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Wednesday, October 31, 2018

सतर्कता-जागरूकता मिशन


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"सतर्कता-जागरूकता मिशन" 

सब हो जाए ईमानदार और, रहूँ मैं भ्रष्टाचारी
भ्रष्टाचार मुक्त समाज बने कैसे, यही है लाचारी

नैतिकता का हुआ पतन, सब बन बैठे है भ्रष्टाचारी
भ्रष्टाचार मुक्त समाज बने कैसे, यही है लाचारी

सब सुधर जाएँ पर मैं ही, करूँ बस अपनी ही मनमानी
भ्रष्टाचार मुक्त समाज बने कैसे, यही है लाचारी

हम सब शपथ लें और ख़त्म करे, बस अपनी ये लाचारी
अपनाएं सार्वजनिक जीवन में, हम सभी ईमानदारी

पारदर्शिता-जवाबदेही को अब अपना कर्म बनाएं
सतर्कता-जागरूकता में हो जनता की भागीदारी.

रिश्वत लेने-देने की रोग को, मिलकर हम सब  मिटाएँ
सतर्कता-जागरूकता मिशन को, हम सभी सफल बनाएं. 

-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

एक नागरिक के रूप में उपरोक्त सत्यनिष्ठा प्रतिज्ञा प्रमाण पत्र आप भी प्राप्त कर सकते हैं। 
यहाँ क्लिक करें। 



Friday, October 26, 2018

आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6)


(भाग – 6)
 उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन 
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आपने अभी तक “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3)  हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश) , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4)  लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5)  यमनोत्री धाम की यात्रा में पढ़ा कि कैसे ब्लॉग एवं अन्य माध्यम से जानकारी जुटा कर मैंने यात्रा से संबंधित एक बारह दिवसीय कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाई. जब विश्वसनीय वेब-साईट से पता चला कि सड़क एवं मौसम यात्रा के लिए अनुकूल है तब जाकर हमलोग ने अपनी यात्रा प्रारंभ की. “हर की पौड़ी”, ऋषिकेश और यमनोत्री की मनोरम दृश्य को दिल में सहेज कर रात्रि विश्राम करने के लिए बाड़कोट के एक होटल में रुके.     
अब आगे ....
बेटे द्वारा गाड़ी की सफाई
हमलोग यमनोत्री यात्रा कर बहुत थक गए थे इसलिए बड़कोट से चार कि.मी. पहले ही एक मनोरम स्थान दिखा तो हम वहाँ के एक होटल करण पैलेस में रुक गए. होटल सामान्य था परन्तु अत्यधिक थकान होने के कारण हमलोग रात का खाना खा कर सो गए. सुबह लगभग 9 बजे सब की नींद खुली. गर्म पानी से स्नान कर जब हमलोगों ने बाहर का नज़ारा देखा तो हमलोग सम्मोहित हो कर  वहाँ के वादियों में खो गए. साफ़-सुथरी सड़क, सामने कल-कल बहती नदी, नाना-प्रकार के पेड़-पक्षी, नीला आकाश, ठंडी हवा, दूर छोटे-छोटे मकान और सुबह-सुबह धरती से सोना पैदा करने में लगा एक किसान, इन सब को अपलक निहारते हुए रोम-रोम रोमांचित हो रहा था और मन को असीम शांति मिल रही थी. वहाँ के अद्भूत नजारों का वर्णन करने में मैं खुद को असक्षम महसूस कर रहा हूँ इस लिए आप वहाँ के नजारों को मेरे कैमरे की नज़र से देखें जो नीचे दिए गए हैं .





