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Friday, August 31, 2018

आंनदपुर साहिब की यात्रा - भाग 2


तख़्त श्री केसगढ़ साहिब गुरुद्वारा की यात्रा 
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विरासत-ऐ-खालसा का अवलोकन कर हमलोग बहुत थक गए थे। थकान की हालत में हमलोग  कुछ मिनटों में गुरुद्वारा केसगढ़ साहेब के पार्किंग स्थल पर कार पार्क कर गुरुद्वारा दर्शन के लिए निकल पड़े। जब हमलोग तख़्त श्री केसगढ़ साहिब गुरुद्वारा में प्रवेश कर ही रहे थे तो ऐसा लगा मानो मन और शरीर में नई ऊर्जा आ गई। थकान कहाँ गायब हो गई पता ही नहीं चला। मैंने महसूस किया है कि जिस स्थान पर किसी महापुरुष ने साधना की हो उस स्थान पर उनकी फैज़ बरसती है। अतः ऐसे स्थानों पर जितना समय आप बिता सकें उतना समय वहां अवश्य शांत-चित्त हो कर बैठना चाहिए।  इससे मानसिक शांति एवं रूहानियत फायदा अवश्य मिलता है। खैर ! इस विषय पर फिर कभी चर्चा होगी।  सिख धर्म में सभी गुरुद्वारों का महत्त्व एक समान है परन्तु वास्तु-शिल्प एवं सुन्दरता के मामले में ,  स्वर्ण मंदिर, अमृतसर का स्थान सबसे ऊपर है और रूहानियत के अनुसार मैं श्री बेर साहिब गुरुद्वारा, सुलतानपुर लोधी। 

तख़्त श्री केसगढ़ साहिब गुरुद्वारा, गुरु गोबिंद  सिंह जी द्वारा स्थापित खालसा पंथ का जन्म स्थली है। सन् 1699 में वैसाखी वाले दिन, उनके द्वारा यहीं पर पंज प्यारे को अमृत छका कर उन्हें सिंह की उपाधि दी और उन्हीं पाँचों प्यारों के हाथ अमृत छक कर गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह कहलाए। यहीं पर उन्होंने घोषणा कि आज से सभी सिख पुरुष "सिंह" और औरतें "कौर"- (यह संस्कृत शब्द 'कंवर' का व्युत्पन्न है।) कहलाएंगी। यहीं पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने पांच ककार भी धारण करने को कहा, जो इस प्रकार हैं – कंघा - बालों की नियमित सफाई के लिए , कड़ा- सुरक्षा का प्रतीक ( हिम्मत प्रदान करता है और भय दूर करता है), कच्छहरा (कच्छा)- सेवा और लड़ाई के समय असुविधा रहित पहनावा, किरपान (कृपाण)- आत्म रक्षा हेतु शस्त्र, केस (बाल)- अकाल पुरख द्वारा दिया गया देन। यहीं पर गुरु गोबिंद  सिंह जी ने खालसा के रहन-सहन पर भी नियम बनाए। 

यहीं से खालसा सिख और नानक-पंथी सिख दोनों साथ-साथ चले। आगे चल कर जो अमृतधारी  थे वे खालसा सिख और जो अमृतधारी नहीं थे वे सहजधारी सिख कहलाते हैं। 

यह बहुमंजली गुरुद्वारा अपने-आप में बेमिशाल है। यहाँ गुरु गोबिंद  सिंह जी द्वारा प्रयोग किए गए शस्त्र रखें गए जिसमें विशेष है खंडा- दो धार वाली तलवार जिसके द्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा पवित्र अमृत तैयार किया गया था। गुरुद्वारा  के पश्चिम में एक 80 मीटर वर्ग का सरोवर है। 


तख़्त श्री केसगढ़ साहिब गुरुद्वारा के दर्शन कर हमलोग अपने निवास स्थान के लिए रवाना हुए और इस प्रकार हमलोगों का एक दिवसीय सर्किट यात्रा संपन्न हुई। आप  के लिए नीचे कुछ तस्वीरें हैं, देखें। 












©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Wednesday, August 29, 2018

MEME SERIES - 14


Biweekly Edition (पाक्षिक संस्करण) 29 Aug'2018 to 11 Sep'2018

मीम (MEME)

"यह एक सैद्धांतिक इकाई है जो सांस्कृतिक विचारों, प्रतीकों या मान्यताओं आदि को लेखन, भाषण, रिवाजों या अन्य किसी अनुकरण योग्य विधा के माध्यम से एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में पहँचाने का काम करती है। "मीम" शब्द प्राचीन यूनानी शब्द μίμημα; मीमेमा का संक्षिप्त रूप है जिसका अर्थ हिन्दी में नकल करना या नकल उतारना होता है। इस शब्द को गढ़ने और पहली बार प्रयोग करने का श्रेय ब्रिटिश विकासवादी जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिंस को जाता है जिन्होने 1976 में अपनी पुस्तक "द सेल्फिश जीन" (यह स्वार्थी जीन) में इसका प्रयोग किया था। इस शब्द को जीन शब्द को आधार बना कर गढ़ा गया था और इस शब्द को एक अवधारणा के रूप में प्रयोग कर उन्होने विचारों और सांस्कृतिक घटनाओं के प्रसार को विकासवादी सिद्धांतों के जरिए समझाने की कोशिश की थी। पुस्तक में मीम के उदाहरण के रूप में गीत, वाक्यांश, फैशन और मेहराब निर्माण की प्रौद्योगिकी इत्यादि शामिल है।"- विकिपीडिया से साभार.

MEME SERIES - 14

By looking at this picture you might be having certain reaction in your mind, through this express your reaction as the title or the  caption. The selected title or caption of few people will be published in the next MEME SERIES POST.

