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Wednesday, February 28, 2018

MEME SERIES - 2


Biweekly Edition ( पाक्षिक संस्करण ) 28'Feb to 13'March


मीम (MEME)

"यह एक सैद्धांतिक इकाई है जो सांस्कृतिक विचारों, प्रतीकों या मान्यताओं आदि को लेखन, भाषण, रिवाजों या अन्य किसी अनुकरण योग्य विधा के माध्यम से एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में पहँचाने का काम करती है। 

"मीम" शब्द प्राचीन यूनानी शब्द μίμημα; मीमेमा का संक्षिप्त रूप है जिसका अर्थ हिन्दी में नकल करना या नकल उतारना होता है। इस शब्द को गढ़ने और पहली बार प्रयोग करने का श्रेय ब्रिटिश विकासवादी जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिंस को जाता है जिन्होने 1976 में अपनी पुस्तक द सेल्फिश जीन (यह स्वार्थी जीन) में इसका प्रयोग किया था। इस शब्द को जीन शब्द को आधार बना कर गढ़ा गया था और इस शब्द को एक अवधारणा के रूप में प्रयोग कर उन्होने विचारों और सांस्कृतिक घटनाओं के प्रसार को विकासवादी सिद्धांतों के जरिए समझाने की कोशिश की थी। पुस्तक में मीम के उदाहरण के रूप में गीत, वाक्यांश, फैशन और मेहराब निर्माण की प्रौद्योगिकी शामिल है।"- विकिपीडिया से साभार.

MEME SERIES  - 2


By looking at this picture you might be having certain reaction in your mind, through this express your reaction as the title or the  caption. The selected title or caption of few people will be published in the next MEME SERIES POST.

इस तस्वीर को देख कर आपके मन में अवश्य ही किसी भी प्रकार के प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई होगी, तो उसी को शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)के रूप में व्यक्त करें। चुने हुए शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)को अगले MEME SERIES POST में प्रकाशित की जाएगी।
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Thank you very much dear friends for all your valuable captions in my previous post of MEME SERIES. Your participation and thoughts are deeply appreciated by me. Some of the best captions are listed below.

मेरे प्रिय मित्रों, आपके सभी बहुमूल्य शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION) के लिए धन्यवाद। मेरी पिछली MEME SERIES के पोस्ट पर आपकी भागीदारी और विचारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया, उनमें से कुछ बेहतरीन कैप्शन नीचे उल्लेखित हैं। 



अनीता लागुरी (अनु)
तराशने लगा हुं,खुद को इन ख्याली कागज के पन्नों में..!!!


Meena Bhardwaj

"कैनवास के रंग"


सुशील कुमार जोशी (SKJoshi)
कागज का आईना


Ravindra Singh Yadav
तस्वीर बने इक ऐसी, तक़दीर संवर जाए।

-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"






Friday, February 23, 2018

आह!



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आह! 

जीवन जीने के हैं  रंग निराले,
इसे चाहिए इक देह, दो निवाले। 

बचपन में तो माँ से ये सुख पाया,

अब रोटी ने ही मुझको  तड़पाया,
मेरी उम्र गुजरी इसी चक्कर में,
मिली रोटियां पर शरीर गवांया।

जीवन जीने के हैं  रंग निराले,

इसे चाहिए इक देह, दो निवाले।

उदर की ज्वाला कब  शांत होती  है,
इनके आगे देह कहाँ दिखती है ,
सभी की शांत हो उदरों की ज्वाला
इसकी लिए आम जनता पिसती  है।

जीवन जीने के हैं  रंग निराले,

इसे चाहिए इक देह, दो निवाले।


मेरी देह का जब मोल लगता है ,
तब भी कहाँ, सब का पेट भरता है,
करनी पड़ती है दिन में मजदूरी
तब जाकर सभी को चैन मिलता है।

जीवन जीने के हैं  रंग निराले,

इसे चाहिए इक देह, दो निवाले।

जो भी हैं हमसब के भाग्य-विधाता,
उनको हम पर तरस नहीं है आता,
हम मजदूरों का ही शोषण कर के
दानी बनने का नाटक है करता।

