(भाग – 5)
यमनोत्री धाम की यात्रा
आपने अभी तक “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”, “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3) हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)” एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4) लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा” में पढ़ा कि कैसे ब्लॉग एवं अन्य माध्यम से जानकारी जुटा कर मैंने यात्रा से संबंधित एक बारह दिवसीय कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाई. जब विश्वसनीय वेब-साईट से पता चला कि सड़क एवं मौसम यात्रा के लिए अनुकूल है तब जाकर हमलोग ने अपनी यात्रा प्रारंभ की. “हर की पौड़ी” की मनोरम दृश्य को दिल में सहेज कर यात्रा का अगला पड़ाव बड़कोट के लिए रवाना हुए. हमलोगों की यात्रा लक्ष्मण झुला एवं राम झुला के दर्शन के बाद धरासू तक बहुत ही मजे में कटी, परन्तु धरासू से बड़कोट तक की यात्रा एक ईश्वरीय परीक्षा के समान गुजरी.
अब आगे ....
सुबह पाँच बजे सबसे पहले बच्चे ही उठे और उन्होंने ही कहा कि अब सब ठीक है. बच्चों की हालत में आश्चर्यजनक सुधार से हमलोग चकित थे. हमलोग भी उनके चेहरे को देख रहे थे सब सामान्य लग रहा था. सभी तरह से जाँच-परख लेने के बाद हमलोगों ने निर्णय लिया कि एक घंटे में तैयार होकर आगे की यात्रा शुरू की जायेगी और नियत समय पर हमरी यात्रा शुरू हुई. कल-कल करती नदी की जलधारा, चारों तरफ पहाड़, और नाना-प्रकार के पेड़ पौधे सब मिलकर आँखों के सामने एक मनमोहक कैनवास से लग रहे थे. हरे-भरे पहाड़, उन पर बने छोटे-छोटे मकान एवं सीढ़ीदार खेतों का दृश्य अपनी तरफ स्वतः आकृष्ट कर रहे थे. करीब एक घंटे बाद हमलोग नास्ता-चाय के लिए रानाचट्टी में रुके . हमलोग एक रेस्त्राँ के पास रुके और आलू-पराठे का ऑर्डर दिए तो रेस्त्राँ के कर्मचारियों ने आधा घंटे का समय माँगा परन्तु वे आधे घंटे में अपना वादा पूरा नहीं कर पाए तो हमलोगों ने केवल चाय-बिस्कुट से काम चलाया और जानकी चट्टी के लिए रवाना हो गए. सामान्यतः पहाड़ो पर व्यवसायिक जीवन सुबह नौ बजे के बाद ही शुरू होता है.
जानकी चट्टी पहुँचने से पहले रास्ते में दो पहाड़ ऐसे खड़े थे कि मानो आगे रास्ता बंद है परन्तु जैसे ही हम पहाड़ी को पार किए तो प्रकृति का विशाल एवं नयनाभिराम दृश्य हमलोगों के सामने था. हमलोग सवा आठ बजे जानकी चट्टी के टैक्सी स्टैंड पहुँचे.
बड़कोट से जानकी चट्टी की सड़कें आरामदायक थी . टैक्सी स्टैंड पर ही एक घोड़े वाला हमलोगों के पीछे पड़ गया. हमलोगों ने सोचा कि जब वैष्णव देवी की चौदह कि.मी. की यात्रा हमने अनेकों बार पैदल की है तो छः कि.मी. की यात्रा के लिए घोड़ा क्यूँ? परन्तु उसकी लगातार आग्रह एवं हमारी शर्तों पर चलने की उसकी सहमती हुई और हमने 800रु. एक घोड़ा आने-जाने के लिए ले लिया. सबसे पहले हम सभी ने पेट पूजा कर चाय पी. ठंड का असर था अतः हम सभी ने गर्म कपड़े पहन रखे थे. मुंबई तो यूँ ही बदनाम है, पहाड़ी इलाकों में भी बारिश कब शुरू हो जाए पता नहीं चलता और बारिश की बूंदें भी बर्फ जैसी ठंडी. तो, हम सब ने 20 रु. की एक-एक पतली पौलिथिन की बरसाती ख़रीद ली जिसको आप पैंट की जेब में आसानी से रख सकते हैं. दो-चार लकड़ी के डंडे भी सहारे के लिए ले लिए और घोड़े पर एक बैग और एक छोटी लड़की को बिठा कर चल पड़े यमनोत्री मंदिर दर्शन के लिए. जब हमलोग चले तो जानकी चट्टी टैक्सी स्टैंड पर लगे बोर्ड पर माँ यमनोत्री धाम 6 कि.मी. पैदल लिखा था और बाद में आधे घंटे लगभग 2 कि.मी. चलने पर एक बोर्ड मिला जिस पर लिखा था माँ यमनोत्री धाम 5.7 कि.मी. अब आप सोच सकते है कि ऐसी परिस्थिति में भक्तों पर क्या गुजरती है. खैर! भक्त भी कहाँ मानने वाले, माँ यमनोत्री धाम का रास्ता गाँव के बीचों-बीच से निकलती है.