इस तस्वीर को देख कर आपके मन में अवश्य ही किसी भी प्रकार के प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई होगी, तो उसी को शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)के रूप में व्यक्त करें। चुने हुए शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)को अगले MEME SERIES POST में प्रकाशित की जाएगी।

NATURE V/S MAN AND MACHINE

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The next edition will be published on  SEPTEMBER 12, 2018. If you have similar type of picture on your blog, leave a link of your post in my comments section. I will link your posts on my blog in the next edition. Thank you very much dear friends for all your valuable captions for MEME SERIES-13 . Your participation and thoughts are deeply appreciated by me. Some of the best captions are listed below.

अगला संस्करण 12 सितम्बर , 2018 को प्रकाशित किया जाएगा। यदि आपके ब्लॉग पर इस तरह की कोई तस्वीर है, तो अपने पोस्ट का लिंक मेरी टिप्पणी अनुभाग में लिख दें। मैं अगले संस्करण में अपने ब्लॉग पर आपका पोस्ट लिंक कर दूंगा। मेरे प्रिय मित्रों, आपके सभी बहुमूल्य शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION) के लिए धन्यवाद। MEME SERIES-13 के पोस्ट पर आपकी भागीदारी और विचारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया, उनमें से कुछ बेहतरीन कैप्शन नीचे उल्लेखित हैं। 


MEME SERIES-13 के बेहतरीन कैप्शन



"बुरे से भागने वाले का फोटू खींचो": गोड्सेस मोंकी..........................सुशील कुमार जोशी (SKJoshi)
फोटो अच्छी लेना भाई, स्टेटस पर डालनी है !!!.................................Meena Sharma
I think the fourth monkey is our Media...................................Meena Sharma
4th is smart monkey !!!!!!........................................................Renu

Friday, August 24, 2018

आंनदपुर साहिब की यात्रा - भाग 1


विरासत-ऐ-खालसा की यात्रा  



मेरी श्रीमती जी, माँ नैना देवी मंदिर के दर्शन कर भाव-विभोर थी। नैना देवी पहाड़ी पर चढ़ने से आसान उतरना था क्योंकि चढ़ाई चढ़ने वालों की संख्या लगभग नगण्य थी। हमलोग अपने लक्ष्य की तरफ अग्रसर थे। हमलोग करीब शाम को 3:45 बजे आनंदपुर साहिब शहर में प्रवेश कर गए परन्तु विरासत-ऐ-खालसा पहुँचते पहुंचते शाम के चार बज गए। विरासत-ऐ-खालसा के मुख्य  द्वार पर चार बजे  तक ही प्रवेश के नोटिस को पढ़ कर, हम निराश हो गए, तभी वहाँ खड़े एक गार्ड ने हमें अंदर जाने का इशारा किया तो बच्चों के  चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई और वो चिल्ला पड़े चलो। हमलोगों की कार तेजी से अंदर प्रवेश की और जल्दी से उतर कर टिकट काउंटर से प्रवेश टिकट लिया जो निशुल्क था फिर हमलोग विरासत-ऐ-खालसा इमारत की तरफ बढ़ लिए। वहाँ खड़े गार्ड प्रवेश का रास्ता बता रहे थे। अंदर प्रवेश करते ही एक ख़ूबसूरत घुमावदार झील दिखा। खुले वातावरण में हरे-भरे मैदान के किनारे उस झील में विरासत-ऐ-खालसा की इमारत की प्रतिबिम्ब झील की सुन्दरता में चार-चाँद लगा रही थी और उसके ऊपर एक पुल हमलोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ था जो झील के एक तरफ से विरासत-ऐ-खालसा की ईमारत से जुडी हुई थी। हमलोग उस पुलनुमा गैलरी में आगे बढ़ने लगे।  यह पुल 540 फीट लंबा है।
विरासत-ऐ-खालसा के इमारत को जब हम झील की तरफ से देखेंगे तो इसको हम दो भागों में बाँट सकते है इसका पश्चिमी हिस्सा में , एक पुस्तकालय है जिसका  एक भाग संगीत को समर्पित है एवं  400 सीटों का एक सभागार है और पूर्वी हिस्सा सिख इतिहास, धर्म और संस्कृति को पेश करने वाली स्थायी प्रदर्शनी दीर्घा है, जिसके अवलोकन का विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है।  