यात्रा का अगला पड़ाव उत्तरकाशी था जो बड़कोट से 80 कि.मी. की दूरी पर स्थित है और इस दूरी को तय करने में लगभग तीन घंटे लगने थे. उत्तरकाशी में श्री विश्वनाथ मंदिर दर्शन के अलावा हमारा कोई अन्य कार्यक्रम नहीं था इसलिए हमलोगों ने आज आराम कर के दोपहर तीन बजे खाना खा कर उत्तरकाशी के लिए प्रस्थान करने का निर्णय लिया और नियत समय पर हमारी यात्रा प्रारम्भ हुई.  हम उत्तरकाशी में अभी प्रवेश ही किए थे तो वहाँ एक होटल सहज विला इन् मिला. वहाँ छः बेड वाला कमरा 2800 रु. में मिल रहा था जो इस यात्रा का सबसे महँगा कमरे का किराया था इसलिए हमलोग वहाँ के मुख्य बाज़ार में जाकर अन्य होटलों का पता किए तो किराया लगभग पहले वाले होटल जैसा ही था परन्तु सुविधा एवं सजावट वैसी नहीं थी. सभी बच्चों को होटल सहज विला इन् ज्यादा पसंद आ रहा था अतः हमलोग उस होटल को दो रात के लिए आरक्षित कर लिए. जब हमलोग मुख्य बाज़ार में होटल का पता कर रहे थे तभी वहाँ जोशियाड़ा बैराज झील में ‘कैफे ऑन द वेव्स’ का नज़ारा देख बच्चे वहाँ जाने को मचल रहे थे. हमलोग समान को होटल के कमरे में रख कर करीब शाम 7:15 बजे वहाँ के लिए रवाना हुए. झील के सौन्दर्य से सभी प्रभावित हुए और कुछ समय वहाँ बिताने के बाद हमलोगों ने श्री विश्वनाथ मंदिर का दर्शन किया. जहाँ शिव हों और शक्ति ना हो ऐसा सामान्यतः होता नहीं है. तो यह मंदिर भी इससे अपवाद नहीं है. तो शिव और शक्ति का दर्शन कर हमलोग होटल रात को 9:30 बजे पहुँचे. खाना खाने के बाद अपने अगले पड़ाव गंगोत्री की अलस-भोर में यात्रा करने हेतु हमसब बड़े तो सो गए परन्तु बच्चे देर रात तक इंटरनेट एवं टी.वी. में व्यस्त रहे. 
बाद में पता चला कि उत्तरकाशी से गंगोत्री की तरफ लगभग पांच किमी के बाद सस्ते होटल मिलते हैं. 
खैर! हिमालय की गोद में बसा उत्तरकाशी का प्राचीन नाम बाड़ाहाट है और महाभारत काल का वारणावत ग्राम भी इसी का नाम है. पाण्डवों को जलाने के उद्देश्य से लाक्षागृह का निर्माण भी यहीं पर हुआ था. माना जाता है कि परशुराम ने 21 बार हैहयवंशी क्षत्रियों को समूल नष्ट करने के बाद यहीं पर कठोर तप से अपने क्रोध को शांत कर सौम्य स्वभाव प्राप्त किया था इसलिए उत्तरकाशी को  सौम्यकाशी भी कहते हैं. उत्तरकाशी का एक छोर अस्सी और भागीरथी संगम हैं तो दूसरा छोर वरुणा और भागीरथी संगम हैं.

आइए आप लोग यहाँ की झलकियाँ तस्वीरों के माध्यम से देखें :







और अंत में उत्तरकाशी से विभिन्न स्थलों की दूरी को दर्शाता  एक नक्शा :



शेष  02-11-2018 के  अंक में .................................

भाग -1  पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व

भाग -2 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :

“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व


भाग -3 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :


आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3)  हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)

भाग -4 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :

आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4)  लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा

भाग -5 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :

एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5)  यमनोत्री धाम की यात्रा 


©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Wednesday, October 24, 2018

MEME SERIES - 18


Biweekly Edition (पाक्षिक संस्करण) 24 Oct'2018 to 06 Nov'2018

मीम (MEME)

