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Friday, January 30, 2015

यादें

                       




                    

      यादें


जीवन कैसे पल-पल बीता, याद नहीं कुछ आज तक,
चंद खट्टी-मीठी यादों के साये में, जी रहा हूँ आज तक। 

बेफिक्री में जीवन बीता, जब तक माँ का साया था,
अब ममतामयी माँ की यादों में, जी रहा हूँ आज तक। 

मेरा जीवन बेहतर करने को, पापा फटकार लगाते थे,
मुझे बचाने में, फिक्रमंद माँ, याद मुझे है आज तक। 

बड़ी बहन का प्यार अनोखा, संबल मुझको देता था,
मेरे लिए सबसे लड़ती-भिड़ती, याद मुझे है आज तक। 

पढ़-लिख कर जब मिली नौकरी, वो भी क्षण अनोखा था,
पिता ने गर्व से मुझे गले लगाया, याद मुझे है आज तक। 

सेहरा बाँध जब घोड़ी पर चढ़ने को, जैसे मैं तैयार हुआ,
गले लगाकर माँ का रोना, याद मुझे है आज तक। 

हुई शादी, मिला चाँद का टुकड़ा, खुशियों की सौगात मिली,
चाँद का साथ मिला जीवन में, निभा रही है साथ आज तक। 

अब अशक्त सा पड़ा हुआ हूँ, जीवन से अब डरा हुआ हूँ,
रंजो-गम से क्यों भरा है जीवन, नहीं समझा हूँ आज तक। 
                                                  - © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Thursday, January 1, 2015

सच

       






      सच


आँखों से मैंने जो भी देखा,
उसको सच माना मगर,
वो हमेशा सच ही होगा,
ऐसा भला होता है क्या?

जमीं और आसमां क्षितिज पर,
मिलते नज़र आते हैं मगर,
क्षितिज के पार नई दुनिया मिलेगी,
ऐसा भला होता है क्या?

रहते हैं वो इस फ़िराक में,
पड़ोसियों का घर कैसे जले, मगर,
घर जलेगा और वो बचेंगे,
ऐसा भला होता है क्या?

करनी ऐसी कि देखिए,
बोया है पेड़ बबूल का, मगर,
आशा करते हैं कि आम होगा,
ऐसा भला होता है क्या?

ज्ञान का अभाव है उनमें,
अँधेरे में तीर चलाते हैं मगर,
तीर हमेशा निशाने पर लगेगा,
ऐसा भला होता है क्या?

सुख-दुःख में कभी हम साथ थे,
अब वो दूर हो गए मगर,
नज़रें मिले और दिल में कसक न हो,
ऐसा भला होता है क्या?

वो जो चाहते हैं ,
उनको मिल जाता है मगर,
सब का नसीब उनके जैसा ही हो,
ऐसा भला होता है क्या?

- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"