सडकों के बारे में कुछ भयावह तस्वीरें सामने आ रही थी जो आंशिक रूप से सत्य भी थे. फिर भी विश्वसनीय वेब-साईट से पता चला कि सड़क एवं मौसम यात्रा के लिए अनुकूल है तब जाकर हमलोग ने अपनी यात्रा प्रारंभ की.अब आगे ....
चार धाम यात्रा का प्रवेश द्वार हरिद्वार है और मुझे पता चला था कि हरिद्वार में प्रवेश या निकास में सुबह 7 बजे से लेकर रात 8 बजे तक दो से तीन घंटा लग जाता है. ऐसे तो मैं सामान्यतः रात में कार द्वारा यात्रा नहीं करना चाहता परन्तु जून की गर्मी एवं प्रवेश के इस समय से बचने के लिए, हमलोगों ने रात्रि में यात्रा प्रारंभ की. हमलोगों ने कपूरथला से अम्बाला तक की यात्रा आराम से संपन्न की क्योंकि आप सभी को भी पता होगा कि थोड़ी सावधानी के साथ जी.टी. रोड पर कार चलाना आरामदायक होता है . सुनसान सड़क पर एक समान गति से बिना रुकावट के सरपट भागती कार एवं एफ.एम. रेडिओ पर मधुर संगीत एक अनोख शमा बाँध देता है. लम्बी दूरी की यात्रा में जरूरी है कि आप तीन-चार घंटे पर लघुशंका एवं एक कप चाय और हल्का स्नैक्स के लिए एक ब्रेक अवश्य लें. अम्बाला के बाद सड़के कभी अच्छी और कभी ख़राब मिली जिसके कारण यात्रा थोड़ी बोझिल लगने लगी. तब हमने सहारनपुर से पहले एक अच्छी साफ़-सुथरी रेस्टोरेंट पर गाड़ी रोक दी. रात के करीब ढाई बज रहे थे. हम लोग सड़क के किनारे ठंडी हवा में गरमा-गर्म चाय एवं स्नैक्स का आनंद ले ही रहे थे कि लकड़ियों के लठ्ठे से भरी हुई एवं धूल उड़ाती दस-बीस ट्रेक्टर से शुरू हुई कारवां सैकड़ो में बदल गई. हमलोग तरोताज़ा हो कर करीब दो किलोमीटर चले तब भी कारवां ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही था. हमलोगों के लिए यह कौतूहल का विषय था कि आखिर इतनी लकड़ियाँ कहाँ से आ रहीं हैं और कहाँ जा रहीं हैं. आप भी इस तस्वीर को देखें.
खैर ! इन सब के बीच हमलोगों का हरिद्वार पहुँचने के निर्धारित समय में एक घंटा का विलंब हो गया और जिसकी तमन्ना नहीं थी वही हुआ और हमलोगों को हरिद्वार से “हर की पौड़ी” के पास कार पार्किंग तक दो किलोमीटर का रास्ता तय करने में एक घंटा लग गया . “हर की पौड़ी” के पास ही कार पार्किंग थी. हमलोग सुबह साढ़े छः बजे “हर की पौड़ी” पर गंगा स्नान के लिए पहुँच गए. ऐसे तो “हर की पौड़ी” पर भक्त गंगा स्नान के लिए सूर्योदय से पहले ही पहुँचना शुरू कर देते है और देर रात तक गंगा स्नान चलता रहता है. शायद उस दिन अमावस्या होने के कारण भी “हर की पौड़ी” के चारों तरफ भक्तों का जन-सैलाब था. घाट पर तीर्थ यात्रीयों के अलावा स्थानीय लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी थी. गंगा के दो धाराओं के बीच बने घाट पर टाइल्स लगे होने के कारण साफ़-सुथरा लग रहा था. सफाई कर्मचारी भी मुस्तैदी से अपना काम कर रहे थे. घाट पर खाने-पीने का समान बिकने का औचित्य मेरे समझ से परे था.