"यह एक सैद्धांतिक इकाई है जो सांस्कृतिक विचारों, प्रतीकों या मान्यताओं आदि को लेखन, भाषण, रिवाजों या अन्य किसी अनुकरण योग्य विधा के माध्यम से एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में पहँचाने का काम करती है। "मीम" शब्द प्राचीन यूनानी शब्द μίμημα; मीमेमा का संक्षिप्त रूप है जिसका अर्थ हिन्दी में नकल करना या नकल उतारना होता है। इस शब्द को गढ़ने और पहली बार प्रयोग करने का श्रेय ब्रिटिश विकासवादी जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिंस को जाता है जिन्होने 1976 में अपनी पुस्तक "द सेल्फिश जीन" (यह स्वार्थी जीन) में इसका प्रयोग किया था। इस शब्द को जीन शब्द को आधार बना कर गढ़ा गया था और इस शब्द को एक अवधारणा के रूप में प्रयोग कर उन्होने विचारों और सांस्कृतिक घटनाओं के प्रसार को विकासवादी सिद्धांतों के जरिए समझाने की कोशिश की थी। पुस्तक में मीम के उदाहरण के रूप में गीत, वाक्यांश, फैशन और मेहराब निर्माण की प्रौद्योगिकी इत्यादि शामिल है।"- विकिपीडिया से साभार.

MEME SERIES - 18

By looking at this picture you might be having certain reaction in your mind, through this express your reaction as the title or the  caption. The selected title or caption of few people will be published in the next MEME SERIES POST.

इस तस्वीर को देख कर आपके मन में अवश्य ही किसी भी प्रकार के प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई होगी, तो उसी को शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)के रूप में व्यक्त करें। चुने हुए शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)को अगले MEME SERIES POST में प्रकाशित की जाएगी।

एकला चलो रे !
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The next edition will be published on  NOVEMBER 07, 2018. If you have similar type of picture on your blog, leave a link of your post in my comments section. I will link your posts on my blog in the next edition. Thank you very much dear friends for all your valuable captions for MEME SERIES-17 . Your participation and thoughts are deeply appreciated by me. Some of the best captions are listed below.

अगला संस्करण 07 नवंबर , 2018 को प्रकाशित किया जाएगा। यदि आपके ब्लॉग पर इस तरह की कोई तस्वीर है, तो अपने पोस्ट का लिंक मेरी टिप्पणी अनुभाग में लिख दें। मैं अगले संस्करण में अपने ब्लॉग पर आपका पोस्ट लिंक कर दूंगा। मेरे प्रिय मित्रों, आपके सभी बहुमूल्य शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION) के लिए धन्यवाद। MEME SERIES-17 के पोस्ट पर आपकी भागीदारी और विचारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया, उनमें से कुछ बेहतरीन कैप्शन नीचे उल्लेखित हैं। 


MEME SERIES-17 के बेहतरीन कैप्शन

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मेरे लिए आसान हर रास्ता, इन वादियों से मेरा वास्ता......................................Abhilasha Chauhan
जहाँ चाह वहीं राह ...................................................................................Yashoda Agrawal

Friday, October 19, 2018

आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5)


(भाग – 5)
यमनोत्री धाम की यात्रा

आपने अभी तक “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3)  हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश) एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4)  लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा में पढ़ा कि कैसे ब्लॉग एवं अन्य माध्यम से जानकारी जुटा कर मैंने यात्रा से संबंधित एक बारह दिवसीय कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाई. जब विश्वसनीय वेब-साईट से पता चला कि सड़क एवं मौसम यात्रा के लिए अनुकूल है तब जाकर हमलोग ने अपनी यात्रा प्रारंभ की. “हर की पौड़ी” की मनोरम दृश्य को दिल में सहेज कर यात्रा का  अगला पड़ाव बड़कोट के लिए रवाना हुए. हमलोगों की यात्रा लक्ष्मण झुला एवं राम झुला के दर्शन के बाद धरासू तक बहुत ही मजे में कटी, परन्तु धरासू से बड़कोट तक की यात्रा एक ईश्वरीय परीक्षा के समान गुजरी.     
अब आगे ....


