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Thursday, August 29, 2013

बाबा हरभजन सिंह : एक अशरीर भारतीय सैनिक


बाबा हरभजन सिंह : एक अशरीर भारतीय सैनिक 


फोटो- राकेश कुमार श्रीवास्तव 


कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊँगा
मैं  तो  दरिया  हूं,  समन्दर में  उतर जाऊँगा
- अहमद नदीम क़ासमी


क्या आपने कभी पढ़ा या सुना है कि कोई व्यक्ति, मृत्युपरांत  सरकारी कार्य हेतु किसी पद पर कार्यरत हो एवं उसकी पदोन्नति भी होती हो? जी हाँ! मैं ऐसी ही एक अविश्वस्नीय परन्तु वास्तविक घटना से आपको रुबरु कराता हूँ। 

अक्सर ऐसा होता है कि हमलोगों को अपने आस-पास की घटनाओं, स्थलों या व्यक्तियों के बारे में किसी दूर अनजान जगह के लोगों से पता चलता है।  ऐसे ही एक व्यक्ति थे बाबा हरभजन सिंह और उनकी समाधि पूर्वी सिक्किम में है।  जब मैं वहाँ गया तो पता चला कि  बाबा हरभजन सिंह पंजाब में कपूरथला जिला के कूका गाँव के रहने वाले थे जो की मेरी कर्मस्थली से 30 कि.मी. की  दूरी  पर स्थित है।  जब मैं उनके समाधि स्थल पर श्रद्धा -सुमन अर्पण कर बाहर निकला तो उनके बारे में जानने की  उत्सुकता बढ़ी और जो जानकारी मुझे मिली उसे मैं आपलोगों से सांझा करने जा रहा हूँ। 

इनका जन्म 30 अगस्त 1946 को ज़िला गुजराँवाला  (वर्तमान में पाकिस्तान का हिस्सा के सरदाना गाँव में हुआ और बाद में उनका परिवार पंजाब में कपूरथला  जिला, नडाला तह्सील  के कूका गाँव में बस गए ।  बाबा हरभजन सिंह, 9 फरवरी 1966 को भारतीय सेना के पंजाब रेजिमेंट में सिपाही के पद पर भर्ती हुए।  वह 1968 में 23वें पंजाब रेजिमेंट के साथ पूर्वी सिक्किम में सेवारत थे।  4 अक्टूबर 1968 को खच्चरों  का  काफिला लेकर, पूर्वी सिक्किम के तुकु ला से डोंगचुई तक ,  जाते वक्त पाँव फिसलने के कारण एक नाले में गिरने से मृत्यु हो गई एवं पानी के तेज बहाव होने के कारण उनका पार्थिव शरीर बहकर घटना स्थल से 2 कि.मी. की दूरी पर जा पहुँचा।  जब भारतीय सेना ने बाबा हरभजन सिंह की खोज-खबर लेनी शुरू की, तो तीन दिन बाद उनका पार्थिव शरीर मिला।  ऐसा विश्वास है कि उन्होंने  स्वयं एक राहगीर के वेश में अपनी मृत्यु की  घटना के बारे में विस्तृत जानकारी भारतीय सेना के जवानों को दी। 

                       

 मृत्युपरांत, बाबा हरभजन सिंह अपने साथियों को नाथु ला के आस-पास चीन की  सैनिक गतिविधियों की जानकारी अपने मित्रों को सपनों में देते, जो हमेशा सत्य होती  थी । तभी से बाबा हरभजन सिंह अशरीर भारतीय सेना की सेवा करते आ रहें हैं  और इसी तथ्य के मद्देनज़र उनको  मृत्युपरांत अशरीर भारतीय सेना की सेवा में रखा गया है तथा उनकी एक समाधि  भी बनवाई गई । श्रद्धालुओं  की सुविधा को ध्यान में रखते हुए पुनः उनकी समाधि को 9 कि. मी. नीचे 11  नवंबर 1982  कॊ  भारतीय सेना के द्वारा बनवाया गया। मान्यता यह है कि यहाँ रखे पानी की बोतल में चमत्कारिक गुण आ जाते हैं और इसका 21 दिन सेवन करने से श्रद्धालु अपने रोगों से छुटकारा पा जाते  है। 




विगत 45 साल में इनकी पद्दौन्नति  सिपाही से कैप्टन की हो गई है। चीनी सिपाहियों ने भी, उनको घोड़े पर सवार होकर रात में गश्त  लगाने की, पुष्टि की है। आस्था का आलम ये है कि जब भी भारत-चीन की सैन्य बैठक नाथुला में होती है तो उनके लिए एक खाली कुर्सी रखी जाती है। इसी आस्था एवं अशरीर सेवा के लिए भारतीय सेना , सेवारत मानते हुए, उनको हरेक वर्ष 15 सितंबर  से 15 नवंबर तक की छुट्टी मंजूर करती हैं और बड़ी श्रद्धा के साथ स्थानीय लोग एवं सैनिक एक जुलुस के रूप में, उनकी वर्दी, टोपी , जूते एवं साल भर का वेतन को  दो सैनिकों के  साथ,  सैनिक गाड़ी में नाथुला से  न्यू जलपाईगुड़ी रेलवे स्टेशन लाते हैं। वहाँ से डिब्रूगढ़ अमृतसर एक्सप्रेस से उन्हें जालंधर (पंजाब) लाया जाता है। यहाँ से सेना की गाड़ी उन्हें कूका गाँव उनके घर तक छोडऩे जाती है। वहाँ सब कुछ उनके माता जी को सौंपा जाता है फिर उसी ट्रेन से उसी आस्था एवं सम्मान के साथ उनके समाधि स्थल,  नाथुला लाया जाता है। आस्था कहीं अंध विश्वास न बन जाए इस लिए विगत दो वर्षों से अब यह यात्रा बंद कर दी गई  है।