(भाग – 10)
आपने अभी तक “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”, “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3) हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)” , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4) लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा” , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5) यमनोत्री धाम की यात्रा”, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन”, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –7) गंगोत्री धाम की यात्रा", आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –8) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -1") एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –9) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -2")में पढ़ा कि कैसे ब्लॉग एवं अन्य माध्यम से जानकारी जुटा कर मैंने यात्रा से संबंधित एक बारह दिवसीय कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाई. जब विश्वसनीय वेब-साईट से पता चला कि सड़क एवं मौसम यात्रा के लिए अनुकूल है तब जाकर हमलोग ने अपनी यात्रा प्रारंभ की. “हर की पौड़ी”, ऋषिकेश, यमनोत्री, बड़कोट, उत्तरकाशी, गंगोत्री यात्रा एवं सिद्ध गुरु बाबा चौरंगीनाथ के मंदिर दर्शन की यादों को दिल में सहेज कर हेलिकॉप्टर द्वारा ज्योतिर्लिंग श्री केदारनाथ धाम दर्शन के लिए श्री केदारनाथ में कपूरथला के धर्मशाला में रुके.
अब आगे ....
जब हमलोग धर्मशाला में अपना सामान दो कमरों में व्यवस्थित कर आराम से बैठ कर आपस में हेलिकॉप्टर द्वारा रोमांचकारी यात्रा की चर्चा कर ही रहे थे कि हमारे पंडित जी एक लड़के के साथ कॉफ़ी ले कर उपस्थित हुए और बोले "महाराज जी ! आप पहले कॉफ़ी पी ले. उसके बाद हमलोग चार बजे यहाँ से प्रस्थान कर सबसे पहले श्री केदारनाथ जी की दर्शन करेंगे फिर संध्या आरती में सम्मलित होंगे और कल सुबह चार बजे मैं गर्म पानी भिजवा दूंगा आप लोग स्नान कर तैयार हो जाना तब हमलोग श्री केदारनाथ जी के रुद्राभिषेक के लिए चलेंगे." इस प्रकार विनम्रता पूर्वक निवेदन कर वे पुनः सायं चार बजे उपस्थित हुए और हमलोग उनके साथ श्री केदारनाथ जी के हेतु मंदिर पहुंचे. जगमोहन (असेंबली हॉल) के द्वार के सामने एक बहुत बड़ा नंदी बैल की मूर्ति मंदिर की रक्षा के लिए बैठा था. मंदिर में दर्शन हेतु भक्तों की कतार लग गई थी परन्तु अभी कतार छोटी थी और हमलोग उस कतार के हिस्सा हो गए.
थोड़ी ही देर में कतार बहुत लम्बी हो गई थी. दोपहर के विशेष पूजा के बाद मंदिर का कपाट भगवान् के विश्राम के लिए बंद थे. कपाट खुलते ही श्रद्धालुओं की पंक्ति आगे बढ़ने लगी और जब हमलोग मंदिर में प्रवेश किए तो दरवाजे पर दो द्वारपाल की मूर्ति थी. जब जगमोहन में प्रवेश किए आगे बायीं तरफ द्रौपदी सहित पाण्डवों की मूर्ति लगी हुई थी. जगमोहन में पार्वती जी का पाषाण विग्रह है । इनकी नित्य नियम रूप में पूजा होती है । आगे दाहिने मुड़ने पर बायीं तरफ साक्षात् शिव सम्पूर्ण श्रृंगार के साथ दर्शन दिए. उस दिव्य ज्योतिर्लिंग के सामने पीतल की एक छोटी नंदी की मूर्ति थी. इन दोनों के दर्शन मात्र से मन को असीम शांति मिल रही थी. हमलोग श्री केदारनाथ जी का दूर से दर्शन किए. जगमोहन में ही श्री ईशानेश्वर महादेव का ईशान कोण में शिवलिंग स्थित है उनका दर्शन कर निकास द्वार से हमलोग बाहर इस आशा से आए कि कल गर्भगृह में जा कर दिव्य ज्योतिर्लिंग को स्पर्श कर पाऊँगा. बाहर निकल कर दाहिने तरफ मुड़ा तो वहाँ एक कतार में विभिन्न प्रकार के भेष में साधु धूनी जमायें बैठे थे. हमलोगों ने मंदिर की परिक्रमा करने लगे तभी मंदिर के पीछे दिव्य शिला दिखा. 16 और 17 जून 2013 के उस हाहाकारी सैलाब को कोई कैसे भूल सकता है? उस विनाशकारी सैलाब ने पूरे केदारधाम को बर्बाद कर दिया था. मजबूत से मजबूत इमारतों को तिनके की तरह बहाता ले गया था वो सैलाब. महज कुछ मिनटों में ही केदारधाम का नामोनिशान मिटा गया. लेकिन अगर इस तबाही के बीच भी केदारनाथ का मंदिर चट्टान की तरह खड़ा रहा तो इसके पीछे कोई चमत्कार नहीं, वही दिव्य शिला थी.