1.     “द बोट बिल्डिंग” : सामान्य सुरक्षा जाँच के बाद हम पञ्च-पानी नामक  दीर्घा में प्रवेश किए . यह एक नाव के आकार की इमारत “द बोट बिल्डिंग” है जो पंजाब के संस्कृति, विरासत, जलवायु, मौसम और त्योहारों को समर्पित है. इस अँधेरे दीर्घा में प्रवेश कर आगे बढ़े तो अचानक नदियों की कल-कल करती आवाजचिड़ियों की चहचहाहट और मध्यम नीली रौशनी के साथ एक विशाल 360 डिग्री के भित्ति चित्र फलक हमलोगों के सामने था। मनमोहक विशाल दीवार जिसका ओर-छोड़ पता नहीं चल रहा था. उस पर रंग-बिरंगी चलायमान चित्र पंजाब की विरासत एवं भगौलिक स्थिति को बयाँ करने में पुर्णतः सक्षम थी। इस भवन की छत कांच से बनी है और नीचे गहरा कुआं जिसका तल पानी से भरा हुआ है। दीवारों को बहुआयामी चित्रित कटआउट के साथ पंजाब के संस्कृति, जलवायु, मौसम, और त्योहारों को प्रदर्शित किया गया है। दृश्य, ध्वनि और प्रकाश के साथ-साथ जसबीर जस्सी की आवाज का प्रभाव शानदार है। सूर्योदय के साथ दिन की शुरुआत से, पंजाबी प्रेम कहानियों, पंजाबी त्योहारों, अनुष्ठानों, व्यावसायिक कार्यों, स्वर्ण मंदिर, और सूर्यास्त के साथ समाप्त होने वाला यहाँ का माहौल आपको मंत्रमुग्ध करने में सक्षम है। ओरिजीत सेन और लगभग 400 कलाकार ने मिलकर इसके अंदरूनी हिस्सों को साढ़े तीन साल में सजाकर तैयार किया  जिनमें चित्रकला, मूर्तियां शामिल है। इस दीर्घा के दर्शन के बाद शेष दीर्घाओं के लिए, आगंतुकों को ऑटो-ट्रिगर ऑडियो गाइड दिया जाता है, जो अंग्रेजी, हिंदी और पंजाबी भाषा में उपलब्ध हैं। 'ऑटो-ट्रिगर' का तात्पर्य है कि जब आप किसी भी गैलरी में जाते हैं तो ऑडियो गाइड स्वतः उस क्षेत्र के बारे में बताता है।
2.     “द ट्रायंगल बिल्डिंग” :  “द बोट बिल्डिंग” के मंत्रमुग्ध वातावरण से निकल कर इस दीर्घा में प्रवेश करना अपने-आप में अनोखा अनुभव था आप अपने-आप को पंजाब के 15 वीं शताब्दी के इतिहास में पाते हैं. यहाँ लोदी शासन, जातिवाद और अंधविश्वास लोगों का सजीव चित्र प्रदर्शित किया गया है।
3.     “द ड्रम बिल्डिंग” : पंजाब के 15 वीं शताब्दी से निकल कर, एक-ओंकार की विचार-विमर्शकारी अवधारणा के वातावरण में एक क्रिस्टल ग्लोब पर गुरुमुखी लिपि में लिखी नारंगी रंग का एक-ओंकार को हमलोग अपना सर ऊपर उठाकर अपलक देख रहे थे। फाइबर ऑप्टिक रोशनी के माध्यम से एवं उच्च तकनीक प्रदर्शन के द्वारा ऐसा लगता है जैसे सिख धर्म के मूल सिद्धांत एक ओंकार अंतरिक्ष में स्थापित है।
4.     5. 6. 7. 8. इसके बाद पूर्वोत्तर इमारत को पाँच  पंखुड़ियों के रूप में आकार दी गई है वो पंज पियारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन पाँच पंखुड़ियों में क्रमशः श्री गुरु नानक देव जी का प्रारंभिक जीवन, करतारपुर में श्री गुरु नानक देव जी की जीवन, गुरु अंगद देव जी और गुरु अमर दास जी का जीवन, गुरु रामदास जी का जीवन एवं  गुरु अर्जुन देव जी का जीवन का सजीव चित्रण किया गया है
इस दीर्घा से निकलने पर गुरु अर्जुन जी की शहादत को खुले छत पर एक मूर्ति तत्ती-तवा में सिख गुरुओं को ज़िन्दा जलाए जाने को प्रतीकात्मक रूप में चित्रित किया गया है, जिसको देख कर आँखें स्वतः नम हो जाती है।

इसके बाद छः दीर्घा है, जिसका विवरण निम्नलिखित है :

 9.“द ट्रायंगल बिल्डिंग” :   - यह दीर्घा गुरु अर्जुन देव की शहादत को दर्शाता है।
          ग्रैंड स्टेर केस :    - यह दीर्घा में गुरु के मिरी-पिरी (लौकिक-अलौकिक) की शक्ति  के स्थापना को दर्शाता है।
10. “क्रेसन्ट बिल्डिंग –1” : - यह दीर्घा गुरु हरगोबिंद जी, गुरु हर राय जी और गुरु हरकृष्ण जी के जीवनी एवं उनके द्वारा किए गए सामाजिक सुधार और मानवीय कार्यों को दर्शाता है।
11. “क्रेसन्ट बिल्डिंग –2” : - यह दीर्घा गुरु तेग बहादुर जी त्याग और गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवनी को दर्शाता है।
12. “क्रेसन्ट बिल्डिंग –3”: - यह दीर्घा खालसा पंथ के निर्माण से जुड़े  गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन को समर्पित है। यहाँ एक छोटा सभागार है, जहाँ आप खालसा पंथ के निर्माण पर दिव्य दत्ता एवं कबीर बेदी द्वारा वर्णित एक छोटी सी फ़िल्म देख सकते हैं।
13. “क्रेसन्ट बिल्डिंग -4”: - इस दीर्घा में खालसा पंथ निर्माण के बाद की घटना क्रम को बड़ी खूबसूरती के साथ प्रदर्शित किया गया है। जिसमे सबसे पहले उतरते हुए, रंग-बिरंगी रौशनी एवं विभिन्न लिपि में आप गुरु ग्रंथ साहब के छोटे-छोटे अंश पढ़ सकते हैं। उसके बाद यहाँ 18 वीं शताब्दी की शुरुआत से वर्तमान समय तक के सिख समुदाय का विकास, सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक गतिविधियों का पता चलता है। सिख मिसल (1716-1799), महाराजा रणजीत सिंह के दरबार और सिखों का ब्रिटिश के प्रति विरोध का जीवंत मुर्तिया स्थापित है, जिन्हें देख कर दर्शक स्वतः कलाकार की तारीफ़ करते नहीं थकते और अपलक उसे निहारते आगे बढ़ते हैं। शहीद भगत सिंह, करतर सिंह साराभा, मास्टर तारा सिंह और अन्य राजनीतिक और धार्मिक सिख नेताओं को भी यहाँ जगह मिली हुई  है ।  

ऐसे तो मैंने बहुत सी जीवंत मूर्तियाँ देखी हैं परन्तु मास्टर तारा सिंह जी को एक एनिमेटेड रोबोट के माध्यम से पलकों को झपकाते, हाथों और चेहरे को घुमाते हुए उनके भाषण को जीवंतता प्रदर्शित करती अमर कृति को देख कर मैं दंग रह गया।

विरासत-ऐ-खालसा, आम लोगों के लिए शाम को 6 बजे बंद हो जाता है। हमलोग भागते हुए सभी दीर्घा का अवलोकन कर शाम को 6 बजे बाहर आ गए। बाहर आकर हमलोग वहीँ के कैंटीन से स्नैक्स और आइसक्रीम खा कर गुरुद्वारा केशगढ़ साहेब के दर्शन के लिए निकल पड़े। 

नोट : विरासत-ऐ-खालसा के अवलोकन के लिए कम से कम चार घंटा चाहिए। 

उपरोक्त विरासत-ऐ-खालसा के इमारत को समझने के लिए एक लेबल किया हुआ तथा अन्य तस्वीर आप भी देखें। 











©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Wednesday, August 22, 2018

फोटोग्राफी : पक्षी 59 (Photography : Bird 59)


Photography: (dated 19 06 2018 10:50 AM )

Place : Phata, Uttrakhand, India

Female House Sparrow

The house sparrow is a bird of the sparrow family Passeridae, found in most parts of the world. Females and young birds are coloured pale brown and grey, and males have brighter black, white, and brown markings. 
For the past few decades this bird had become endangered. But it is a matter of happiness that due to the awareness of the people, their population is now seeing an increase.