खैर! हमलोगों ने चारों तरफ नज़र घुमाकर देखा और एक खाली स्थान देख कर वहाँ पहुँचे परन्तु फर्श गीला होने के कारण अपना समान नीचे नहीं रख सकते थे. इसलिए वहाँ पर एक स्थानीय महिला से 20 रु. में पौलिथिन शीट ख़रीद कर बिछाया और उस पर समान रखा और स्नान के लिए निकल पड़े. गंगा का जल बर्फ की तरह ठंडा था. पहले तो गंगा की धारा में उतरने की हिम्मत नहीं हो रही थी परन्तु जब एक डुबकी से शरीर का तापमान, गंगा की धारा से ताल-मेल बिठा लिया तो गंगा से निकलने का मन ही नहीं कर रहा था. गंगा की धारा में प्रवेश मात्र से शारीरिक एवं मानसिक थकान पल भर में छू-मंतर हो गया. ऐसे भी आप माने या न माने पर पवित्र स्थलों का प्रभाव मैंने अपने दिलों-दिमाग पर महसूस किया है. साथ में अपनी स्थानीय पारंपरिक धार्मिक रीति-रिवाजों को निभाने में भी अद्भूत शांति मिलती है. हमलोगों ने गंगा जी को फूल अर्पण कर एक पत्ते पर दीप प्रज्वलित कर गंगा में प्रवाहित किया. इन सब क्रियाओं को बच्चे बहुत ध्यान से देख कर उसका उत्साहपूर्वक अनुकरण कर रहे थे.
हिन्दू धार्मिक स्थलों पर व्यवस्था की आराजकता आपको सहज ही दिख जायेगी और “हर की पौड़ी” भी इससे अछूती नहीं है. हिन्दू धार्मिक स्थलों का एक अभिन्न अंग भिखारियों का झुण्ड भी होता है. तीर्थ यात्रिओं द्वारा दिया गया दान का बहुत बड़ा हिस्सा व्यवस्थापकों के पास न पहुँच कर चंद लोभियों के हाथ लग जाता है जिससे उस स्थल का विकास सरकार के भरोसे ही रहता है. अव्यवस्था का यह आलम था की पचास रूपए पार्किंग के देने के बावजूद हमलोग को पार्किंग में अपनी ही कार ढूंढने में करीब आधा घंटा लग गया और हमारे कार के पास बे-तरतीब ढ़ंग से छोटी-बड़ी गाड़ी खड़ी होने के कारण पार्किंग से कार बाहर निकालने में भी वक्त बहुत लग गया.
हम सभी स्नान कर अपने होटल की तरफ रवाना हो गए. हमलोगों का होटल का कमरा सी.पी. अर्थात कांटिनेंटल प्लान के अंतर्गत आरक्षित था अतः होटल में ही करीब 11 बजे नाश्ता कर कमरे में आराम करने लगे. चूँकि हमलोगों का लक्ष्य छोटा चार धाम यात्रा था इसलिए हरिद्वार दर्शन को लोभ छोड़ना पड़ा और शारीरिक आराम को प्रमुख्यता दी गई. हमलोग संध्या गंगा आरती देखने के लिए 6 बजे शाम को अपनी कार से निकल पड़े. हरिद्वार शहर में ट्रैफिक समस्या के कारण कार को पार्क कर ऑटो के द्वारा “हर की पौड़ी” करीब शाम को 7 बजे पहुँचे. घाट पर तिल रखने की जगह नहीं थी. घाट पर क्लॉक टावर से आरती अच्छी दिखती है. अतः हमलोग वहाँ पहुँचे. आरती करीब 7:15 से 7:30 बजे तक चली. घंटा, घड़ियाल, गंगा आरती से गुंजयमान आकाश, आरती की रौशनी में गंगा घाट पर उमड़ी जन-सैलाब एवं वहाँ की विद्धुत सज्जा सब मिलाकर, गंगा घाट का दृश्य अलौकिक सा लग रहा था. हमलोग रात्रि भोजन एवं हरिद्वार चर्चा के साथ कल सुबह 5 बजे बड़कोट के लिए रवाना होने का निश्चय कर रात 10 बजे अपने-अपने बिस्तर पर सो गए. जब तक हमलोग सुबह उठ कर बरकोट के लिए रवाना होंगे, तब तक आपलोग “हर की पौड़ी” का सुबह एवं शाम का दृश्य देखें :
