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Monday, December 16, 2019

मोहब्बत



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मोहब्बत

साक़ी क्या मिलाई है, तू ने प्यालों में। 

पीकर रहता हूँ, तेरे ही ख़यालों में। 


तुम मुझे चाहो, मेरी चाहत है साक़ी,  

मेरा कभी नाम हो, चाहने वालों में। 


कलम से निकले थे, कभी अरमान साक़ी, 

उन्हीं खतों का चर्चा है, शहर वालों में। 


तेरा करम, जो तू ने मुझ को अपनाया

मशहूर हो गया मैं, सभी दिलवालों में। 


जब से छोड़ गई हो, अकेले इस जग में,  

उलझे हुए हैं, बेवजह के सवालों में।  

©  राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'


Friday, November 8, 2019

उपन्यास "ढाई कदम" पर प्रतिक्रिया


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वरिष्ठ रचनाकार लीला तिवानी जी ने 
उपन्यास "ढाई कदम" पढ़ कर आशीर्वाद स्वरुप अपनी प्रतिक्रिया मेल द्वारा भेजीं  हैं जिसे मैं यहाँ पोस्ट कर रहा हूँ। 

उपन्यास "ढाई कदम" पर प्रतिक्रिया

ढाई दिन के शहंशाह निजाम सिक्का का किस्सा पढ़ा-सुना था, ढाई दिन का झोंपड़ा भी देखा था, ढाई मिनट कदमताल करके एक मील चलने का लाभ घर में ही लिया जा सकता है, इसका अनुभव भी किया था। ढाई कदम उपन्यास पढ़कर यह सब याद आ गया था। उपन्यास "ढाई कदम" की मुख्य पात्र शिवांगी नामक एक स्त्री है, जो स्त्री होने के दंश को झेलती हुई, अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ती है। पहला कदम तो मंजिल का प्रारंभ होता है, यह सोचकर वह संघर्ष करती रही। दूसरे कदम में भी समाज में व्याप्त मनोविकारों से संघर्ष करना ही उसकी नियति में लिखा था। पुरुष तो अक्सर ढाई कदम चलकर सब कुछ भुला देता है, पर स्त्री होने के नाते भावुक शिवांगी ऐसा नहीं कर पाई। 'राधा और मीरा का जीवन कोई पुरुष जी ही नहीं सकता', कहकर वह अनुराग को भी बैरंग लौटा देती है और प्रशांत को भी। पार्वती के समान पवित्रता का जीवन जीने को इच्छुक शिवांगी को अब तीसरा कदम सोच-समझकर उठाना था, इसलिए ही सम्भवतः वह ढाई कदम ही चल पाई। 

राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही' का यह उपन्यास आज-कल के सामाजिक परिवेश में फैले मनोविकार, छद्म आचरण और विश्वासघात के महीन रेशों में फंसी  एक स्त्री के लिए अपने लक्ष्य की तरफ कदम उठाने के संघर्ष एवं सफलता या असफलता के परिणाम पर जीवन दिशा बदलने की जद्दोजहद की कहानी है, जो पाठक को जीवन दिशा बदलने की जद्दोजहद के चलते भी एक नया रास्ता खोजने की प्रेरणा देने में सहायक है। पढ़ाई के लिए अकेले रहने के दौरान छात्रों को क्या-क्या मुश्किलें आती हैं, इसका अनुमान लगाना शायद मुश्किल हो, लेकिन दुनिया ऐसे ही चलती है। विद्यार्थी का कर्म है, अध्ययन करना और यही करना उसकी साधना है, यह तभी तक साधना रहती है, जब तक लक्ष्य पर नजर टिकी रहे, अन्यथा सब बेकार हो जाता है। कच्ची उम्र की दुश्वारियों, एक तरफा प्यार का दुष्परिणाम, संयुक्त परिवार की अपनी एक परम्परा को प्रोत्साहन, असफल होने पर संयुक्त परिवार का छांव बन जाना आदि इस उपन्यास की विशेषताएं हैं।   