मैंने महसूस किया कि पहाड़ में बसने वाले लोग सादगीपूर्ण जीवन जीते है और वृद्धावस्था में भी कठिन कार्य करते नज़र आते हैं. चढ़ाई के प्रारंभिक अवस्था में ही सभी तीर्थ यात्रियों का हाल वहाँ के स्थानीय लोगों के लिए अजूबा सा लगता है और वे मुस्कुराते हुए यात्रियों को देखते है और हमलोग उनकी वेशभूषा और सादगी को देख कर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ लेते हैं.
कुछ दूर चलने पर खुला स्थान मिला तो ऐसा लगा मानों घुटन भरी माहौल से निकल कर सीधे प्रकृति के गोद में आ गए. बायीं तरफ पहाड़ और उससे सटी साफ़-सुथरी एवं लोहे की सुंदर रंगों में रंगी रेलिंग के बीच चौड़ी सड़क, दायीं तरफ रेलिंग के साथ गहरी खाई और उस खाई में बलखाती यमुना नदी आपको बरबस आकर्षित करतीं हैं और आप वहाँ की तस्वीर अपने कैमरे में लेना चाहते है परन्तु जिस दृश्य को देखकर आपका मन पुलकित हुआ था वैसी तस्वीर कैमरे में कैद नहीं होने पर आप थोड़ा साहसिक हो उठते है. परन्तु मेरी सलाह है कि सावधानी अवश्य बरतें और संयम से काम लें.
खड़ी चढ़ाई होने कारण 6 कि.मी. की दूरी तय करना मुश्किल लग रहा था. अब लग रहा था कि घोड़ा किराए पर लेना ठीक रहा. बच्चे बदल-बदल कर घोड़े की सवारी कर रहे थे जिससे उन्हें चढ़ाई करने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई और समान भी उनके साथ होने से हमलोगों को भी राहत मिल रही थी. आखिर खाते-पीते रास्ता कट ही गया और करीब आधा किलोमीटर पहले से यमुना जी का पीताम्बर मंदिर के एक झलक मात्र से ही सारे कष्ट दूर हो गए. अनुपम और अलौकिक दृश्य था. अब चढ़ाई भी ख़त्म हो गई थी. हमलोग एक छोटे से सेतु को पार कर मंदिर के प्रांगन में दोपहर के लगभग डेढ़ बजे पहुँचे। जैसे अन्य धार्मिक स्थलों पर व्यवस्था की आराजकता रहती है वैसे ही यह स्थल भी अछूता नहीं था. वहाँ महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग कुण्ड है. उसी गौरी कुण्ड में गर्म पानी के स्नान मात्र से हमलोगों की थकान मिट गई और पुरे शारीर में एक नई उर्जा के संचार को हमलोगों ने महसूस किया. स्नान कर दिव्य शिला का दर्शन किया एवं पुरोहित द्वारा पुजा की विधि को संपन्न कर सूर्य कुण्ड से उबले हुए चावल का प्रसाद लेकर माँ यमुना का दर्शन किया और लगभग साढ़े तीन बजे जानकी चट्टी के लिए प्रस्थान किए और शाम को छः बजे बड़कोट के लिए रवाना हो गए . बड़कोट से चार किलोमीटर पहले एक होटल दिखा. उसके आस-पास का नज़ारा भी प्यारा था. होटल वाले से बात की और हमलोग वहीँ रुक गए.