Scientific name:  Passer domesticus
Photographer :   Rakesh kumar srivastava

गौरैया, दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में पाए जाने वाले गौरैया परिवार पासरीडी के एक पक्षी है। महिलाएं और युवा गौरैया पक्षी रंगीन भूरे और भूरे रंग के होते हैं, और पुरुषों में चमकदार काले, सफेद और भूरे रंग के चिह्न होते हैं। 
पिछले कुछ दशक से यह पक्षी लुप्तप्रायः हो गई थी। परन्तु ख़ुशी की बात है की जनचेतना की वजह से अब इनकी जनसंख्या में वृद्धि देखी जा रही है।

वैज्ञानिक नाम: पास्टर डोमेस्टिक्स
फोटोग्राफर: राकेश कुमार श्रीवास्तव

अन्य भाषा में नाम :-


Assamese: ঘৰচিৰিকা; Bengali: চড়ুই, পাতি চড়ুই; Bhojpuri: गौरइया;  French: Moineau domestique; Gujarati: ઘર ચકલી; Hindi: चिड़िया, घरेलू गौरैया;  Kannada: ಗುಬ್ಬಚ್ಚಿ; Malayalam: അങ്ങാടിക്കുരുവി; Marathi: चिमणा (नर), चिमणी (मादी); Nepali: घर भँगेरा; Oriya: ଘରଚଟିଆ; Punjabi: ਘਰੇਲੂ ਚਿੜੀ; Sanskrit:  चटक, वार्तिका, गृहकुलिङ्ग; Tamil: சிட்டுக் குருவி; Telugu: ఇంటి పిచ్చుక

Female House Sparrow

Female House Sparrow

Female House Sparrow

Female House Sparrow

Female House Sparrow
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©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"






Saturday, August 18, 2018

माँ नैना देवी मंदिर की यात्रा


माँ नैना देवी मंदिर की यात्रा 




अभी तक आपने भाखड़ा-नंगल बहुउद्देश्यीय बाँध यात्रा के बारे में पढ़ा, अब आगे.......

मेरी श्रीमती जी को ऐतिहासिक धरोहर के दर्शन करने में कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं हैं। चूँकि मैंने पहले ही उनको समझा दिया था कि भाखड़ा-नंगल बाँध, माँ नैना देवी मंदिर जाने के रास्ते में पड़ता है और वहाँ ज्यादा समय भी नहीं लगा, इसलिए यात्रा बिना किसी विवाद के गोबिंद सागर झील के सौंदर्य को निहारते हुए आराम से कट रही थी।

भाखड़ा-डैम से माता नैना देवी जी के मंदिर की दूरी 23.6 कि.मी. थी। भाखड़ा-डैम से माता नैना देवी जी के लिए रोप-वे का प्रवेश द्वार 19.5 कि.मी.पर है और यहाँ से कुछ ही दूरी पर माँ नैना देवी की चढ़ाई का प्रवेश द्वार है। पहले यहाँ से 1.25 कि.मी. की चढ़ाई पैदल, पालकी या अन्य साधन से तय की जाती थी परन्तु अब वाहन सीधे ऊपर तक पहुँच जाती है। उसके बाद लगभग 300 मी. की चढ़ाई पैदल, पालकी या अन्य साधन से तय की जाती है।

सुबह 11 बजे  भाखड़ा-डैम से माता नैना देवी जी की यात्रा के लिए निकल पड़े। सुबह 11:30 बजे हमलोग रोप-वे के पास पहुँच गए।  थोड़ी दुविधा थी कि हमलोगों की कार नैना देवी की पहाड़ी पर चढ़ पाएगी की नहीं। बच्चे रोप-वे से जाना चाहते थे और मेरा भाई अपना ड्राइविंग कौशल दिखाना चाहता था। अंत में वही होता है जिसके कब्जे में  कार की स्टीयरिंग होती है और कार पहाड़ों पर चढ़ने लगी।  चंद मिनटों में  हमलोग माँ नैना देवी की चढ़ाई के प्रवेश द्वार पर पहुँच गए।  परन्तु ये क्या ? वहाँ कारों की कतार प्रवेश के लिए उलटी दिशा से लगी हुई थी क्योंकि प्रवेश के लिए  यहाँ पर U टर्न लेना पड़ता है और  ऊपर के कण्ट्रोल रूम से आदेश मिलने पर ही ट्रैफिक पुलिस के आदेश पर सिमित संख्या में वाहनों को ऊपर जाने दिया जाता है । हमारी भी कार प्रवेश के इंतज़ार में खड़ी हो गई।  अभी तक सब सही चल रहा था परन्तु  चिंता थी तो आंनदपुर साहिब पहुँचने की। एक घंटे के इंतज़ार के बाद हमें प्रवेश के लिए हरी झंडी मिली। तो अब  पहाड़ की चढ़ाई का इम्तिहान शुरू हो गया ।  एक तो खड़ी और घुमावदार चढ़ाई , उस पर से ऊपर से उतरने वाले स्थानीय व्यावसायिक ड्राइवरों  का आतंक। सोने पर सुहागा ये कि सामने से आ रही पी.डब्लू.डी. की कार्यरत बुलडोज़र का ड्राइवर, मेरे भाई की  ड्राइविंग कौशल की जाँच के लिए उसे पहाड़ के एक खोह में घुसने को कह रहा था जिससे उसकी गाड़ी नीचे की तरफ जा सके। बड़ी मुश्किल से कार को आगे-पीछे कर के उस खोह में गाडी खड़ी हो पाई जिससे बुलडोज़र निकल पाया। परन्तु ये क्या ? बुलडोजर के निकलते ही पीछे की सभी गाड़ियाँ ऊपर को जाने लगी।  जब सब गाड़ी निकल गई तब हमारी गाड़ी निकल पाई। ऐसा  इम्तिहान कई बार हुआ।  1. 25 कि.मी. का सफर ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा था। अन्तोगत्वा जब हमारी कार नैना देवी के पार्किंग में करीब दोपहर 12:50 बजे खड़ी  हुई तब साँस में साँस आई। मंदिर जाने का मार्ग साफ़-सुथरा था। सड़क के दोनों तरफ दुकाने सजी हुई थी। जल्द ही हमलोग मंदिर के प्रांगण में दाखिल हुए।  वहाँ से चारों तरफ कतार में खड़े श्रद्धालु ही दिख रहे थे। पूछने पर कतार के प्रारंभिक छोर का पता चला और हमलोग भी उस कतार का  हिस्सा बन गए। दस कदम बढ़ने पर कतार भीड़ में बदल गई। बाई तरफ खाई एवं दाई तरफ दीवार के बिच फंसे श्रद्धालु अपने आप को संतुलित करने में असमर्थ महसूस कर रहे थे। हालांकि पच्चीस कदम बढ़ने के बाद दोनों तरफ रेलिंग की वजह से भीड़ सुरक्षित कतार में बदल गई और सुविधाजनक ढंग से माँ नैना देवी का दर्शन कर करीब दोपहर को दो बजे हमलोग नीचे आ गए। दोपहर का खाना खा कर लगभग तीन बजे हमलोग आंनदपुर साहिब के  यात्रा को रवाना हो गए।
आंनदपुर साहिब की यात्रा - भाग 1-विरासत-ऐ-खालसा को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। 