110 पेज एवं 8 खंड का यह उपन्यास प्रकृति की सुंदरता की प्रतीकात्मकता से सुसज्जित है। इसे उपन्यास की इन पंक्तियों में देखा जा सकता है-

“आकाश में पूनम का चाँद सदैव की भाँति, अपनी रौशनी से सभी को नहला रहा था। चाँदनी रात में सितारे टिमटिमा रहे थे, तभी पूनम की रात अमावस्या की रात में तब्दील हो गई। एक बहुत बड़े काले बादलों के समूह ने चाँद को पूरी तरह से ढँक लिया था और तारे बेबस होकर बादलों की करतूत को देख रहे थे।''

प्यार के अंत और प्रकृति के सामंजस्य को देखिए- ''सूरज ढल चुका था, अपने घोंसले की तरफ जाने के लिए पक्षी कोलाहल करते हुए आज की अंतिम उड़ान भर रहे थे.''

प्राची डिजिटल पब्लिकेशन, मेरठ, उत्तर प्रदेश द्वारा प्रकाशित इस उपन्यास की साहित्यिक हिंदी भाषा का अनवरत प्रवाह आगे की कथा को जानने की उत्सुकता बढ़ाने में तो समर्थ है ही, अनेक सामाजिक समस्याओं के समाधान में भी सक्षम है. 


-लीला तिवानी 
शिक्षा- हिंदी में एम.ए., एम.एड.
ब्लॉग  https://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/rasleela/ 

Thursday, September 26, 2019

उपन्यास 'ढाई कदम' की विषयवस्तु ।


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उपन्यास 'ढाई कदम' की विषयवस्तु ।

कहाँ आसान होता है, सामाजिक बेड़ियों को तोड़ना परन्तु इसको चुनौतियों के रूप में लेकर कुछ स्त्रियाँ छोटे-छोटे शहरों से महानगरों में आकर अपने बड़े सपनों को पूरा करने के लिए, अपनी जी-जान लगा देती हैं और पुरुष-प्रधान समाज को नए मापदंड स्थापित करने को मजबूर करती हैं। ऐसी ही तमाम संघर्षरत महिलाओं को समर्पित है, यह उपन्यास, जो अपनी अस्मिता की शुचिता बरकरार रखते हुए अपना जीवन गरिमामय तरीके से जीकर दूसरी महिलाओं का मनोबल बढ़ा रहीं हैं।


उपन्यास "ढाई कदम" की मुख्य पात्र शिवांगी नामक एक स्त्री है। वह स्त्री होने के दंश को झेलती हुई, अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए विभिन्न चुनौतियों का सामना करते हुए आगे बढ़ी। जब वह प्रेम और वासना शब्द से अनजान थी तब भी उसे जीवन में प्रेम और वासना से संघर्ष करना पड़ा। समाज में व्याप्त मनोविकारों से ग्रसित उसकी  अपनी सहेली से खुद को मुक्त कर 'एकला चलो रे' के सिद्धांत को आत्मसात किया। जब उसने प्रेम में बढ़ाए गए ढाई कदम को समझा तो उसने अपने मित्र की ओर अपनी अस्मिता की शुचिता को ध्यान में रखते हुए अपने कदम बढ़ाए पर जीवन में सफलता सभी को मिले ऐसा होता है क्या? आज-कल के सामाजिक परिवेश में फैले मनोविकार, छद्म आचरण और विश्वासघात के महीन रेशों में फंसी  एक स्त्री के लिए अपने लक्ष्य की तरफ कदम उठाने के संघर्ष एवं सफलता या असफलता के परिणाम पर जीवन दिशा बदलने की जद्दोजहद की कहानी कहता है यह उपन्यास "ढाई कदम"।
ढाई कदम

-© राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'

Tuesday, August 27, 2019

ढाई कदम


सभी मित्रों से आग्रह है कि इस पोस्ट को शेयर कर मेरे उपन्यास "ढाई कदम" का प्रचार एवं प्रसार में मेरा सहयोग करें. नीचे दिए गए चित्र को क्लिक कर उपन्यास "ढाई कदम" का आर्डर कर सकते हैं.