हमलोग वहाँ नत-मस्तक हुए और भक्ति भाव से परिक्रमा पूरी कर मंदिर के पीछे भैरव नाथ मंदिर की तरफ बढ़े तो देखा भारत सरकार ने मंदिर को सुरक्षित रखने के लिए मंदिर से करीब दो सौ मीटर दूरी पर कंक्रीट की मोटी ऊँची दोहरी दीवार बना रखी है और दीवारों पर मनोरम शिव की झाँकी प्रदर्शित की गई है. दीवारों के ऊपर पहाड़ों का विहंगम दृश्य देखने के लिए छोटे यात्री दीर्घा बनाए गए हैं. दीवारों के बायीं तरफ अलकनंदा एवं दायीं तरफ सरस्वती बहती है और इन दोनों को यात्री दीर्घा से देखना किसी स्वर्ग में खड़े होकर देखने जैसा है.
जून 2013 की आपदा में मंदाकिनी व सरस्वती (स्थानीय नदी) नदियों का संगम मंदिर के पीछे होने से ही केदारपुरी में भारी तबाही मची थी। भविष्य में इसी तरह की आशंका को देखते हुए निम (नेहरू पर्वतारोहण संस्थान) ने इटालियन कंपनी नक्काफेरी के सहयोग से मंदिर के पीछे एक मीटर चौड़ी, ढाई मीटर गहरी, एक हजार फीट लंबी और बारह फीट ऊंची थ्री लेयर दीवार बनाई गई। इससे अब मंदिर के पीछे दोनों नदियों का संगम होने के आसार ना के बराबर रह गए हैं। अब केदारनाथ मंदिर से लगभग 500 मीटर पीछे अलग-अलग दिशाओं में मंदाकिनी व सरस्वती नदी बहती हैं और मंदिर से 300 मीटर नीचे इनका संगम होता है।
हमलोग भैरव मंदिर की तरफ आगे बढ़े परन्तु सरस्वती नदी को पार करने के लिए कोई सुरक्षित रास्ता नहीं था अतः हमलोग पुनः मंदिर वापस आ गए. वहाँ से थोड़ी दूरी पर एक होटल में समोसा, जलेबी एवं छोले-भठूरे खाए. शाम 7:30 बजे से 8:30 बजे तक मनोहारी आरती देख हमलोग अपने धर्मशाला में रात का भोजन कर सो गए.
