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Friday, November 30, 2018

आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 11)


(भाग – 11)
 ऊखीमठ की यात्रा
UKHIMATH
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आपने अभी तक “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3)  हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश) , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4)  लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5)  यमनोत्री धाम की यात्राआओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –7) गंगोत्री धाम की यात्रा", आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –8) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -1"), आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –9) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -2") एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –10) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -3") में पढ़ा कि कैसे ब्लॉग एवं अन्य माध्यम से जानकारी जुटा कर मैंने यात्रा से संबंधित एक बारह दिवसीय कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाई. जब विश्वसनीय वेब-साईट से पता चला कि सड़क एवं मौसम यात्रा के लिए अनुकूल है तब जाकर हमलोग ने अपनी यात्रा प्रारंभ की. “हर की पौड़ी”, ऋषिकेश, यमनोत्री, बड़कोट, उत्तरकाशी, गंगोत्री यात्रा एवं सिद्ध गुरु बाबा चौरंगीनाथ के मंदिर दर्शन एवं ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ धाम दर्शन के के साथ ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ जी का रुद्राभिषेक कर उन सभी यादों को दिल में सहेज कर वापस फाटा के लिए चल पड़े.
अब आगे .... 
SRI KEDARNATH JI TEMPLE
जब हमलोग फाटा जाने के लिए पिनाकल के ऑफिस पहुँचे उनलोगों ने फिर से हमलोगों को दो ग्रुप अर्थात् चार-चार सदस्यों में बाँट दिया. इस बार सबसे पहले हेलिकॉप्टर से जाने में मैं मेरी पत्नी, मेरा बेटा और मेरे भाई की पत्नी का नाम था. पिनाकल के फिल्ड-स्टाफ के दिशा-निर्देशानुसार मैं पायलट के बगल में बैठ गया और शेष तीनों पीछे की सीट पर बैठ गए. फिल्ड-स्टाफ के निर्देश में एक निर्देश यह भी होता है कि आप मोबाइल एवं कैमरा का इस्तेमाल नहीं करेंगे और लोभ-लुभावन प्राकृतिक दृश्य के बावजूद हमलोग ने फाटा से श्री केदारनाथ आने में इस निर्देश का पालन भी किया यह अलग बात थी कि पायलट महोदय खुद बड़े मज़े से हेलिकॉप्टर उड़ाते समय व्हाट्सऐप चलाते रहे. खैर! जब मैं पायलट के बगल में बैठा तो मैं पायलट को देख मुस्कुरा दिया चूँकि वही पायलट हमलोगों को लेकर आया था. हेलिकॉप्टर उड़ान भर चूका था और मैं सबसे आगे बैठा था. मेरे और प्राकृतिक नजारों के बीच बस एक काँच की खिड़की थी. पायलट के बगल में बैठ कर उड़ान भरना ऐसा लग रहा था मानों एक बड़ा चश्मा पहन कर मैं उड़ रहा हूँ और साथ कोई नहीं है. मैं अभी इस अद्भुत कल्पना का आनंद ही ले रहा था कि मेरे जैकेट की दायीं जेब में चुभन महसूस हुई. तब मुझे एहसास हुआ की जेब में पड़ी कैमरा पर सेफ्टी बेल्ट के दवाब से चुभन महसूस कर रहा था. अवचेतन मन से मैं अपने दायीं हाथ से कैमरा पकड़ कर दूसरी जेब में डालने के लिए निकाला ही था की पायलट ने मेरा हाथ पकड़ लिया और हेलिकॉप्टर वापस श्री केदारनाथ हेली-पैड पर मुझे उतारा और मेरे स्थान पर मेरे बेटे को बिठा कर वापस फाटा चला गया. मैं तो आवाक रह गया. फिल्ड-स्टाफ ने मुझसे कहा कि क्या आपने पायलट के साथ हाथापाई किया है तो जो घटना घटी थी उसको बताया फिर उसने मुझे पिनाकल के ऑफिस में जाने को बोला. इधर मेरे भाई के साथ अन्य सदस्य उड़ान भरने के इंतज़ार में थे. वे भी हैरान थे की क्या हुआ? मैं जब पिनाकल के मैनेजर से मिला तो उसने मुझे पूरी मदद का आश्वासन दिया और आराम से बैठने को कहा. उसने फोन द्वारा पायलट को मुझे ले जाने के लिए बहुत रिक्वेस्ट किया परन्तु वह नहीं माना. उसी के फोन से मैंने अपने परिवार से बात कर अपना कुशलक्षेम बताया तो उनलोगों को राहत मिली. उस मैनेजर की अथक प्रयास से मेरा टिकट का पैसा रिफंड हुआ और आर्यन एविएशन प्रा.लि. के हेलिकॉप्टर से फाटा पहुंचा जो पिनाकल के हेलिपैड से लगभग पाँच कि.मी. की दूरी पर था. वहाँ परिवार के सभी सदस्य मेरा बेचैनी से इंतज़ार कर रहे थे. सुबह 11 बजे के करीब हमलोग ऊखीमठ के लिए रवाना हुए जो यहाँ से करीब 25 किमी दूरी पर था. 