चार धाम यात्रा का प्रवेश द्वार हरिद्वार है और मुझे पता चला था कि हरिद्वार में प्रवेश या निकास में सुबह 7 बजे से लेकर रात 8 बजे तक दो से तीन घंटा लग जाता है. ऐसे तो मैं सामान्यतः रात में कार द्वारा यात्रा नहीं करना चाहता परन्तु जून की गर्मी एवं प्रवेश के इस समय से बचने के लिए, हमलोगों ने रात्रि में यात्रा प्रारंभ की. हमलोगों ने कपूरथला से अम्बाला तक की यात्रा आराम से संपन्न की क्योंकि आप सभी को भी पता होगा कि थोड़ी सावधानी के साथ जी.टी. रोड पर कार चलाना आरामदायक होता है . सुनसान सड़क पर एक समान गति से बिना रुकावट के सरपट भागती कार एवं एफ.एम. रेडिओ पर मधुर संगीत एक अनोख शमा बाँध देता है. लम्बी दूरी की यात्रा में जरूरी है कि आप तीन-चार घंटे पर लघुशंका एवं एक कप चाय और हल्का स्नैक्स के लिए एक ब्रेक अवश्य लें. अम्बाला के बाद सड़के कभी अच्छी और कभी ख़राब मिली जिसके कारण यात्रा थोड़ी बोझिल लगने लगी. तब हमने सहारनपुर से पहले एक अच्छी साफ़-सुथरी रेस्टोरेंट पर गाड़ी रोक दी. रात के करीब ढाई बज रहे थे. हम लोग सड़क के किनारे ठंडी हवा में गरमा-गर्म चाय एवं स्नैक्स का आनंद ले ही रहे थे कि लकड़ियों के लठ्ठे से भरी हुई एवं धूल उड़ाती दस-बीस ट्रेक्टर से शुरू हुई कारवां सैकड़ो में बदल गई. हमलोग तरोताज़ा हो कर करीब दो किलोमीटर चले तब भी कारवां ख़त्म होने का नाम नहीं ले रही था. हमलोगों के लिए यह कौतूहल का विषय था कि आखिर इतनी लकड़ियाँ कहाँ से आ रहीं हैं और कहाँ जा रहीं हैं. आप भी इस तस्वीर को देखें.
खैर ! इन सब के बीच हमलोगों का हरिद्वार पहुँचने के निर्धारित समय में एक घंटा का विलंब हो गया और जिसकी तमन्ना नहीं थी वही हुआ और हमलोगों को हरिद्वार से “हर की पौड़ी” के पास कार पार्किंग तक दो किलोमीटर का रास्ता तय करने में एक घंटा लग गया . “हर की पौड़ी” के पास ही कार पार्किंग थी. हमलोग सुबह साढ़े छः बजे “हर की पौड़ी” पर गंगा स्नान के लिए पहुँच गए. ऐसे तो “हर की पौड़ी” पर भक्त गंगा स्नान के लिए सूर्योदय से पहले ही पहुँचना शुरू कर देते है और देर रात तक गंगा स्नान चलता रहता है. शायद उस दिन अमावस्या होने के कारण भी “हर की पौड़ी” के चारों तरफ भक्तों का जन-सैलाब था. घाट पर तीर्थ यात्रीयों के अलावा स्थानीय लोगों की संख्या भी अच्छी-खासी थी. गंगा के दो धाराओं के बीच बने घाट पर टाइल्स लगे होने के कारण साफ़-सुथरा लग रहा था. सफाई कर्मचारी भी मुस्तैदी से अपना काम कर रहे थे. घाट पर खाने-पीने का समान बिकने का औचित्य मेरे समझ से परे था.