यह मंजर 3 अगस्त 2008 की दुर्घटना को याद दिलाने में सक्षम है, परन्तु न तो प्रशासन को फ़िक्र है न श्रधालुओं को सब्र।






माता श्री नैना देवी जी का इतिहास और पुराण

श्री नैना देवी मंदिर 1177 मीटर की ऊंचाई पर जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश मे स्थित है | कई पौराणिक कहानियां मंदिर की स्थापना के साथ जुडी हुई हैं |

एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती ने खुद को यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए |और उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठा कर तांडव नृत्य शुरू कर दिया |जिससे  स्वर्ग में सभी देवता भयभीत हो गए कि भगवान शिव का यह रूप प्रलय ला सकता है तो सबों ने भगवान विष्णु से यह आग्रह किया कि वे अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काट दें | श्री नैना देवी मंदिर वह जगह है जहां सती की आंखें गिरी थीं।

विशेष अन्य जानकारी मंदिर न्यास की आधिकारिक वेब-साइट http://www.srinainadevi.com/ पर जा कर प्राप्त कर सकते हैं।
आंनदपुर साहिब की यात्रा - भाग 1-विरासत-ऐ-खालसा को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Wednesday, August 15, 2018

MEME SERIES - 13


Biweekly Edition (पाक्षिक संस्करण) 15 Aug'2018 to 28 Aug'2018

मीम (MEME)

"यह एक सैद्धांतिक इकाई है जो सांस्कृतिक विचारों, प्रतीकों या मान्यताओं आदि को लेखन, भाषण, रिवाजों या अन्य किसी अनुकरण योग्य विधा के माध्यम से एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में पहँचाने का काम करती है। "मीम" शब्द प्राचीन यूनानी शब्द μίμημα; मीमेमा का संक्षिप्त रूप है जिसका अर्थ हिन्दी में नकल करना या नकल उतारना होता है। इस शब्द को गढ़ने और पहली बार प्रयोग करने का श्रेय ब्रिटिश विकासवादी जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिंस को जाता है जिन्होने 1976 में अपनी पुस्तक "द सेल्फिश जीन" (यह स्वार्थी जीन) में इसका प्रयोग किया था। इस शब्द को जीन शब्द को आधार बना कर गढ़ा गया था और इस शब्द को एक अवधारणा के रूप में प्रयोग कर उन्होने विचारों और सांस्कृतिक घटनाओं के प्रसार को विकासवादी सिद्धांतों के जरिए समझाने की कोशिश की थी। पुस्तक में मीम के उदाहरण के रूप में गीत, वाक्यांश, फैशन और मेहराब निर्माण की प्रौद्योगिकी इत्यादि शामिल है।"- विकिपीडिया से साभार.

MEME SERIES - 13

By looking at this picture you might be having certain reaction in your mind, through this express your reaction as the title or the  caption. The selected title or caption of few people will be published in the next MEME SERIES POST.

इस तस्वीर को देख कर आपके मन में अवश्य ही किसी भी प्रकार के प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई होगी, तो उसी को शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)के रूप में व्यक्त करें। चुने हुए शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)को अगले MEME SERIES POST में प्रकाशित की जाएगी।

3 WISE MONKEYS AND WHO IS 4TH?


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The next edition will be published on  AUGUST 29, 2018. If you have similar type of picture on your blog, leave a link of your post in my comments section. I will link your posts on my blog in the next edition. Thank you very much dear friends for all your valuable captions for MEME SERIES-12 . Your participation and thoughts are deeply appreciated by me. Some of the best captions are listed below.