यमनोत्री में हिमालय पर्वत की एक चोटी का नाम बन्दरपुच्छ है, जिसे सुमेरु भी कहते हैं. इसी सुमेरु पर्वत के एक भाग कालिंद पर्वत पर बर्फ की जमी झील एवं एक हिमनद (चंपासर ग्लेशियर) से यमुना, पतली धार के रूप में निकलती है, फिर 8 कि.मी. नीचे यमनोत्री धाम में आती है। चूँकि यमुना की उत्पत्ति कालिंद पर्वत पर हुई इस लिए इस का नाम कलिंदजा और कालिंदी भी है. शिवालिक पहाड़ियों में विचरण करती हुई यमुना नदी फैजाबाद (जिला सहारनपुर) के मैदानों में प्रवेश करती है और प्रयाग में आकर यमुना का अस्तित्व गंगा के विशाल व्यक्तित्व में विलीन हो जाता है, लेकिन इससे इसका महत्व थोड़ा भी कम नहीं होता। जहां गंगा आध्यात्मिकता , पवित्रता और पाप से मुक्ति की नदी है , वहीं यमुना प्रेम की प्रतीक है।
माना जाता है कि यमुना देवी सूर्य देवता और सरनु देवी की बेटी और भगवान यम की बहन है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यमुना को कृष्ण की चौथी पत्नी माना जाता है। मंदिर भक्तों के लिए सुबह 6.00 से रात 8.00 बजे तक खुला रहता है।
यमनोत्री धाम में यमुना जी की पूजा , कृष्ण की रानी के रूप में की जाती है और उन्हें वही वस्तुएं भेंट की जाती हैं , जो हम नववधू को देते हैं , जैसे पूजा की थाली में मिठाई , लाल-सुनहरी चुनरी , चूड़ियां , सिंदूर , शीशा , नारियल , फूल और मिठाई आदि। महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा पर आए तो वे पहले यमुनोत्री , तब गंगोत्री फिर केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की जाती है।
आइए! आप लोग यहाँ की झलकियाँ तस्वीरों के माध्यम से देखें :
भाग -1 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”
भाग -2 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”
भाग -3 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3) हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)”
भाग -4 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4) लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा”
सुबह पाँच बजे सबसे पहले बच्चे ही उठे और उन्होंने ही कहा कि अब सब ठीक है. बच्चों की हालत में आश्चर्यजनक सुधार से हमलोग चकित थे. हमलोग भी उनके चेहरे को देख रहे थे सब सामान्य लग रहा था. सभी तरह से जाँच-परख लेने के बाद हमलोगों ने निर्णय लिया कि एक घंटे में तैयार होकर आगे की यात्रा शुरू की जायेगी और नियत समय पर हमरी यात्रा शुरू हुई. कल-कल करती नदी की जलधारा, चारों तरफ पहाड़, और नाना-प्रकार के पेड़ पौधे सब मिलकर आँखों के सामने एक मनमोहक कैनवास से लग रहे थे. हरे-भरे पहाड़, उन पर बने छोटे-छोटे मकान एवं सीढ़ीदार खेतों का दृश्य अपनी तरफ स्वतः आकृष्ट कर रहे थे. करीब एक घंटे बाद हमलोग नास्ता-चाय के लिए रानाचट्टी में रुके . हमलोग एक रेस्त्राँ के पास रुके और आलू-पराठे का ऑर्डर दिए तो रेस्त्राँ के कर्मचारियों ने आधा घंटे का समय माँगा परन्तु वे आधे घंटे में अपना वादा पूरा नहीं कर पाए तो हमलोगों ने केवल चाय-बिस्कुट से काम चलाया और जानकी चट्टी के लिए रवाना हो गए. सामान्यतः पहाड़ो पर व्यवसायिक जीवन सुबह नौ बजे के बाद ही शुरू होता है.