जीवन जीने के हैं  रंग निराले,

इसे चाहिए इक देह, दो निवाले।

घर, शिक्षा औ' स्वास्थ्य यहाँ सपना है,
हम को तो बस रोटी का रोना है,
सेठ का कुत्ता भी जीता शान से
नरक से बदहाल  जीवन अपना है।

जीवन जीने के हैं  रंग निराले,

इसे चाहिए इक देह, दो निवाले।

सदियों से यहाँ दो वर्ग रहते हैं ,
शोषक और शोषित इन्हें कहते हैं,
शोषक न माने किसी धर्म-जात को
पैसे को ये बस ख़ुदा मानते हैं।

जीवन जीने के हैं  रंग निराले,

इसे चाहिए इक देह, दो निवाले।


-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"


Wednesday, February 21, 2018

MEME SERIES - 1


Photography: (dated 10 09 2017 10:30 AM )

Place : ROSE GARDEN, CHANDIGARH, India

MEME SERIES  - 1
  
I captured a person in my camera with a click who himself captures people on his pages with a brush. 

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मैंने अपने कैमरे में एक ऐसे व्यक्ति को क़ैद कर लिया, जो खुद कोरे कागज पर ब्रश के द्वारा लोगों को क़ैद करता है।

इस तस्वीर को देख कर आपके मन में अवश्य ही किसी भी प्रकार के प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई होगी, तो उसी को शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)के रूप में व्यक्त करें। चुने हुए शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)को अगले MEME SERIES POST में प्रकाशित की जाएगी। 
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"






Friday, February 16, 2018

किला रायपुर (KILA RAIPUR)


82वाँ किला रायपुर खेल मेला 2018

यात्रा पूर्व :
आप माने या ना माने परन्तु सूचना क्रान्ति का लाभ पर्यटक सबसे ज्यादा उठाते हैं. किसी भी अज्ञात स्थान पर जाना हो तो किसी से कुछ भी पता करने की जरूरत नहीं पड़ती, बस गूगल मैप खोला और चल पड़े. पर्यटक को किसी स्थल का भ्रमण करना है तो जाने से पहले ही सम्पूर्ण जानकारी इंटरनेट से हासिल कर पूर्व-नियोजित कार्यक्रम के अनुसार ही किफायत और कम समय में यात्रा संपन्न कर लेते हैं . इस क्रांति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि किसी भी पर्यटन स्थल की जितनी जानकारी एक पर्यटक को होती है उतनी जानकारी वहाँ के स्थानीय लोगों को भी नहीं रहती . खैर ! मैंने तो इस बात को इस लिए छेड़ा है क्योंकि मुझे आपको 82 वाँ किला रायपुर खेल मेला 2018 के बारे में विस्तृत जानकारी देनी है. मैं, किला रायपुर, लुधियाना से करीब 82 कि.मी. की दूरी पर विगत 25 वर्षों से रह रहा हूँ और इस किला रायपुर खेल मेला की जानकारी अक्सर इस मेले के समाप्ति पर स्थानीय अखबारों के माध्यम से मिलती थी. किला रायपुर खेल मेला की अखबारों में रिपोर्टिंग पढ़ कर, मैं रोमांचित हो जाता था और अगले साल मैं इस मेले को देखने जरूर जाऊँगा, इस प्रण के साथ अगले साल का इंतज़ार करता. परन्तु जानकारी के अभाव में और अन्य कारणों से वहाँ के खेल का आनंद अभी तक  नहीं ले पाया था . यह संयोग मात्र है कि जनवरी’2018 में मैंने, अपने ब्लॉग मित्र के पोस्ट पर किला रायपुर के खेल मेला, जिसे रूरल ओलंपिक भी कहा जाता है, के बारे में पढ़ा. उत्सुकता वश मैंने इसके बारे में इंटरनेट पर तलाश शुरू की तो कोई ख़ास जानकारी हासिल नहीं हो पा रही थी और जब मैंने रूरल ओलंपिक लुधियाना सर्च किया तब जाकर किला रायपुर खेल मेले का आधिकारिक वेब-साईट (www.ruralolympic.net) मिली. इस वेब-साईट के माध्यम से पता चला कि 2, 3 एवं 4 फरवरी 2018 को किला रायपुर में खेल मेला आयोजित किया जाएगा. पूरा विवरण पढ़ने के बाद मैंने निर्णय लिया कि 4 फरवरी 2018 को  किला रायपुर जाऊँगा क्योंकि उस दिन रविवार की छुट्टी है और इसी दिन लगभग सभी खेलों का फाइनल मैच खेला जाना है. मैंने अपनी मंशा अपने भाई सुनील को बताई, तो वह भी साथ चलने को सहर्ष तैयार हो गया.