केदारनाथ के संत और रावल (मुख्य पुजारी), केदारनाथ मंदिर की आरती में शामिल होते हैं. मुख्य पुजारी (रावल) कर्नाटक के वीराशिवा समुदाय से संबंधित हैं। मुख्य पुजारी श्री राजशेखर लिंग महाआरती में भाग लेते हैं. हालांकि, बद्रीनाथ मंदिर के विपरीत, केदारनाथ मंदिर का रावल पुजा नहीं करते हैं. पुजा रावल के सहायकों द्वारा उनके निर्देशों पर किए जाते हैं। सर्दियों के मौसम के दौरान रावल, देवता के साथ ऊखीमठ चले जाते हैं है। मंदिर के लिए पांच मुख्य पुजारी हैं, और वे रोटेशन द्वारा एक वर्ष के लिए मुख्य पुजारी बन जाते हैं। केदारनाथ में भगवान शिव की पूजा के दौरान मंत्र कन्नड़ भाषा में उच्चारण किए जाएंगे। यह सैकड़ों वर्षों से एक रीति रही है. मंदिर के गर्भगृह में एक त्रिकोणीय आकार की ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है। उत्तराखंड में 7वीं से 11वीं शताब्दी में कत्यूर वंश के राजाओं ने कई मंदिरों का निर्माण करवाया. विशेष आकार और प्रकार की इस शैली को नागर या रेखा शिखर शैली (इंडो-आर्यन शैली) बाद में कत्यूर शैली कहा गया. मंदिर के ऊपर 20 द्वार की चौखुटी है व सबसे ऊपर सुनहरा कलश है। (चित्र शीर्षक के साथ दिया गया है)
सुबह चार बजे पंडित जी ने गर्म पानी का व्यवस्था कर जल्दी से तैयार हो कर मंदिर चलने का निर्देश दिया और हमलोगों ने उनका निर्देश को पालन कर बच्चों को छोड़ हमलोग केदारनाथ जी के रुद्राभिषेक के लिए पंडित जी के साथ निकल पड़े. लगभग आधे घंटे तक मंत्रौच्चारण के साथ महादेव जी का रुद्राभिषेक किए. पंडित जी ने जब एक गमछा गले में डाला तो मैं भाव-विभोर हो कर कातर नज़रों से ज्योतिर्लिंग को देखा और मन में कहा- हे महादेव! आप कितने कृपालु है कि मुझ जैसे तुच्छ प्राणी को ऐसा सौभाग्य प्रदान किया है. आज मेरे 21 वीं शादी की सालगिरह पर आपका आशीर्वाद मिलना किसी स्वप्न जैसा ही है." महा-मृतुन्जय का जाप करते हुए हमदोनों पति-पत्नी गर्भ गृह से बाहर आए और धर्मशाला में पंडित जी को उचित दक्षिणा दे कर सामान के साथ वापस फाटा जाने के लिए हेली-पैड के पास पिनाकल के ऑफिस पहुँचे.
पूजा का समय-प्रातः एवं सायंकाल है। सुबह की पूजा निर्वाण दर्शन कहलाता है. इसमें शिवपिंड को प्राकृतिक रूप से पूजा जाता है। सायंकालीन पूजा को श्रृंगार दर्शन कहते हैं जब शिव पिंड को फूलो, आभूषणों से सजाते है। यह पूजा मंत्रोच्चारण, घंटीवादन एवं भक्तो की उपस्थिति में ही संपत्र किया जाता है।
शेष 30-11-2018 के अंक में .................................
भाग -1 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”
भाग -2 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”
भाग -3 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3) हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)”
भाग -4 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4) लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा”
भाग -5 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5) यमनोत्री धाम की यात्रा”
भाग -6 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन”
भाग -7 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –7) गंगोत्री धाम की यात्रा)
भाग -8 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –8) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -1"
भाग -9 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –9) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -2")
अब आगे ....
जब हमलोग धर्मशाला में अपना सामान दो कमरों में व्यवस्थित कर आराम से बैठ कर आपस में हेलिकॉप्टर द्वारा रोमांचकारी यात्रा की चर्चा कर ही रहे थे कि हमारे पंडित जी एक लड़के के साथ कॉफ़ी ले कर उपस्थित हुए और बोले "महाराज जी ! आप पहले कॉफ़ी पी ले. उसके बाद हमलोग चार बजे यहाँ से प्रस्थान कर सबसे पहले श्री केदारनाथ जी की दर्शन करेंगे फिर संध्या आरती में सम्मलित होंगे और कल सुबह चार बजे मैं गर्म पानी भिजवा दूंगा आप लोग स्नान कर तैयार हो जाना तब हमलोग श्री केदारनाथ जी के रुद्राभिषेक के लिए चलेंगे." इस प्रकार विनम्रता पूर्वक निवेदन कर वे पुनः सायं चार बजे उपस्थित हुए और हमलोग उनके साथ श्री केदारनाथ जी के हेतु मंदिर पहुंचे. जगमोहन (असेंबली हॉल) के द्वार के सामने एक बहुत बड़ा नंदी बैल की मूर्ति मंदिर की रक्षा के लिए बैठा था. मंदिर में दर्शन हेतु भक्तों की कतार लग गई थी परन्तु अभी कतार छोटी थी और हमलोग उस कतार के हिस्सा हो गए.