सुबह पाँच बजे सबसे पहले बच्चे ही उठे और उन्होंने ही कहा कि अब सब ठीक है. बच्चों की हालत में आश्चर्यजनक सुधार से हमलोग चकित थे. हमलोग भी उनके चेहरे को देख रहे थे सब सामान्य लग रहा था. सभी तरह से जाँच-परख लेने के बाद हमलोगों ने निर्णय लिया कि एक घंटे में तैयार होकर आगे की यात्रा शुरू की जायेगी और नियत समय पर हमरी यात्रा शुरू हुई. कल-कल करती नदी की जलधारा, चारों तरफ पहाड़, और नाना-प्रकार के पेड़ पौधे सब मिलकर आँखों के सामने एक मनमोहक कैनवास से लग रहे थे. हरे-भरे पहाड़, उन पर बने छोटे-छोटे मकान एवं सीढ़ीदार खेतों का दृश्य अपनी तरफ स्वतः आकृष्ट कर रहे थे. करीब एक घंटे बाद हमलोग नास्ता-चाय के लिए रानाचट्टी में रुके . हमलोग एक रेस्त्राँ के पास रुके और आलू-पराठे का ऑर्डर दिए तो रेस्त्राँ के कर्मचारियों ने आधा घंटे का समय माँगा परन्तु वे आधे घंटे में अपना वादा पूरा नहीं कर पाए तो हमलोगों ने केवल चाय-बिस्कुट से काम चलाया और जानकी चट्टी के लिए रवाना हो गए. सामान्यतः पहाड़ो पर व्यवसायिक जीवन सुबह नौ बजे के बाद ही शुरू होता है.

जानकी चट्टी पहुँचने से पहले रास्ते में दो पहाड़ ऐसे खड़े थे कि मानो आगे रास्ता बंद है परन्तु जैसे ही हम पहाड़ी को पार किए तो प्रकृति का विशाल एवं नयनाभिराम दृश्य हमलोगों के सामने था. हमलोग सवा आठ बजे जानकी चट्टी के टैक्सी स्टैंड पहुँचे.