Wednesday, May 15, 2019

राष्ट्रीय पत्रिका में मेरी कविता


मेरी कविता वनिता पत्रिका मई'2019 अंक में प्रकाशित हुई है।



Monday, April 29, 2019

सूचना

दोस्तों! 

किन्ही  परिहार्य कारणों से, मैं कुछ समय के लिए इस ब्लॉग जगत पर अनुपस्थित रहूँगा।

जल्द मिलने की आशा में आपका - 
राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'
  

Friday, March 8, 2019

नारी - हिम्मत कर हुंकार तू भर ले



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#नारी - हिम्मत कर हुंकार तू भर ले#

नारी के हालात नहीं बदले,
हालात अभी, जैसे थे पहले,
द्रौपदी अहिल्या या हो सीता,
इन सब की चीत्कार तू सुन ले। 

राम-कृष्ण अब ना आने वाले,
अपनी रक्षा अब खुद तू कर ले,
सतयुग, त्रेता, द्वापर युग बीता,
कलयुग में अपना रूप बदल ले।

लक्ष्य कठिन है, फिर भी तू चुन ले,
मंजिल अपनी अब तू तय कर ले,
अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ,
अपना जीवन तू जी भर जी ले। 

जो भी हैं अबला कहने वाले,
हक़ यूँ नहीं तुम्हें देने वाले,
उनसे क्या आशा रखना जिसने,
मुँह से छीन ली तेरे निवाले। 

बेड़ियाँ हैं अब टूटने वाली,
मुक्ति-मार्ग सभी तेरे हवाले,
लक्ष्मी, इंदरा, कल्पना जैसी,
दम लगा कर हुंकार तू भर ले।

-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"




Friday, February 8, 2019

मेरे तो करतार हैं।


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"मेरे तो करतार हैं।"

अब जुबाँ, पर है, सिर्फ, एक नाम तेरा
और मेरे, दिल में, है तस्वीर तेरी,
अब तू, भी, नहीं है, इस, नश्वर जगत में,
पर अक्सर, दिखते हो, नज़रों को मेरी। 

खोया, रहता हूँ, मैंख्यालों में तेरे,
बरसती है अक्सर, फैज़, मुझ पर तेरी
तेरे बिन, अब तो, मैं, जी ना पाऊँगा,
मेरी धड़कने, हो गई, अब तो तेरी। 

मैं तो, अधम था, तभी, मिला साथ तेरा,
तू ना होता, तो, क्या, गत होती मेरी,
इस नाचीज राहीको, जानते हैं सब
और, कुछ भी नहीं, बस, रहमत है तेरी। 

अक्सर, मदद, के लिए, बढ़ा हाथ तेरा,
देखा है करिश्मा , मैंने भी तेरा,
वास्ता, जिसका ना था, कभी भी तुमसे
वो, क्या जानता, क्या, शख्सियत थी तेरी। 

हम सब, बैठे हैं, अब ख्यालों में तेरे,
मेरी आँखों, में बस, मूरत है तेरी,
तू ही, महबूब हो, हो, करतार मेरे,
 इन नैनों को है, अब चाहत, बस तेरी।


अब जुबाँ, पर हैसिर्फ, एक नाम तेरा
और मेरे, दिल में, है तस्वीर तेरी

-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"




Wednesday, January 9, 2019

FACE OF COMMON MAN - 13



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A DRUMMER AT Yamnotri Temple  , Uttrakhand, India,

-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Friday, January 4, 2019

वक़्त


वक़्त
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"वक़्त"  

वक़्त तो गुजरने के लिए होता है,
वक़्त ही ख़ुशी-गम का सबब  होता है.

वक़्त एक सा होता है इस शहर में,
उसी पल मातम कहीं जश्न होता है.

अपने आप पर गुरुर ना कर ऐ दोस्त,
एक वक़्त, राजा भी यहाँ रोता है.

मुक़द्दर देगा तेरे दर पर दस्तक,
वक़्त है कर्म का और तू सोता है.

वक़्त खुद ही रंग दिखाएगा इक दिन,
तू सब्र कर, होने दे जो होता है. 