अगला संस्करण 29 अगस्त , 2018 को प्रकाशित किया जाएगा। यदि आपके ब्लॉग पर इस तरह की कोई तस्वीर है, तो अपने पोस्ट का लिंक मेरी टिप्पणी अनुभाग में लिख दें। मैं अगले संस्करण में अपने ब्लॉग पर आपका पोस्ट लिंक कर दूंगा। मेरे प्रिय मित्रों, आपके सभी बहुमूल्य शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION) के लिए धन्यवाद। MEME SERIES-12 के पोस्ट पर आपकी भागीदारी और विचारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया, उनमें से कुछ बेहतरीन कैप्शन नीचे उल्लेखित हैं। 


MEME SERIES-12 के बेहतरीन कैप्शन

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खुद के बनाये यंत्रों के बीच यंत्र होता आदमी.....................................सुशील कुमार जोशी (SKJoshi)
सावधानी हटी, दुर्घटना घटी..........................................................Meena Sharma
Making India .... a manufacturing hub....................................Yogi Saraswat

Friday, August 10, 2018

भाखड़ा-नंगल डैम यात्रा


पुनरुत्थान भारत का नया मंदिर - भाखड़ा-नंगल डैम की यात्रा 
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“मुख्य पर्यटन स्थल  के भ्रमण हेतु जब कोई पर्यटक कार्यक्रम बनाता है तो उसकी कोशिश रहती है कि आस-पास के क्षेत्रों का भी अवलोकन कर लिया जाए, परन्तु कभी-कभी मुख्य क्षेत्र के अवलोकन के साथ अन्य क्षेत्र के अवलोकन  करने का मौसम नहीं भी रहता है फिर भी उसके मन में होता है कि जब यहाँ तक आ ही गए है तो वहाँ एक बार जा कर देखने में हर्ज क्या है ? और जब वहाँ जाता है तो कुछ खास नहीं देख पाने के अफ़सोस के साथ दुबारा उस स्थल पर आने का अपने आप को वचन देता है जो संभवतः उस स्थल पर आना कभी संभव नहीं हो पाता है”।

उपरोक्त कथन एक पर्यटक के भ्रमण कार्यक्रम में अपने लोभ को न संभाल पाने का एक उदाहरण है अब मैं आपसे  अपने दुसरे लोभ के बारे में चर्चा करना चाहूँगा। पर्यटन स्थल के भ्रमण का  कार्यक्रम बनाते समय, एक पर्यटक की कोशिश रहती है कि यात्रा मार्ग का नक्शा क्लोज्ड सर्किट में हो और इसी लालच का परिणाम है कि मैं आज आपके सामने इस यात्रा-वृतांत को आपके समक्ष प्रस्तुत कर पा रहा हूँ। 

मेरी श्रीमती जी की इच्छा हुई कि सुबह चलकर हिमाचल प्रदेश में स्थित माता नैना देवी जी  के दर्शन कर शाम तक घर लौट आयें।  मेरे निवास स्थान से माता नैना देवी जी के मंदिर की दूरी लगभग 150कि.मी. है अर्थात आना-जाना कुल 300कि.मी.और जाना भी अपने निजी वाहन से था तो मैं आस-पास के दर्शानिये स्थालों के अवलोकन का लोभ संभाल न सका और मैंने एक  हेक्टिक प्रोग्राम बना डाला जो निम्न प्रकार से था :
 मेरे निवास स्थान से भाखड़ा-नंगल डैम  127कि.मी.
 भाखड़ा-नंगल डैम से माता नैना देवी जी के मंदिर की दूरी 33कि.मी.
माता नैना देवी जी के मंदिर से आनंदपुर साहिब 24कि.मी.
आनंदपुर साहिब से मेरा  निवास स्थान 132कि.मी. अर्थात आना-जाना कुल 316कि.मी.
उपरोक्त प्रोग्राम में पूर्वनिर्धारित प्रोग्राम से दूरी का ज्यादा अंतर नहीं था परन्तु समय का अभाव अवश्य महसूस हो रहा  था । चिंता विशेष कर विरासत-ए-खालसा में प्रवेश का था, जिसका प्रवेश द्वार सायं चार बजे तक ही खुला रहता है।

खैर ! हमलोगों की यात्रा सुबह 5 बजे शुरू हुई और  गढ़शंकर से लगभग 7 कि.मी. बाद प्रकृति का नज़ारा बदल गया। चारों तरफ पहाड़ियाँ हमारे स्वागत में खड़ी थी एवं सडक के दोनों तरफ हरे-भरे पेड़ हमारी यात्रा को सुखद बनाने में सक्षम थे। जैसे ही यह नज़ारा हमारी आँखों से ओझल हुआ तभी कुछ देर बाद नंगल शहर की चमचमाती सड़क अपने पलक- पाँवड़े बिछाए हमलोगों का स्वागत कर रही थी। शहर के बीचो-बीच नंगल डैम अपने आन-बान और शान से खड़ी थी। हमलोग अपलक उस डैम को निहार रहे थे। हमें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या भाखड़ा-नंगल डैम यही है। क्योंकि हमें यह तो पता था कि भाखड़ा डैम को देखने हेतु परमिट की आवश्यकता होती है।  हमलोग डैम देखने के बाद एक ढाबा में नास्ता के लिए रुके तब हमें पता चला की यह नंगल डैम है और यहाँ से 1 कि.मी. की दूरी पर भाखड़ा-व्यास प्रबंधक के जन संपर्क कार्यालय से परमिट लेने के बाद 11 कि.मी. पर भाखड़ा डैम है। हमलोग झटपट नास्ता कर भाखड़ा डैम के लिए निकल पड़े। भाखड़ा बाँध के लिए परमिट सुबह 8 बजे से लेकर दोपहर 3:20 बजे तक मिलता है. इसके लिए आपके पास कोई भी सरकारी मान्य पहचान पत्र होना आवश्यक है। हमलोग परमिट ले कर आगे बढ़े।  परमिट एवं सामान्य सुरक्षा जाँच के बाद हम लोगों को आगे जाने की अनुमति सुरक्षाकर्मियों द्वारा दी गई। सुरम्य रास्तों से होते हुए जब हमने बहुत ही विशाल भाखड़ा बाँध को देखा तो उसके भव्यता को देखते ही रह गए। विशाल भाखड़ा बाँध के सामने सतलुज नदी, पानी की एक हरी पतली धार की तरह दिख रही थी। घुमावदार रास्तों के कारण भाखड़ा बाँध हमलोगों के साथ लुका-छिपी का खेल खेल रहा था और कुछ दूर चलने पर काफी खुला स्थान मिला जहाँ एक तरफ बाँध के ऊपर जाने का रास्ता था परन्तु सुरक्षा कारणों से वह बंद था। उसी तरफ खाने-पीने  के लिए एक कैंटीन था और  दूसरी तरफ पं. जवाहलाल नेहरू की 50  फुट  ऊँची पीतल की मूर्ति भारत के नए युग के निर्माण के संकेत चिन्ह के रूप में खड़ी थी।  सुरक्षा कारणों के कारण पर्यटक यहाँ के अद्भुत दृश्य का आनंद नहीं ले पाते हैं। (नोट - अगर आप नास्ता या खाने के समय पर यहाँ पहुंचते हैं तो यहाँ के सुरम्य वातावरण में बैठ कर नास्ता या खाने का लुफ्त उठा सकते हैं। ) भाखड़ा बाँध से नैना देवी जाने के लिए परमिट की पुनः जाँच होती है। 23 कि.मी., भाखड़ा बाँध से नैना देवी की यात्रा गोबिंद सागर झील के सौंदर्य को निहारते हुए आराम से कट जाती है। 