थोड़ी ही देर में कतार बहुत लम्बी हो गई थी. दोपहर के विशेष पूजा के बाद मंदिर का कपाट भगवान् के विश्राम के लिए बंद थे. कपाट खुलते ही श्रद्धालुओं की पंक्ति आगे बढ़ने लगी और जब हमलोग मंदिर में प्रवेश किए तो दरवाजे पर दो द्वारपाल की मूर्ति थी. जब जगमोहन में प्रवेश किए आगे बायीं तरफ द्रौपदी सहित पाण्डवों की मूर्ति लगी हुई थी. जगमोहन में पार्वती जी का पाषाण विग्रह है । इनकी नित्य नियम रूप में पूजा होती है । आगे दाहिने मुड़ने पर बायीं तरफ साक्षात् शिव सम्पूर्ण श्रृंगार के साथ दर्शन दिए. उस दिव्य ज्योतिर्लिंग के सामने पीतल की एक छोटी नंदी की मूर्ति थी. इन दोनों के दर्शन मात्र से मन को असीम शांति मिल रही थी. हमलोग श्री केदारनाथ जी का दूर से दर्शन किए. जगमोहन में ही श्री ईशानेश्वर महादेव का ईशान कोण में शिवलिंग स्थित है उनका दर्शन कर निकास द्वार से हमलोग बाहर इस आशा से आए कि कल गर्भगृह में जा कर दिव्य ज्योतिर्लिंग को स्पर्श कर पाऊँगा. बाहर निकल कर दाहिने तरफ मुड़ा तो वहाँ एक कतार में विभिन्न प्रकार के भेष में साधु धूनी जमायें बैठे थे. हमलोगों ने मंदिर की परिक्रमा करने लगे तभी मंदिर के पीछे दिव्य शिला दिखा. 16 और 17 जून 2013 के उस हाहाकारी सैलाब को कोई कैसे भूल सकता है? उस विनाशकारी सैलाब ने पूरे केदारधाम को बर्बाद कर दिया था. मजबूत से मजबूत इमारतों को तिनके की तरह बहाता ले गया था वो सैलाब. महज कुछ मिनटों में ही केदारधाम का नामोनिशान मिटा गया. लेकिन अगर इस तबाही के बीच भी केदारनाथ का मंदिर चट्टान की तरह खड़ा रहा तो इसके पीछे कोई चमत्कार नहीं, वही दिव्य शिला थी.
हमलोग वहाँ नत-मस्तक हुए और भक्ति भाव से परिक्रमा पूरी कर मंदिर के पीछे भैरव नाथ मंदिर की तरफ बढ़े तो देखा भारत सरकार ने मंदिर को सुरक्षित रखने के लिए मंदिर से करीब दो सौ मीटर दूरी पर कंक्रीट की मोटी ऊँची दोहरी दीवार बना रखी है और दीवारों पर मनोरम शिव की झाँकी प्रदर्शित की गई है. दीवारों के ऊपर पहाड़ों का विहंगम दृश्य देखने के लिए छोटे यात्री दीर्घा बनाए गए हैं. दीवारों के बायीं तरफ अलकनंदा एवं दायीं तरफ सरस्वती बहती है और इन दोनों को यात्री दीर्घा से देखना किसी स्वर्ग में खड़े होकर देखने जैसा है.