ऊखीमठ हमलोगों की इस छोटे चारधाम यात्रा के कार्यक्रम में शामिल नहीं था. जब हमलोग ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ जी का रुद्राभिषेक कर वापस फाटा के लिए आ रहे थे तो हमारे पुरोहित जी ने आग्रह पूर्वक कहा- महाराज! जब आप बद्रीनाथ जा ही रहें हैं तो रास्ते में ऊखीमठ जरूर जाइएगा क्योंकि पंचमुखी श्री केदारनाथ जी का शीतकालीन निवास वहीँ होता है. तो करीब 12 बजे हमलोग ओमकारेश्वर मंदिर पहुँचे. मंदिर अपनी सुंदर वास्तुशिल्प एवं चटकीले रंगों के रंग में आकर्षक लग रहा था. श्री केदारनाथ जी का शीतकालीन निवास स्थान को देख श्रद्धा से सर झुक गया और सम्पूर्ण मंदिर का दर्शन कर श्री बद्रीनाथ जी मंदिर के लिए रवाना हो गए. 

सर्दियों के दौरान, केदारनाथ मंदिर और मद्महेश्वर मंदिर से मूर्तियों को डोली में सजा कर ऊखीमठ लाया जाता है और छह माह तक ऊखीमठ में इनकी पूजा की जाती है। भगवान केदारनाथ जी एवं मद्महेश्वर महादेव की शीतकालीन पूजा और पूरे साल भगवान ओंकारेश्वर की पूजा यहीं की जाती है। फिर इनको उसी प्रकार डोली में बिठा कर केदारनाथ मंदिर और मद्महेश्वर मंदिर ले जाया जाता है. डोली निकालने से पूर्व सुबह ही श्री केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा की विधिवत पूजा अर्चना होती है और श्रृंगार किया जाता है।  इस अवसर पर सेना की जेकलाई रेजीमेंट की बैंड भी बजाया जाता है.
उषा (बाणासुर की बेटी) और अनिरुद्ध (भगवान कृष्ण के पौत्र) की शादी यहीं सम्पन की गयी थी। उषा के नाम से इस जगह का नाम ऊखीमठ पड़ा। 

ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ जी की  संक्षिप्त कथा ( विकिपीडिया से साभार ):
चौरीबारी हिमनद के कुंड से निकलती मंदाकिनी नदी के समीप, केदारनाथ पर्वत शिखर के पाद में, कत्यूरी शैली द्वारा निर्मित, विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर (3,562 मीटर) की ऊँचाई पर अवस्थित है। इसे 1000 वर्ष से भी पूर्व का निर्मित माना जाता है। जनश्रुति है कि इसका निर्माण पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय द्वारा करवाया गया था. ऐसी माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उनलोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक भैंस का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी भैंस पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस भैंस पर झपटे, लेकिन भैंस भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने भैंस की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर भैंस की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर भैंस के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।

शेष  07-12-2018 के  अंक में .................................

इस यात्रा के दौरान नजारों का लुत्फ़ आप नीचे दिए गए चित्रों से लें :

UKHIMATH

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UKHIMATH

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भाग -1  पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व

भाग -2 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :

“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व


भाग -3 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :


आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3)  हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)

भाग -4 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :

आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4)  लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा

भाग -5 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :

एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5)  यमनोत्री धाम की यात्रा

भाग -6 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :

आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन

भाग -7 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –7) गंगोत्री धाम की यात्रा)

भाग -8 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –8) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -1 

भाग -9 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –9) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -2

भाग -10 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –10) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -3


©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
  
       

Wednesday, November 28, 2018

FACE OF COMMON MAN - 10





AN OLD AGED CLOTH VENDOR  AT MOHAMMAD ALI ROAD, MUMBAI


-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

Friday, November 23, 2018

आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 10)