बड़कोट से जानकी चट्टी की सड़कें आरामदायक थी . टैक्सी स्टैंड पर ही एक घोड़े वाला हमलोगों के पीछे पड़ गया. हमलोगों ने सोचा कि जब वैष्णव देवी की चौदह कि.मी. की यात्रा हमने अनेकों बार पैदल की है तो छः कि.मी. की यात्रा के लिए घोड़ा क्यूँ? परन्तु उसकी लगातार आग्रह एवं हमारी शर्तों पर चलने की उसकी सहमती हुई और हमने 800रु. एक घोड़ा आने-जाने के लिए ले लिया. सबसे पहले हम सभी ने पेट पूजा कर चाय पी. ठंड का असर था अतः हम सभी ने गर्म कपड़े पहन रखे थे. मुंबई तो यूँ ही बदनाम है, पहाड़ी इलाकों में भी बारिश कब शुरू हो जाए पता नहीं चलता और बारिश की बूंदें भी बर्फ जैसी ठंडी. तो, हम सब ने 20 रु. की एक-एक पतली पौलिथिन की बरसाती ख़रीद ली जिसको आप पैंट की जेब में आसानी से रख सकते हैं. दो-चार लकड़ी के डंडे भी सहारे के लिए ले लिए और घोड़े पर एक बैग और एक छोटी लड़की को बिठा कर चल पड़े यमनोत्री मंदिर दर्शन के लिए.  जब हमलोग चले तो जानकी चट्टी टैक्सी स्टैंड पर लगे बोर्ड पर माँ यमनोत्री धाम 6 कि.मी. पैदल लिखा था और बाद में आधे घंटे लगभग 2 कि.मी. चलने पर एक बोर्ड मिला जिस पर लिखा था माँ यमनोत्री धाम 5.7 कि.मी. अब आप सोच सकते है कि ऐसी परिस्थिति में भक्तों पर क्या गुजरती है. खैर! भक्त भी कहाँ मानने वाले, माँ यमनोत्री धाम का रास्ता गाँव के बीचों-बीच से निकलती है. 
मैंने महसूस किया कि पहाड़ में बसने वाले लोग सादगीपूर्ण जीवन जीते है और वृद्धावस्था में भी कठिन कार्य करते नज़र आते हैं. चढ़ाई के प्रारंभिक अवस्था में ही सभी तीर्थ यात्रियों का हाल वहाँ के स्थानीय लोगों के लिए अजूबा सा लगता है और वे मुस्कुराते हुए यात्रियों को देखते है और हमलोग उनकी वेशभूषा और सादगी को देख कर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ लेते हैं. 
कुछ दूर चलने पर खुला स्थान मिला तो ऐसा लगा मानों घुटन भरी माहौल से निकल कर सीधे प्रकृति के गोद में आ गए. बायीं तरफ पहाड़ और उससे सटी साफ़-सुथरी एवं लोहे की सुंदर रंगों में रंगी रेलिंग के बीच चौड़ी सड़क, दायीं तरफ रेलिंग के साथ गहरी खाई और उस खाई में बलखाती यमुना नदी आपको बरबस आकर्षित करतीं हैं और आप वहाँ की तस्वीर अपने कैमरे में लेना चाहते है परन्तु जिस दृश्य को देखकर आपका मन पुलकित हुआ था वैसी तस्वीर कैमरे में कैद नहीं होने पर आप थोड़ा साहसिक हो उठते है. परन्तु मेरी सलाह है कि सावधानी अवश्य बरतें और संयम से काम लें.
खड़ी चढ़ाई होने कारण 6 कि.मी. की दूरी तय करना मुश्किल लग रहा था. अब लग रहा था कि घोड़ा किराए पर लेना ठीक रहा. बच्चे बदल-बदल कर घोड़े की सवारी कर रहे थे जिससे उन्हें चढ़ाई करने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई और समान भी उनके साथ होने से हमलोगों को भी राहत मिल रही थी. आखिर खाते-पीते रास्ता कट ही गया और करीब आधा किलोमीटर पहले से यमुना जी का पीताम्बर मंदिर के एक झलक मात्र से ही सारे कष्ट दूर हो गए. अनुपम और अलौकिक दृश्य था. अब चढ़ाई भी ख़त्म हो गई थी. हमलोग एक छोटे से सेतु को पार कर मंदिर के प्रांगन में दोपहर के लगभग डेढ़ बजे पहुँचे। जैसे अन्य धार्मिक स्थलों पर व्यवस्था की आराजकता रहती है वैसे ही यह स्थल भी अछूता नहीं था. वहाँ महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग कुण्ड है. उसी गौरी कुण्ड में गर्म पानी के स्नान मात्र से हमलोगों की थकान मिट गई और पुरे शारीर में एक नई उर्जा के संचार को हमलोगों ने महसूस किया. स्नान कर दिव्य शिला का दर्शन किया एवं पुरोहित द्वारा पुजा की विधि को संपन्न कर सूर्य कुण्ड से उबले हुए चावल का प्रसाद लेकर माँ यमुना का दर्शन किया और लगभग साढ़े तीन बजे जानकी चट्टी के लिए प्रस्थान किए और शाम को छः बजे बड़कोट के लिए रवाना हो गए . बड़कोट से चार किलोमीटर पहले एक होटल दिखा. उसके आस-पास का नज़ारा भी प्यारा था. होटल वाले से बात की और हमलोग वहीँ रुक गए. 
यमनोत्री में हिमालय पर्वत की एक चोटी का नाम बन्दरपुच्छ है, जिसे सुमेरु भी कहते हैं. इसी सुमेरु पर्वत के एक भाग कालिंद पर्वत पर बर्फ की जमी झील एवं एक हिमनद (चंपासर ग्लेशियर) से यमुना, पतली धार के रूप में निकलती है, फिर 8 कि.मी. नीचे यमनोत्री धाम में आती है। चूँकि यमुना की उत्पत्ति कालिंद पर्वत पर हुई इस लिए इस का नाम कलिंदजा और कालिंदी भी है. शिवालिक पहाड़ियों में विचरण करती हुई यमुना नदी फैजाबाद (जिला सहारनपुर) के मैदानों में प्रवेश करती है और प्रयाग में आकर यमुना का अस्तित्व गंगा के विशाल व्यक्तित्व में विलीन हो जाता है, लेकिन इससे इसका महत्व थोड़ा भी कम नहीं होता। जहां गंगा आध्यात्मिकता , पवित्रता और पाप से मुक्ति की नदी है , वहीं यमुना प्रेम की प्रतीक है।
माना जाता है कि यमुना देवी सूर्य देवता और सरनु देवी की बेटी और भगवान यम की बहन है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यमुना को कृष्ण की चौथी पत्नी माना जाता है। मंदिर भक्तों के लिए सुबह 6.00 से रात 8.00 बजे तक खुला रहता है। 
यमनोत्री धाम में यमुना जी की पूजा , कृष्ण की रानी के रूप में की जाती है और उन्हें वही वस्तुएं भेंट की जाती हैं , जो हम नववधू को देते हैं , जैसे पूजा की थाली में मिठाई , लाल-सुनहरी चुनरी , चूड़ियां , सिंदूर , शीशा , नारियल , फूल और मिठाई आदि। महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा पर आए तो वे पहले यमुनोत्री , तब गंगोत्री फिर केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की जाती है।
आइए! आप लोग यहाँ की झलकियाँ तस्वीरों के माध्यम से देखें :