यात्रा प्रारंभ:
हम लोग तय कार्यक्रम के अनुसार 4 फरवरी 2018 को सुबह 10 बजे बुलेट मोटर-साईकल पर सवार होकर किला रायपुर के लिए रवाना हुए. 101 कि.मी. की यात्रा कर करीब दोपहर 12 बजे हम लोग किला रायपुर स्टेडियम पहुँचे. यहाँ इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि इस खेल को स्पोर्ट्स ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया, पर्यटन विभाग - भारत सरकार, पंजाब खेल विभाग पंजाब सरकार, पर्यटन विभाग - पंजाब सरकार एवं लुधियाना प्रशासन से मान्यता प्राप्त और एम आर एफ टायर जैसी कंपनी के प्रायोजक होने के बावजूद लुधियाना से लेकर किला रायपुर तक, इस खेल से सम्बंधित एक भी विज्ञापन नज़र नहीं आया. 

82 वाँ किला रायपुर खेल मेला 2018 की रिपोर्टिंग:

खैर! जब हम वहाँ पहुँचे, तो वहाँ का प्राकृतिक नज़ारा अद्भुत था. साफ नीले आकाश में सफ़ेद बादल ऐसे फैले हुए थे मानो कोई चितेरा अपनी कूची को सफ़ेद रंग में डुबो कर नीले कैनवस पर चित्र बनाने के लिए कहीं-कहीं हल्के स्ट्रोक्स का इस्तेमाल किया हो. चालीस हज़ार दर्शक दीर्घा वाले स्टेडियम में रंग-बिरंगी पोशाकों में एक तरफ दर्शक बैठे थे. जाड़े की गुनगुनी धूप के बीच भगवंत मेमोरियल गोल्ड कप हॉकी टूर्नामेंट का फाइनल मैच चल रहा था. मैंने सबसे पहले पूरे स्टेडियम का एक चक्कर लगा कर वहाँ के गतिविधियों का जायजा लिया. लगभग पचास की संख्या में मीडिया के पत्रकार, प्रेस-रिपोर्टर, फोटोग्राफर एवं विडियोग्राफर मैदान के अंदर मौजूद थे. हाथी एवं ऊँट दौड़ का आयोजन होना था इसलिए हाथी एवं ऊँट सज-धज कर अलग-अलग मैदान के दोनों छोर पर आमने-सामने खड़े थे. हॉकी मैच के बीच-बीच में 100, 200, 400 एवं 800 मी. की रेस चल रही थी और उद्घोषक विजेताओं के नाम के साथ-साथ उत्साहित दर्शकों द्वारा खिलाड़ियों के लिए अलग से नगद पुरस्कार की घोषणा भी कर रहे थे. हॉकी मैच टाई होने के बाद, बहुत ही रोमांचकारी ढंग से, पेनाल्टी शूट-आउट के आधार पर विजेता टीम का नाम घोषित किया गया. इसके बाद तो मानो दर्शकों का सैलाब सा आ गया. एक साथ कई इवेंट शुरू हो गए. कबड्डी, एथेलेटिक्स, ट्रैक्टर लोडिंग अन-लोडिंग, साइकिलिंग, जिम्नास्टिक, दिव्यांगों द्वारा हैरतअंगेज कारनामों वाले करतब एवं अन्य प्रतियोगिताएँ संपन्न हुईं. स्टेडियम लगभग खचाखच भरा हुआ था. इसी बीच हाथियों एवं ऊँटों की दौड़ शुरू हुई जिसे मैंने अपनी जीवन में पहली बार देखा, इस अनुभव को मैं अपने शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता. एक सौ बावन पतंगों को एक डोर में उड़ते हुए देख कर सभी अचंभित थे. वहाँ पर देश-विदेश से आए फोटोग्राफर भी उड़ती हुई पतंगों की तस्वीर लेने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे थे. सभी तरह की प्रतियोगिताएँ समाप्त हो जाने के बाद, बुलेट मोटर-साईकल पर महिला, पुरुष एवं एक महिला-पुरुष जोड़ी ने साहसिक करतब दिखा कर सभी दर्शकों को दाँतों तले उंगलियाँ दबाने पर मजबूर कर रहे थे, तभी एक पैरा-ग्लाइडर नीले आकाश में उड़ता दिखा. सभी दर्शकों की नज़रें आसमान में उड़ते उस पैरा-ग्लाइडर पर जम गई. पैरा-ग्लाइडर उड़ाने वाला भी पैरा-ग्लाइडर को पतंगों की डोर के कभी नीचे से तो कभी ऊपर से उड़ा कर सभी दर्शकों के होश उड़ा रहा था.