खैर! हमलोगों ने चारों तरफ नज़र घुमाकर देखा और एक खाली स्थान देख कर वहाँ पहुँचे परन्तु फर्श गीला होने के कारण अपना समान नीचे नहीं रख सकते थे. इसलिए वहाँ पर एक स्थानीय महिला से 20 रु. में पौलिथिन शीट ख़रीद कर बिछाया और उस पर समान रखा और स्नान के लिए निकल पड़े. गंगा का जल बर्फ की तरह ठंडा था. पहले तो गंगा की धारा में उतरने की हिम्मत नहीं हो रही थी परन्तु जब एक डुबकी से शरीर का तापमान, गंगा की धारा से ताल-मेल बिठा लिया तो गंगा से निकलने का मन ही नहीं कर रहा था. गंगा की धारा में प्रवेश मात्र से शारीरिक एवं मानसिक थकान पल भर में छू-मंतर हो गया. ऐसे भी आप माने या न माने पर पवित्र स्थलों का प्रभाव मैंने अपने दिलों-दिमाग पर महसूस किया है. साथ में अपनी स्थानीय पारंपरिक धार्मिक रीति-रिवाजों को निभाने में भी अद्भूत शांति मिलती है. हमलोगों ने गंगा जी को फूल अर्पण कर एक पत्ते पर दीप प्रज्वलित कर गंगा में प्रवाहित किया. इन सब क्रियाओं को बच्चे बहुत ध्यान से देख कर उसका उत्साहपूर्वक अनुकरण कर रहे थे.
हिन्दू धार्मिक स्थलों पर व्यवस्था की आराजकता आपको सहज ही दिख जायेगी और “हर की पौड़ी” भी इससे अछूती नहीं है. हिन्दू धार्मिक स्थलों का एक अभिन्न अंग भिखारियों का झुण्ड भी होता है. तीर्थ यात्रिओं द्वारा दिया गया दान का बहुत बड़ा हिस्सा व्यवस्थापकों के पास न पहुँच कर चंद लोभियों के हाथ लग जाता है जिससे उस स्थल का विकास सरकार के भरोसे ही रहता है. अव्यवस्था का यह आलम था की पचास रूपए पार्किंग के देने के बावजूद हमलोग को पार्किंग में अपनी ही कार ढूंढने में करीब आधा घंटा लग गया और हमारे कार के पास बे-तरतीब ढ़ंग से छोटी-बड़ी गाड़ी खड़ी होने के कारण पार्किंग से कार बाहर निकालने में भी वक्त बहुत लग गया.
हम सभी स्नान कर अपने होटल की तरफ रवाना हो गए. हमलोगों का होटल का कमरा सी.पी. अर्थात कांटिनेंटल प्लान के अंतर्गत आरक्षित था अतः होटल में ही करीब 11 बजे नाश्ता कर कमरे में आराम करने लगे. चूँकि हमलोगों का लक्ष्य छोटा चार धाम यात्रा था इसलिए हरिद्वार दर्शन को लोभ छोड़ना पड़ा और शारीरिक आराम को प्रमुख्यता दी गई. हमलोग संध्या गंगा आरती देखने के लिए 6 बजे शाम को अपनी कार से निकल पड़े. हरिद्वार शहर में ट्रैफिक समस्या के कारण कार को पार्क कर ऑटो के द्वारा “हर की पौड़ी” करीब शाम को 7 बजे पहुँचे. घाट पर तिल रखने की जगह नहीं थी. घाट पर क्लॉक टावर से आरती अच्छी दिखती है. अतः हमलोग वहाँ पहुँचे. आरती करीब 7:15 से 7:30 बजे तक चली. घंटा, घड़ियाल, गंगा आरती से गुंजयमान आकाश, आरती की रौशनी में गंगा घाट पर उमड़ी जन-सैलाब एवं वहाँ की विद्धुत सज्जा सब मिलाकर, गंगा घाट का दृश्य अलौकिक सा लग रहा था. हमलोग रात्रि भोजन एवं हरिद्वार चर्चा के साथ कल सुबह 5 बजे बड़कोट के लिए रवाना होने का निश्चय कर रात 10 बजे अपने-अपने बिस्तर पर सो गए. जब तक हमलोग सुबह उठ कर बरकोट के लिए रवाना होंगे, तब तक आपलोग “हर की पौड़ी” का सुबह एवं शाम का दृश्य देखें :
शेष 12-10-2018 के अंक में .................................
भाग -1 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”
भाग -2 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”
भाग -1 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”
© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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