गौरी कुण्ड 

सूर्य कुण्ड 

दिव्य शिला 




शेष  26-10-2018 के  अंक में .................................

भाग -1  पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व

भाग -2 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :

“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व


भाग -3 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :


आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3)  हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)

भाग -4 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :


आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4)  लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा 


©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Wednesday, October 17, 2018

फोटोग्राफी : पक्षी 63 (Photography : Bird 63)


Photography: (dated 04 09 2018 06:15 AM )

Place : Tisa, Vill- Chachoga, Himachal Pradesh, India

Himalayan Bulbul

The Himalayan bulbul , or white-cheeked bulbul, is a species of songbird in the bulbul family found in central Asia. Its head, throat, and crest are black and white. The backside, and lengthy tail are brown, the underside is pale yellow.
White-Cheeked Himalayan Bulbul is the national bird of Bahrain.


Scientific name:  Pycnonotus leucogenys
Photographer :   Rakesh kumar srivastava

हिमालयी बुलबुल  या सफेद-गाल वाली बुलबुल, मध्य एशिया में पाए जाने वाले बुलबुल परिवार में सॉन्गबर्ड प्रजाति का एक पक्षी है। इसका सिर, गले और कलग़ी, काले और सफेद रंग के होते हैं। पीठ और लंबी पूंछ भूरे रंग के होते हैं और पेट निचला हिस्सा पीले रंग का होता है।

यह बहरीन का राष्ट्रीय पक्षी है।

वैज्ञानिक नाम: पिकोनोटोटस ल्यूकोजेनीस
फोटोग्राफर: राकेश कुमार श्रीवास्तव

अन्य भाषा में नाम :-



Gujarati: કનરા બુલબુલ; Nepali: तार्के जुरेली; Tamil: இமயமலை சின்னான்; 
Bhojpuri: हिमालयी बुलबुल  ; Hindi: हिमालयी-पहाड़ी-बुलबुल 








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©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"






Friday, October 12, 2018

आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4)


(भाग – 4)
लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा







आपने अभी तक “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व” एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3)  हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश) में पढ़ा कि कैसे ब्लॉग एवं अन्य माध्यम से जानकारी जुटा कर मैंने यात्रा से संबंधित एक बारह दिवसीय कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाई. जब विश्वसनीय वेब-साईट से पता चला कि सड़क एवं मौसम यात्रा के लिए अनुकूल है तब जाकर हमलोग ने अपनी यात्रा प्रारंभ की. रास्ते में लकड़ी माफ़िया का कारवाँ देख कर जंगल एवं पहाड़ों की दुर्दशा का कारण सहज ही समझ में आ रहा था. हरिद्वार में यातायात समस्या से दो-चार होते हुए सुबह 6:30 बजे “हर की पौड़ी” पहुँचे और गंगा स्नान एवं शाम की आरती देख कर सहज ही मन में भक्ति भाव की लहरें उमड़ रही थी. “हर की पौड़ी” की मनोरम दृश्य को दिल में सहेज कर यात्रा का  अगला पड़ाव बड़कोट जाने का सपना लिए हम  सभी अपने-अपने बिस्तर पर सो गए.      
अब आगे ....