जून 2013 की आपदा में मंदाकिनी व सरस्वती (स्थानीय नदी) नदियों का संगम मंदिर के पीछे होने से ही केदारपुरी में भारी तबाही मची थी। भविष्य में इसी तरह की आशंका को देखते हुए निम (नेहरू पर्वतारोहण संस्थान) ने इटालियन कंपनी नक्काफेरी के सहयोग से मंदिर के पीछे एक मीटर चौड़ी, ढाई मीटर गहरी, एक हजार फीट लंबी और बारह फीट ऊंची थ्री लेयर दीवार बनाई गई। इससे अब मंदिर के पीछे दोनों नदियों का संगम होने के आसार ना के बराबर रह गए हैं। अब केदारनाथ मंदिर से लगभग 500 मीटर पीछे अलग-अलग दिशाओं में मंदाकिनी व सरस्वती नदी बहती हैं और मंदिर से 300 मीटर नीचे इनका संगम होता है।
हमलोग भैरव मंदिर की तरफ आगे बढ़े परन्तु सरस्वती नदी को पार करने के लिए कोई सुरक्षित रास्ता नहीं था अतः हमलोग पुनः मंदिर वापस आ गए. वहाँ से थोड़ी दूरी पर एक होटल में समोसा, जलेबी एवं छोले-भठूरे खाए. शाम 7:30 बजे से 8:30 बजे तक मनोहारी आरती देख हमलोग अपने धर्मशाला में रात का भोजन कर सो गए.
केदारनाथ के संत और रावल (मुख्य पुजारी), केदारनाथ मंदिर की आरती में शामिल होते हैं. मुख्य पुजारी (रावल) कर्नाटक के वीराशिवा समुदाय से संबंधित हैं। मुख्य पुजारी श्री राजशेखर लिंग महाआरती में भाग लेते हैं. हालांकि, बद्रीनाथ मंदिर के विपरीत, केदारनाथ मंदिर का रावल पुजा नहीं करते हैं. पुजा रावल के सहायकों द्वारा उनके निर्देशों पर किए जाते हैं। सर्दियों के मौसम के दौरान रावल, देवता के साथ ऊखीमठ चले जाते हैं है। मंदिर के लिए पांच मुख्य पुजारी हैं, और वे रोटेशन द्वारा एक वर्ष के लिए मुख्य पुजारी बन जाते हैं। केदारनाथ में भगवान शिव की पूजा के दौरान मंत्र कन्नड़ भाषा में उच्चारण किए जाएंगे। यह सैकड़ों वर्षों से एक रीति रही है. मंदिर के गर्भगृह में एक त्रिकोणीय आकार की ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है। उत्तराखंड में 7वीं से 11वीं शताब्दी में कत्यूर वंश के राजाओं ने कई मंदिरों का निर्माण करवाया. विशेष आकार और प्रकार की इस शैली को नागर या रेखा शिखर शैली (इंडो-आर्यन शैली) बाद में कत्यूर शैली कहा गया. मंदिर के ऊपर 20 द्वार की चौखुटी है व सबसे ऊपर सुनहरा कलश है। (चित्र शीर्षक के साथ दिया गया है)
सुबह चार बजे पंडित जी ने गर्म पानी का व्यवस्था कर जल्दी से तैयार हो कर मंदिर चलने का निर्देश दिया और हमलोगों ने उनका निर्देश को पालन कर बच्चों को छोड़ हमलोग केदारनाथ जी के रुद्राभिषेक के लिए पंडित जी के साथ निकल पड़े. लगभग आधे घंटे तक मंत्रौच्चारण के साथ महादेव जी का रुद्राभिषेक किए. पंडित जी ने जब एक गमछा गले में डाला तो मैं भाव-विभोर हो कर कातर नज़रों से ज्योतिर्लिंग को देखा और मन में कहा- हे महादेव! आप कितने कृपालु है कि मुझ जैसे तुच्छ प्राणी को ऐसा सौभाग्य प्रदान किया है. आज मेरे 21 वीं शादी की सालगिरह पर आपका आशीर्वाद मिलना किसी स्वप्न जैसा ही है." महा-मृतुन्जय का जाप करते हुए हमदोनों पति-पत्नी गर्भ गृह से बाहर आए और धर्मशाला में पंडित जी को उचित दक्षिणा दे कर सामान के साथ वापस फाटा जाने के लिए हेली-पैड के पास पिनाकल के ऑफिस पहुँचे.
पुरोहित जी के साथ |
शेष 30-11-2018 के अंक में .................................
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”
भाग -3 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
भाग -4 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4) लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा”
भाग -5 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5) यमनोत्री धाम की यात्रा”
भाग -6 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन”
भाग -7 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –7) गंगोत्री धाम की यात्रा)
भाग -8 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –8) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -1"
भाग -9 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –9) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -2")
© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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