नैना देवी मंदिर से गोबिंद सागर झील एवं रोप-वे का विहंगम दृश्य 
भाखड़ा-नंगल बहुउद्देश्यीय बाँध  के प्रमुख्य तथ्य :

1. भाखड़ा-नंगल बहुउद्देश्यीय बाँध  हिमाचल प्रदेश एवं पंजाब राज्य के सरहद पर स्थित है और सतलुज नदी पर भाखड़ा और नंगल में बने दो बाँधों के नाम पर रखा गया है।

2. नंगल बांध का निर्माण भाखड़ा बाँध के 13 कि.मी. नीचे की ओर नंगल (पंजाब ) में किया गया है। यह 29 मीटर ऊंचा, 305 मीटर लंबा और 121 मीटर चौड़ा एक सहायक बांध है, जो भाखड़ा बांध के दैनिक जल उतार-चढ़ाव को संतुलन बनाए रखने में एक जलाशय के रूप में कार्य करता है।

3. भाखड़ा बाँध संसार के ऊँचे कंक्रीट के सीधे ठोस बांधों में से एक है जिसकी ऊँचाई 225.55 मी. है जो दिल्ली के प्रसिद्ध क़ुतुब मीनार से तीन गुना है।

4. सतलुज नदी के पानी को गोबिंद सागर झील में जमा किया गया है जिसकी लम्बाई 96.56 कि.मी. है इसमें 9621मिलियन घन मी. पानी समा सकता है।

5. इस परियोजना के निर्माण में 15 वर्ष (1948-1963) लगे और 13000 मजदूर, 300 इंजीनियर, 30 विदेशी विशेषज्ञ दिन-रात काम करते रहे।

6. इसमे इतनी कंक्रीट लगी जिससे पुरे भूमध्य रेखा पर 8 फुट चौड़ी सड़क का निर्माण हो सकता था।

7. 1963 में इसकी लागत करीब 245 करोड़ रूपए थी।

8. भाखड़ा-नंगल बाँध की अनुमानित आयु 400 वर्षों से अधिक अंकित की गई है।

9. भाखड़ा नहर प्रणाली की लम्बाई लगभग 4830 कि.मी. है।

10. भाखड़ा नांगल परियोजना को 22 ऑक्टूबर 1963 में देश को समर्पित किया गया था।

विशेष अनुरोध : अगर आप माता नैना देवी मंदिर के दर्शन हेतु यात्रा करने का प्रोग्राम बना रहें हो तो साथ में इस आधुनिक भारत के मंदिर के दर्शन का आनंद अवश्य लें।

1. माँ नैना देवी मंदिर की यात्रा को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। 
2. आंनदपुर साहिब की यात्रा - भाग 1-विरासत-ऐ-खालसा को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। 
©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Wednesday, August 8, 2018

जीवन की साँझ

जीवन की साँझ

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रामदीन का पुश्तैनी पेशा मिट्टी के बर्तन एवं खिलौने बनाना था और उसके द्वारा बनाए गए सामान, उसके गाँव के पास के हाट में हाथों-हाथ बिक जाते थे। घर-गृहस्थी बड़े आराम से चल रही थी। रमेश उसका एकलौता बेटा था जो पढ़ने में बहुत ही  ज़हीन था। 

रमेश के मास्टर साहब, एक दिन रामदीन से बोले – “रामदीन ! देखना, रमेश एक दिन इस गाँव का नाम रौशन करेगा जैसे कमल ने किया।

रामदीन ने भी रमेश की पढ़ाई के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी और एक दिन रमेश इंजीनियरिंग की पढ़ाई समाप्त कर शहर की एक फैक्ट्री में नौकरी करने लगा। जब रमेश की नौकरी लगी तो वह अपने पिता जी को अपने साथ, शहर ले जाने के लिए घर आया और अपने पिता जी से बोला – “बाबू जी, आप मेरे साथ शहर चलें, वहाँ मुझे बंगला मिला है। आपने मेरे लिए बहुत मेहनत की है, अब आराम करने की बारी आपकी है।”

रामदीन बोला – “ बेटा, हमलोग मजदूर आदमी है, बिना मेहनत किए हम कहीं नहीं रह सकते।

रमेश जिद्द करके बोला – “बाबू जी, आप चलिए, वहाँ आपके मित्र, कमल के पिता जी भी तो रहते ही हैं।”

बेटे के जिद्द के आगे रामदीन को झुकना पड़ा और अपनी पत्नी एवं बेटे के साथ शहर में आ गया। अभी दो दिन ही बीते थे कि रामदीन ने अपने बेटे से कहा – “ बेटा ! बिना मेहनत किए मैं रह नहीं सकता, बैठे-बैठे मेरा सारा बदन टूट रहा है।”

रमेश ने कहा - “बाबू जी ! दिन भर आप अकेले रहते है इसलिए आपका यहाँ मन नहीं लग रहा। ऐसा करते है, कल रविवार की छुट्टी है। मैं आपको अपने प्रिय मित्र कमल के पिता जी, सुरजचंद जी से मिलवाने ले चलूँगा।” 

रमेश अपने पिता जी को को ले कर कमल के यहाँ पहुँचा। रामदीन ने एक लॉन के बीच बंगले को देखकर अपने बेटे से पूछा – “सुरजचंद यहीं रहता है?”