सुबह 5: 30 बजे हमलोग बड़कोट के लिए रवाना हो गए. इससे दो फायदा हुआ एक तो हरिद्वार से “हर की पौड़ी” के बीच की वाहनों की भीड़ से बच गए और हमें अतिरिक्त दो घंटे मिले जिसमें ऋषिकेश का संक्षिप्त भ्रमण हो सका. तो हमलोगों का पहला पड़ाव ऋषिकेश था. हमलोग करीब 6:30 बजे ऋषिकेश पहुँचे. लक्ष्मण झुला से लगभग एक किलोमीटर पहले कार पार्किंग में कार खड़ी की कार पार्किंग के पीछे गंगा बह रही थी. गंगा के शीतल जल को छू कर आने वाली सुबह की हवा, मन-मस्तिष्क में आनंद संचार कर रही थी. कुछ समय वहाँ बिताने के बाद 7 बजे हमलोग लक्ष्मण झुला देखने पहुँचे. रास्ते में एक चौक पर श्री लक्ष्मण जी  की आदम कद प्रतिमा लगी हुई थी जो बरबस सभी को आकर्षित कर रही थी .



लक्ष्मण झुला जाते समय एक रास्ता गंगा किनारे जा रहा था. नदी के किनारे छोटे-बड़े पत्थर फैले हुए थे और कहीं पत्थरों के ढेर लगे हुए थे. नदी के बीच कुछ लोग राफ्टिंग का आनंद ले रहे थे. नदी के दोनों तटों पर पुरुष, महिलाएँ एवं बच्चे जल-क्रीड़ा का आनंद ले रहे थे. हम सभी भी गंगा की मंद गति से बहते  जल और मंद गति से बहती शीतल हवा के प्रभाव में आकर वहाँ पहुँचने के लिए उतावले हो रहे थे. परन्तु हमलोगों ने खुद को समझाया कि पहले हमलोग लक्ष्मण झुला देखेंगे उसके बाद आस-पास के  मंदिरको  देख  कर लौटेंगे फिर यहाँ आकर मस्ती करेंगे.

कुछ ही देर में गंगा नदी के दोनों किनारों पर दो-दो स्तम्भ एवं लोहे के रस्सियों पर टिका एवं हवा में लटका हुआ विशाल सेतु हमलोगों के सामने था. सेतु के दुसरे छोड़ पर, बायीं तरफ एक बहुमंजिला पिरामिड के आकार का भव्य "तेरा मंजिला मंदिर", सेतु के नीचे बहती गंगा नदी और पहाड़ी से घिरा यह सेतु, सभी मिलकर अनुपम छटा बिखेर रहे थे और सभी तीर्थ यात्री कुछ पल के लिए ठिठक कर  रुकते और इस नयनाभिराम स्थल को अपलक देख हुए सेतु की तरफ बढ़ते. सेतु, झूले जैसा लगता है जब आप इस सेतु से गुजरते है और रामायण काल में श्री लक्ष्मण जी जूट के रस्सी से बने सेतु से गंगा जी को पार किया था. इसलिए इसका नाम लक्ष्मण झुला पड़ा. सेतु को पार करते ही शंकर जी की मूर्ति चौक पर विराजमान मिलती है. आस-पास के मंदिर दर्शन कर हमलोग आधा घंटा गंगा नदी के लहरों के साथ मौज-मस्ती कर बड़कोट के लिए प्रस्थान किए तो रास्ते में राम झुला दिखा जिसका रामायण काल से कोई लेना-देना नहीं है. आइए आप लोग यहाँ की झलकियाँ तस्वीरों के माध्यम से देखें :