यात्रा समाप्ति पूर्व:

इन सब के बीच मैंने वहाँ के मेले का भी अवलोकन किया. सैकड़ों की संख्या में कार एवं मोटर-साईकल अलग-अलग स्टैंड पर व्यवस्थित ढंग से लगे हुए थे. तरह-तरह के पकवान, पेय पदार्थ, खिलौने एवं अन्य स्टॉल सजे हुए थे. स्टेडियम एवं उसके आस-पास की सफाई देख कर मुझे नहीं लगा कि मैं किसी गाँव के खेल मेले में आया हुआ हूँ. शाम को रंगारंग कार्यक्रम होने वाला था,  परन्तु मुझे वापस कपूरथला जाना था. अब मुझे 82वाँ किला रायपुर खेल मेला 2018 को अलविदा कहना पड़ा और दिलों में वहाँ की ढेर सारी यादों के साथ अपने गंतव्य स्थान के लिए इस उम्मीद से प्रस्थान किया कि अगले साल फिर आयेंगे.

किला रायपुर खेल मेला का संक्षिप्त परिचय:

लुधियाना से करीब 19 कि.मी. की दूरी पर है किला रायपुर, यहाँ के एक समाज सेवक इंदर सिंह ग्रेवाल ने वार्षिक मनोरंजक बैठक की कल्पना की, जिसमें किला रायपुर के आसपास के क्षेत्रों के किसानों के शारीरिक सहनशक्ति का परीक्षण किया जाए। इस विचार ने 1933 में किला रायपुर खेल मेले की नींव रखी और आज इसे पूरे विश्व में निर्विवाद रूप से "ग्रामीण ओलंपिक" या "मिनी ओलंपिक" के रूप में जाना जाता है

किला रायपुर खेल मेला आमतौर पर फरवरी के पहले सप्ताह के अंत में ग्रेवाल स्पोर्ट्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित किया जाता है। इस खेल मेले का एकमात्र उद्देश्य "स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग", जो ओलंपिक खेलों के लैटिन में सूत्रवाक्य सिटियस, एल्टियस, फोर्टियस जिसका हिंदी अनुवाद "तेज़, उच्च, मजबूत" से प्रेरित है।

बैल-गाड़ी एवं घोड़ा-खच्चर की दौड़ों पर सन् 2014 से रोक लगी हुई है, परन्तु इस बार विशेष देख-रेख में कुत्तों की दौड़ का भी आयोजन किया गया।


   












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-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Wednesday, February 14, 2018

फोटोग्राफी : पक्षी 48 (Photography : Bird 48 )



Photography: (dated 20 01 2018 12:00 PM )

Place : Kapurthala, Punjab, India

Spotted owlet

The spotted owlet is a small owl which breeds in tropical Asia from mainland India to Southeast Asia. A common resident of open habitats including farmland and human habitation, it has adapted to living in cities. They roost in small groups in the hollows of trees or in cavities in rocks or buildings. 

