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Friday, December 1, 2017

एक छोटी सी प्रेम-कहानी











एक छोटी सी प्रेम-कहानी
कहनी थी इक बात वो,
तुम से कह नहीं पाया,
कैसे कहूँ तुम से मैं,
अभी तक समझ न पाया। 

आसमां में उड़ता है,
एकाकी मन का पक्षी,
तेरा मेरा मिलन हो,  
और चाँद हो साक्षी। 

इक झलक देखूँ तुझको,
मन मेरा चाहता है,
गर तुम कहीं मिल जाओ,
सुकून कहाँ मिलता है। 

मेरे दिल की बात को,
जब तक नहीं सुनती हो,
कैसे कह दूँ सभी से,  
प्यार मुझ से करती हो। 

मैं तो हो गया पागल,
वो लिपट गई गले से,
औ' लरज़ते हुए कहा,
प्रेम करती हूँ तुम से। 

मुराद यूँ पूरी हुई,
बन गई वो अब मेरी,
मस्ती में कट रही है,
रब ये फ़ज़ल है तेरी। 
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
चित्र https://www.flickr.com/ से साभार। 



6 comments:

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