वक़्त आ गया है जब बीज बोने का,
तू सुनहरे मौके को क्यूँ खोता है.

वक़्त की जो कद्र नहीं करते "राही",
वो अपनी किस्मत पर सदा रोता है.

-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"




Tuesday, January 1, 2019

MEME SERIES - 23


Biweekly Edition (पाक्षिक संस्करण) 02 Jan '2018 to 15 Jan'2018

मीम (MEME)

"यह एक सैद्धांतिक इकाई है जो सांस्कृतिक विचारों, प्रतीकों या मान्यताओं आदि को लेखन, भाषण, रिवाजों या अन्य किसी अनुकरण योग्य विधा के माध्यम से एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में पहँचाने का काम करती है। "मीम" शब्द प्राचीन यूनानी शब्द μίμημα; मीमेमा का संक्षिप्त रूप है जिसका अर्थ हिन्दी में नकल करना या नकल उतारना होता है। इस शब्द को गढ़ने और पहली बार प्रयोग करने का श्रेय ब्रिटिश विकासवादी जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिंस को जाता है जिन्होने 1976 में अपनी पुस्तक "द सेल्फिश जीन" (यह स्वार्थी जीन) में इसका प्रयोग किया था। इस शब्द को जीन शब्द को आधार बना कर गढ़ा गया था और इस शब्द को एक अवधारणा के रूप में प्रयोग कर उन्होने विचारों और सांस्कृतिक घटनाओं के प्रसार को विकासवादी सिद्धांतों के जरिए समझाने की कोशिश की थी। पुस्तक में मीम के उदाहरण के रूप में गीत, वाक्यांश, फैशन और मेहराब निर्माण की प्रौद्योगिकी इत्यादि शामिल है।"- विकिपीडिया से साभार.

MEME SERIES - 23

By looking at this picture you might be having certain reaction in your mind, through this express your reaction as the title or the  caption. The selected title or caption of few people will be published in the next MEME SERIES POST.

इस तस्वीर को देख कर आपके मन में अवश्य ही किसी भी प्रकार के प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई होगी, तो उसी को शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)के रूप में व्यक्त करें। चुने हुए शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)को अगले MEME SERIES POST में प्रकाशित की जाएगी।

 उल्टा तोता, क्या सोचता?
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The next edition will be published on  JANUARY 16, 2018. If you have similar type of picture on your blog, leave a link of your post in my comments section. I will link your posts on my blog in the next edition. Thank you very much dear friends for all your valuable captions for MEME SERIES-22 . Your participation and thoughts are deeply appreciated by me. Some of the best captions are listed below.

अगला संस्करण 02 जनवरी, 2018 को प्रकाशित किया जाएगा। यदि आपके ब्लॉग पर इस तरह की कोई तस्वीर है, तो अपने पोस्ट का लिंक मेरी टिप्पणी अनुभाग में लिख दें। मैं अगले संस्करण में अपने ब्लॉग पर आपका पोस्ट लिंक कर दूंगा। मेरे प्रिय मित्रों, आपके सभी बहुमूल्य शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION) के लिए धन्यवाद। MEME SERIES-22 के पोस्ट पर आपकी भागीदारी और विचारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया, उनमें से कुछ बेहतरीन कैप्शन नीचे उल्लेखित हैं। 


MEME SERIES-22 के बेहतरीन कैप्शन


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1. वृक्षों को काट खड़े किए कंक्रीट के जंगल,
   प्रगति नहीं ये बस अमंगल ही अमंगल।
2. प्रगति के नाम पर वृक्षों से खिलवाड़,
    हमें नहीं तुम खुद को रहे उजाड़।................................................Abhilasha Chauhan


Self destruction in action. .....................................................  Indrani Ghose

पाला तुम्हें प्यार से
ठंडी छांव दी प्राण वायु दी
फल दिये और अब अपना बसेरा बसाने को सब उजाड़ रहे।
कृत्घन!........................................................................................
Kusum Kothari

कंक्रीट-सीमेंट-सरिया के जंगल में उपेक्षित पेड़. ..................................Ravindra Singh Yadav