Scientific name:  Athene brama


Photographer   :  Rakesh kumar srivastava


खकूसट, खूसटिया या छुघड एक छोटा उल्लू है जो उष्णकटिबंधीय एशिया, मुख्यतः भारत से दक्षिण पूर्व एशिया तक,  में पाया जाता है। इसे खेत, खुली जगहों एवं शहरों में आम पाया जाने वाला पक्षी है। ये चट्टानों या इमारतों में, पेड़ों के छिलकों या गुहा में रहते हैं।

वैज्ञानिक नाम: एथेन ब्रेमा

फोटोग्राफर: राकेश कुमार श्रीवास्तव

अन्य भाषा में नाम:-

Assamese: কুৰুলী ফেঁচা; Bengali: খুঁড়ুলে পেঁচা; Gujarati: ચિબરી; Hindi: खकूसट, खूसटिया, छुघड; Kannada: ಹಾಲಕ್ಕಿ; Malayalam: പുള്ളി നത്ത്; Marathi: ठिपकेदार पिंगळा, घोगड; Nepali: कोचलगाँडे लाटोकोसेरो; Punjabi: ਚੁਗਲ; Sanskrit: कृकालिका, निशाटन, पिंगचक्षू, खर्गला, उलूक; Tamil: புள்ளி ஆந்தை


















-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"





Friday, February 9, 2018

जंग-ऐ-आज़ादी यादगार भवन


जंग-ऐ-आज़ादी यादगार भवन,
करतारपुर (जालंधर), पंजाब 
जंग-ऐ-आज़ादी यादगार भवन, करतारपुर (जालंधर), पंजाब के जीटी रोड पर स्थित है। मुझे जब भी कपूरथला से चंडीगढ़ या जालंधर कैंट जाना होता है तो मैं  करतारपुर से होकर आना-जाना पसंद करता हूँ क्योंकि इससे मैं जालंधर शहर के कई चौराहे पर लगे ट्रैफिक लाईट से बच जाता हूँ और इसी कारण आते-जाते इस जंग-ऐ-आज़ादी यादगार भवन-समूह के नयनाभिराम निर्माण की प्रक्रिया को देखता आया हूँ। 19 अक्टूबर 2014 को इसका नींव पत्थर रखा गया था और इसका निर्माण कार्य 26 मार्च 2015 को शुरू हुआ था। 6 नवम्बर 2016 को जंग-ए-आज़ादी मेमोरियल को राष्ट्र को समर्पित किया गया। ऐसे तो इसका निर्माण कार्य अभी भी चल रहा है।   जंग-ऐ-आज़ादी यादगार भवन, वाहनों की पार्किंग के लिए लगभग 5 एकड़ भूमि के साथ 25 एकड़ में फैली हुई है एवं इसका अनुमानित लागत 200 करोड़ रूपए है।

जंग-ऐ-आज़ादी यादगार भवन-समूह का वास्तु-शिल्प अद्भुत है और आप इसे घंटो तक निहार सकते है।  इसमें दो बड़े  ( 43.08 मीटर ऊँचा ) एवं छः छोटे चार पत्तियों युक्त अधखिले कमल के फूल जैसा भवन ( कोटा संगमरमर एवं सैंड स्टोन से निर्मित ) और एक 45.5 मीटर ऊँचा शहीद-ऐ -मीनार के अलावा एक ऑडिटोरियम, 150-सीट वाला मूवी हॉल, 1000 सीट वाला ओपन-एयर थिएटर, 500-सीट वाला एम्फीथिएटर (रंगभूमि), लाइब्रेरी, रिसर्च और सेमिनार हॉल है।


जंग-ऐ-आज़ादी यादगार भवन-समूह मूलतः स्वतंत्रता संग्राम में पंजाब के शहीदों की भूमिका को एक नया आयाम देकर उनकी यादों को जन-जन तक साझा  करने का कार्य करती है। महाराजा रणजीत सिंह जी से लेकर भारत की आज़ादी तक अंग्रेजो से लोहा लेते पंजाब के जाबांज स्वतंत्रता सेनानी की सजीव चित्रण करने में यह यादगार भवन सक्षम है।  आप जब यहाँ आएंगे तो आप उस दौर के घटनाओं को अपने सामने घटित होता महसूस करेंगे।

अभी यहाँ एक संग्रहालय, एक मूवी हॉल जिस में चार शो होते है और सायं 7 बजे से एक लेज़र शो होता है।  यह सुबह 9 बजे से रात्रि 8 : 45 तक प्रत्येक दिन खुला रहता है। अगर आप जालंधर के आस-पास रहते हैं तो यहाँ पर आने का उपयुक्त समय दोपहर 2 :30 बजे से 3 : 00 बजे तक है।  

जंग-ऐ-आज़ादी यादगार भवन-समूह में अभी तक प्रवेश एवं पार्किंग निः शुल्क है। 


















-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"