मेम्बर बने :-

Wednesday, February 25, 2015

इश्क


इश्क

इश्क और आशिकी पर मुझे, कभी यकीं नहीं था,
किसी पर मर-मिटने पर मेरा, कभी यकीं नहीं था.

मैं तो था खुदगर्ज बड़ा, मैं खुदगर्जी में जीता था,
बे-वजह किसी को चाहने में, मेरा यकीं नहीं था.

समाज के दायरे में, सुकून से जी रहा था मैं,
रस्मों-रिवाजों को तोड़ने में, मेरा यकीं नहीं था.

नज़रें जब तुम से मिली, इश्क से मुलाकात हुई,
बिना हवस के इश्क पर मुझे, पहले यकीं नहीं था.

इश्क ही मजहब, इश्क इबादत, इश्क ही सब कुछ हो गया,
इश्क में ही रब दिखने लगा, जिस में मेरा यकीं नहीं था.

इश्क की चादर जिसने ओढ़ी, हर बला से महफूज रहे,
इश्क में होगी इतनी शक्ति, इस पर यकीं नहीं था.

इश्क खुदा की देन है “राही”, क्यूँ इससे महरूम रहें,
इश्क के असर को मैंने माना, जिस पर यकीं नहीं था.


- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Wednesday, February 11, 2015

तुम्हारा साथ








तुम्हारा साथ - 1


तूने मेरा साथ जब से दिया है,
मेरा जीवन तूने  बदल दिया है.

जी रहा था चैन से,
ये तूने क्या कर दिया है,
तू मेरे जिंदगी में आई,
मैंने चैन गवां दिया है। 

आसां सी जिंदगी को,
मैंने मुश्किल बना दिया है,
तुमसे लड़ी हैं आँखे जब से,
मैंने नींद गवां दिया है। 

साँसों में बस गई हो तुम,
दिल तुझ को दे दिया है,
जिंदा रहूँगा तेरे बगैर,
ये हक मैंने खो दिया है.

प्यार मिला है जब से तेरा,
तूने मुझे दीवाना कर दिया है,
उदासी, बेचैनी, निराशा को,
तब से मैंने भुला दिया है.

आँचल में बाँध कर प्यार मेरा,
जीवन रौशन कर दिया है,
” राही” का घर था वीराना,
तूने  खुशियों से भर दिया है.
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"