हमलोगों का काफिला राम झुला का दर्शन कर आगे बढा तो ऋषिकेश में सैलानियों का हुजूम चारों तरफ मौजूद था परन्तु  सब के मकसद अलग-अलग थे . कोई गर्मी से निजात पाने के लिए, तो कोई एड्वेंचर के लिए, कोई प्रकृति का नज़ारा लेने के लिए, तो कोई  तीर्थ यात्रा के लिए और कुछ विदेशी सैलानी भारत को जानने के लिए. खैर! कुछ दुर  भीड़-भाड़ का नज़ारा देखने को मिला. उसके बाद भीड़-भाड़ से निजात मिल गई  और  हमारी कार  चमकते हुई चौड़ी सड़कों पर सरपट भागने लगी, लगा ही नहीं कि हम दुर्गम पहाड़ी पर चढ़ रहें हैं. वहाँ की सड़कें जी.टी. रोड जैसी   लग रही  थी  और उस पर सुविधा यह कि टोल टैक्स भी नहीं देना पड़ रहा था.



हमलोग एक घंटे के बाद रास्ते में टी-ब्रेक लिए और दोपहर के भोजन के लिए चंबा में रुके. 
चंबा होटल के पीछे का दृश्य 


अखरोट का पेड़ 

हरा अखरोट 

जब हमलोग धरासू से बड़कोट के तरफ जैसे ही मुड़े थे कि मौसम अपना तेवर दिखाना शुरू कर दिया. अचानक काले बादलों  ने पहाड़ों को चारों तरफ से  घेर लिया और सामने जो सड़क दिखी वो दिल दहलाने केलिए काफी थी. सड़क के नाम पर पत्थर एवं गड्ढ़े थे. सड़क निर्माण का कार्य अभी शुरू ही हुआ  था . करीब दो किलोमीटर हमलोगों की कार रेंगती हुई आगे बढ़ रही थी. खास्ता हाल सड़क एवं बूंदा-बांदी के कारण, हम सभी भगवान् से प्रार्थना कर रहे थे कि किसी तरह हमलोग बड़कोट पहुँच जाए. मुसलाधार बारिश हो रही थी परन्तु सड़कें अब अच्छी थी. कुछ देर के बाद मौसम और अधिक ऊचाई के कारण बच्चों को उल्टी और अचानक से ठंड लगने लगी. हमलोग घबड़ा गए. अभी भी बड़कोट पहुँचने में आधा घंटा लगना था, तभी अचानक एक छोटा पत्थर हमलोगों के कार के आगे गिर कर लुढ़कता हुआ गहरे खाई में चला  गया. भगवान्-भगवान् करते हुए करीब 7 बजे हमलोग  बड़कोट पहुँचे. जहाँ पर पहला होटल दिखा  हमलोग वहीं  रूक गए. जहाँ हमलोग रुके थे वहाँ से दाहिने तरफ यमनोत्री का रास्ता था और सीधा दो किलोमीटर पर बड़कोट क़स्बा था. हम सब असमंजस में थे कि बड़कोट क़स्बा चलें या यहीं पर रुकें. रास्ते में फर्स्ट-एड किट से उल्टी की दवा देने से बच्चों की स्थिति अब सामान्य लग रही थी. तब हमलोगों ने निर्णय लिया कि अभी यहीं रुकते है. बच्चे को आराम की आवश्यकता है और ख़ुदा न करे अगर तबियत ख़राब हुई तो कार से जाकर बच्चे को किसी डॉक्टर से दिखा लेंगे और अगर तबियत ज्यादा ख़राब हुई तो आगे की यात्रा नहीं करेंगे. कुछ देर आराम करने के बाद बच्चे फिर से सामान्य हुए तब जाकर सभी ने खाना खाया और बच्चे सो गए. 




बड़कोट होटल के पीछे का दृश्य 
शेष  19-10-2018 के  अंक में .................................

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“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व

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“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व


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आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3)  हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)

©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"