जानकी चट्टी पहुँचने से पहले रास्ते में दो पहाड़ ऐसे खड़े थे कि मानो आगे रास्ता बंद है परन्तु जैसे ही हम पहाड़ी को पार किए तो प्रकृति का विशाल एवं नयनाभिराम दृश्य हमलोगों के सामने था. हमलोग सवा आठ बजे जानकी चट्टी के टैक्सी स्टैंड पहुँचे.
बड़कोट से जानकी चट्टी की सड़कें आरामदायक थी . टैक्सी स्टैंड पर ही एक घोड़े वाला हमलोगों के पीछे पड़ गया. हमलोगों ने सोचा कि जब वैष्णव देवी की चौदह कि.मी. की यात्रा हमने अनेकों बार पैदल की है तो छः कि.मी. की यात्रा के लिए घोड़ा क्यूँ? परन्तु उसकी लगातार आग्रह एवं हमारी शर्तों पर चलने की उसकी सहमती हुई और हमने 800रु. एक घोड़ा आने-जाने के लिए ले लिया. सबसे पहले हम सभी ने पेट पूजा कर चाय पी. ठंड का असर था अतः हम सभी ने गर्म कपड़े पहन रखे थे. मुंबई तो यूँ ही बदनाम है, पहाड़ी इलाकों में भी बारिश कब शुरू हो जाए पता नहीं चलता और बारिश की बूंदें भी बर्फ जैसी ठंडी. तो, हम सब ने 20 रु. की एक-एक पतली पौलिथिन की बरसाती ख़रीद ली जिसको आप पैंट की जेब में आसानी से रख सकते हैं. दो-चार लकड़ी के डंडे भी सहारे के लिए ले लिए और घोड़े पर एक बैग और एक छोटी लड़की को बिठा कर चल पड़े यमनोत्री मंदिर दर्शन के लिए. जब हमलोग चले तो जानकी चट्टी टैक्सी स्टैंड पर लगे बोर्ड पर माँ यमनोत्री धाम 6 कि.मी. पैदल लिखा था और बाद में आधे घंटे लगभग 2 कि.मी. चलने पर एक बोर्ड मिला जिस पर लिखा था माँ यमनोत्री धाम 5.7 कि.मी. अब आप सोच सकते है कि ऐसी परिस्थिति में भक्तों पर क्या गुजरती है. खैर! भक्त भी कहाँ मानने वाले, माँ यमनोत्री धाम का रास्ता गाँव के बीचों-बीच से निकलती है.
मैंने महसूस किया कि पहाड़ में बसने वाले लोग सादगीपूर्ण जीवन जीते है और वृद्धावस्था में भी कठिन कार्य करते नज़र आते हैं. चढ़ाई के प्रारंभिक अवस्था में ही सभी तीर्थ यात्रियों का हाल वहाँ के स्थानीय लोगों के लिए अजूबा सा लगता है और वे मुस्कुराते हुए यात्रियों को देखते है और हमलोग उनकी वेशभूषा और सादगी को देख कर मुस्कुराते हुए आगे बढ़ लेते हैं.
कुछ दूर चलने पर खुला स्थान मिला तो ऐसा लगा मानों घुटन भरी माहौल से निकल कर सीधे प्रकृति के गोद में आ गए. बायीं तरफ पहाड़ और उससे सटी साफ़-सुथरी एवं लोहे की सुंदर रंगों में रंगी रेलिंग के बीच चौड़ी सड़क, दायीं तरफ रेलिंग के साथ गहरी खाई और उस खाई में बलखाती यमुना नदी आपको बरबस आकर्षित करतीं हैं और आप वहाँ की तस्वीर अपने कैमरे में लेना चाहते है परन्तु जिस दृश्य को देखकर आपका मन पुलकित हुआ था वैसी तस्वीर कैमरे में कैद नहीं होने पर आप थोड़ा साहसिक हो उठते है. परन्तु मेरी सलाह है कि सावधानी अवश्य बरतें और संयम से काम लें.
