विरह वेदना
ज़िन्दगी
में ये कैसा मोड़ आया,
जो
सबसे प्यारा था उसे छोड़ आया.
वो
प्यारा था,
ये
तब मैंने जाना,
जब
उसे उस मोड़ पर छोड़ आया.
आँखों
में समुन्दर,
सीने
में बवंडर,
रख
सीने पर पत्थर,
उसे
छोड़ आया.
न
मैंने कुछ कहा,
न
कुछ उसने कहा,
मीठी
यादों के सहारे,
उसे
छोड़ आया.
जीवन
कब रुका है जो अब रुकेगा,
मगर
अपना सब कुछ वहीँ छोड़ आया.
न
मिलेंगे कभी,
ऐसा
है तो नहीं,
फिर
भी गम है कि उसे छोड़ आया.
करेगा
नाम रौशन मेरा,
इसी
आस पर,
कामयाबी
की राह पर “राही”,
उसे
छोड़ आया.
-
© राकेश
कुमार
श्रीवास्तव
"राही"
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