रमेश ने कहा - “हाँ बाबू जी ! कमल जी ही मेरे बॉस हैं।”

न चाहते हुए भी रामदीन को सुरजचंद की किस्मत पर रश्क हो आया। बंगले में प्रवेश करते ही कमल ने नमस्ते काका कह कर रामदीन का स्वागत किया, तो आशीर्वाद देकर चहकते हुए कमल से कहा – “ बेटा ! अब जल्दी से सुरजचंद को बुलाओ, लगभग दस साल के बाद उससे मिलूँगा।”

कमल ने कहा – “पिता जी को घुटनों में दर्द रहता है इसलिए उनको चलने-फिरने में तकलीफ़ होती है।”

कमल ने आवाज़ लगाई- “रामू काका!”

रामदीन की ही उम्र एक आदमी आया और कमल के सामने खड़ा हो कर कहा – “जी साहेब !”

कमल ने कहा - “देखो ! चाचा जी को पिता जी के कमरे में ले जाओ।” 
रामदीन, रामू के पीछे-पीछे हो लिए। एक कमरे की ओर इशारा कर रामू वहाँ से चला गया। रामदीन ने जब कमरे में प्रवेश किया तो एक जीर्ण-शीर्ण शरीर वाला व्यक्ति बिस्तर पर लेटा हुआ था। पास जाने पर मुश्किल से सुरजचंद को पहचाना तभी सुरजचंद बोल पड़े – “अरे ! रामदीन भाई, यहाँ कैसे?”
(सुरजचंद का चेहरा खिल उठा।) 

“ लोहे को तपा कर अपने मन-मुताबिक ढालने वाले सुरजचंद, ये क्या हाल बना लिया है?”- रोते हुए रामदीन ने कहा। 

“क्या बताऊँ ? जब मैं यहाँ आया तो कमल ने जैसे मुझे इस महल में कैद ही कर दिया। यहाँ किसी चीज़ की कमी नहीं है, परन्तु, स्वेच्छा से कोई काम नहीं कर सकता था। शुरू में तो बदन दर्द करता था फिर घुटनों में दर्द, अब तो चलना-फिरना भी मुहाल हो गया है।” ये कहते हुए सुरजचंद के आँखों से आँसू निकल पड़े। 

भारी मन से रामदीन अपने बेटे के साथ लौटे। अगली सुबह रामदीन ने अपने बेटे से कहा कि मैं सुरजचंद जैसी ज़िन्दगी नहीं जी सकता। मुझे यहाँ अपना काम करने दो या मुझे गाँव छोड़ दो। 

“कैसी बात करते हैं बाबू जी! यहाँ पर कुम्हार का काम करेंगे तो लोग क्या कहेँगे।”- रमेश ने कहा।  

बाप-बेटे में अभी बहस चल ही रही थी तभी घर में प्रवेश करते हुए कमल ने कहा - “लो काका! आपका चश्मा मेरे यहाँ छूट गया था, वही देने आया हूँ, परन्तु यहाँ किस विषय पर, आप दोनों में बहस छिड़ी हुई है?

रमेश ने नाराजगी दिखाते हुए कहा - “ देखिए ना ! बाबू जी अपनी जिद्द पर अड़े हैं कि या तो मुझे यहाँ कुम्हार का काम करने दो या फिर गाँव भेज दो।  

यह सुनकर कमल गंभीर स्वर में बोला - “काका सही कह रहे हैं, मैंने अपने बाबू जी को अपाहिज बना दिया और मैं नहीं चाहता कि काका का भी यही हाल हो। रमेश ! हमें समझना होगा कि कोई काम छोटा या बड़ा नहीं होता, जिस काम को करने में हमें ख़ुशी मिले, उसी काम को करना चाहिए।

परन्तु लोग क्या कहेंगे ?” - रमेश ने झुँझलाते हुए कहा। 

इस समस्या का भी हल है मेरे पास। काश ! मेरी ये सोच पाँच साल पहले होती तो आज मेरे बाबू जी का ये हाल नहीं होता। ” - कमल ने कहा। 

रामदीन और रमेश आशाभरी नज़रों से कमल को देख रहे थे। 

कमल ने कहा - “ आजकल बच्चों की गर्मियों की छुट्टियाँ चल रही हैं, क्यों ना हम एक पॉटरी एवं क्ले टॉय का वर्कशॉप लगाए, जिसमें काका बच्चों को मिट्टी के बर्तन एवं खिलौने बनाना सिखाएंगे।” 

यह सुनकर, रामदीन और रमेश का चेहरा खिल उठा। रमेश ने चहकते हुए कहा - “यह सुझाव बहुत ही अच्छा है।” (यह कहते हुए, रमेश ने  भावुक होकर कमल को गले से लगा लिया।)

रमेश के  दस-पंद्रह दिन की  कड़ी मेहनत ने रंग दिखाया और पॉटरी एवं क्ले टॉय का वर्कशॉप खुल गया, जिसका उदघाटन करने सूरजचंद जी आए थे। 

वर्कशॉप में पॉटरी एवं क्ले टॉय को सीखने आए बच्चों को देख कर रामदीन एवं सूरजचंद की आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए। सूरजचंद ने रामदीन को गले लगाते हुए कहा - “रामदीन ! जीवन की इस ढलती साँझ में सूरज तो डूब रहा है, परन्तु, आज से तुम्हारे जीवन में पूर्णिमा का चाँद निकला है और साथ में तारे रुपी बच्चे तुम्हारे जीने की उम्मीद को जगमगाते रहेंगे। 

“सही कहा है, सूरजचंद भाई !” - रामदीन ने ख़ुशी के आंसू पोछते हुए कहा। 

©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"