खड़ी चढ़ाई होने कारण 6 कि.मी. की दूरी तय करना मुश्किल लग रहा था. अब लग रहा था कि घोड़ा किराए पर लेना ठीक रहा. बच्चे बदल-बदल कर घोड़े की सवारी कर रहे थे जिससे उन्हें चढ़ाई करने में ज्यादा परेशानी नहीं हुई और समान भी उनके साथ होने से हमलोगों को भी राहत मिल रही थी. आखिर खाते-पीते रास्ता कट ही गया और करीब आधा किलोमीटर पहले से यमुना जी का पीताम्बर मंदिर के एक झलक मात्र से ही सारे कष्ट दूर हो गए. अनुपम और अलौकिक दृश्य था. अब चढ़ाई भी ख़त्म हो गई थी. हमलोग एक छोटे से सेतु को पार कर मंदिर के प्रांगन में दोपहर के लगभग डेढ़ बजे पहुँचे। जैसे अन्य धार्मिक स्थलों पर व्यवस्था की आराजकता रहती है वैसे ही यह स्थल भी अछूता नहीं था. वहाँ महिलाओं और पुरुषों के लिए अलग-अलग कुण्ड है. उसी गौरी कुण्ड में गर्म पानी के स्नान मात्र से हमलोगों की थकान मिट गई और पुरे शारीर में एक नई उर्जा के संचार को हमलोगों ने महसूस किया. स्नान कर दिव्य शिला का दर्शन किया एवं पुरोहित द्वारा पुजा की विधि को संपन्न कर सूर्य कुण्ड से उबले हुए चावल का प्रसाद लेकर माँ यमुना का दर्शन किया और लगभग साढ़े तीन बजे जानकी चट्टी के लिए प्रस्थान किए और शाम को छः बजे बड़कोट के लिए रवाना हो गए . बड़कोट से चार किलोमीटर पहले एक होटल दिखा. उसके आस-पास का नज़ारा भी प्यारा था. होटल वाले से बात की और हमलोग वहीँ रुक गए.
यमनोत्री में हिमालय पर्वत की एक चोटी का नाम बन्दरपुच्छ है, जिसे सुमेरु भी कहते हैं. इसी सुमेरु पर्वत के एक भाग कालिंद पर्वत पर बर्फ की जमी झील एवं एक हिमनद (चंपासर ग्लेशियर) से यमुना, पतली धार के रूप में निकलती है, फिर 8 कि.मी. नीचे यमनोत्री धाम में आती है। चूँकि यमुना की उत्पत्ति कालिंद पर्वत पर हुई इस लिए इस का नाम कलिंदजा और कालिंदी भी है. शिवालिक पहाड़ियों में विचरण करती हुई यमुना नदी फैजाबाद (जिला सहारनपुर) के मैदानों में प्रवेश करती है और प्रयाग में आकर यमुना का अस्तित्व गंगा के विशाल व्यक्तित्व में विलीन हो जाता है, लेकिन इससे इसका महत्व थोड़ा भी कम नहीं होता। जहां गंगा आध्यात्मिकता , पवित्रता और पाप से मुक्ति की नदी है , वहीं यमुना प्रेम की प्रतीक है।
माना जाता है कि यमुना देवी सूर्य देवता और सरनु देवी की बेटी और भगवान यम की बहन है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यमुना को कृष्ण की चौथी पत्नी माना जाता है। मंदिर भक्तों के लिए सुबह 6.00 से रात 8.00 बजे तक खुला रहता है।
यमनोत्री धाम में यमुना जी की पूजा , कृष्ण की रानी के रूप में की जाती है और उन्हें वही वस्तुएं भेंट की जाती हैं , जो हम नववधू को देते हैं , जैसे पूजा की थाली में मिठाई , लाल-सुनहरी चुनरी , चूड़ियां , सिंदूर , शीशा , नारियल , फूल और मिठाई आदि। महाभारत के अनुसार जब पाण्डव उत्तराखंड की तीर्थयात्रा पर आए तो वे पहले यमुनोत्री , तब गंगोत्री फिर केदारनाथ होते हुए बद्रीनाथजी की ओर बढ़े थे, तभी से उत्तराखंड में चार धाम यात्रा की जाती है।
आइए! आप लोग यहाँ की झलकियाँ तस्वीरों के माध्यम से देखें :
गौरी कुण्ड |
सूर्य कुण्ड |
दिव्य शिला |
शेष 26-10-2018 के अंक में .................................
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”
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© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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