(भाग – 10)
 श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -3
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आपने अभी तक “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3)  हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश) , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4)  लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5)  यमनोत्री धाम की यात्राआओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –7) गंगोत्री धाम की यात्रा", आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –8) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -1") एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –9) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -2")में पढ़ा कि कैसे ब्लॉग एवं अन्य माध्यम से जानकारी जुटा कर मैंने यात्रा से संबंधित एक बारह दिवसीय कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाई. जब विश्वसनीय वेब-साईट से पता चला कि सड़क एवं मौसम यात्रा के लिए अनुकूल है तब जाकर हमलोग ने अपनी यात्रा प्रारंभ की. “हर की पौड़ी”, ऋषिकेश, यमनोत्री, बड़कोट, उत्तरकाशी, गंगोत्री यात्रा एवं सिद्ध गुरु बाबा चौरंगीनाथ के मंदिर दर्शन की यादों को दिल में सहेज कर हेलिकॉप्टर द्वारा ज्योतिर्लिंग श्री केदारनाथ धाम दर्शन के लिए श्री केदारनाथ में कपूरथला के धर्मशाला में रुके.
अब आगे .... 
जब हमलोग धर्मशाला में अपना सामान दो कमरों में व्यवस्थित कर आराम से बैठ कर आपस में हेलिकॉप्टर द्वारा रोमांचकारी यात्रा की चर्चा कर ही रहे थे कि हमारे पंडित जी एक लड़के के साथ कॉफ़ी ले कर उपस्थित हुए और बोले "महाराज जी ! आप पहले कॉफ़ी पी ले. उसके बाद हमलोग चार बजे यहाँ से प्रस्थान कर  सबसे पहले श्री केदारनाथ जी की दर्शन करेंगे फिर संध्या आरती में सम्मलित होंगे और कल सुबह चार बजे मैं गर्म पानी भिजवा दूंगा आप लोग स्नान कर तैयार हो जाना तब हमलोग श्री केदारनाथ जी के रुद्राभिषेक के लिए चलेंगे." इस प्रकार विनम्रता पूर्वक निवेदन कर वे पुनः सायं चार बजे उपस्थित हुए और हमलोग उनके साथ श्री केदारनाथ जी के हेतु मंदिर पहुंचे. जगमोहन (असेंबली हॉल) के द्वार के सामने एक बहुत बड़ा नंदी बैल की मूर्ति मंदिर की रक्षा के लिए बैठा था. मंदिर में दर्शन हेतु भक्तों की कतार लग गई थी परन्तु अभी कतार छोटी थी और हमलोग उस कतार के हिस्सा हो गए. 



थोड़ी ही देर में कतार बहुत लम्बी हो गई थी. दोपहर के विशेष पूजा के बाद मंदिर का कपाट भगवान् के विश्राम के लिए बंद थे. कपाट खुलते ही श्रद्धालुओं की पंक्ति आगे बढ़ने लगी और जब हमलोग मंदिर में प्रवेश किए तो दरवाजे पर दो द्वारपाल की मूर्ति थी. जब जगमोहन में प्रवेश किए आगे बायीं तरफ द्रौपदी सहित पाण्डवों की मूर्ति लगी हुई थी. जगमोहन में पार्वती जी का पाषाण विग्रह है । इनकी नित्य नियम रूप में पूजा होती है । आगे दाहिने मुड़ने पर बायीं तरफ साक्षात् शिव सम्पूर्ण श्रृंगार के साथ दर्शन दिए.  उस दिव्य ज्योतिर्लिंग के सामने पीतल की एक छोटी नंदी की मूर्ति थी. इन दोनों के दर्शन मात्र से मन को असीम शांति मिल रही थी. हमलोग श्री केदारनाथ जी का दूर से दर्शन किए. जगमोहन में ही श्री ईशानेश्वर महादेव का  ईशान कोण में शिवलिंग स्थित है उनका दर्शन कर निकास द्वार से हमलोग बाहर इस आशा से आए कि कल गर्भगृह में जा कर दिव्य ज्योतिर्लिंग को स्पर्श कर पाऊँगा. बाहर निकल कर दाहिने तरफ मुड़ा तो वहाँ एक कतार में विभिन्न प्रकार के भेष में साधु धूनी जमायें बैठे थे. हमलोगों ने मंदिर की परिक्रमा करने लगे तभी मंदिर के पीछे दिव्य शिला दिखा. 16 और 17 जून 2013 के उस हाहाकारी सैलाब को कोई कैसे भूल सकता है? उस विनाशकारी सैलाब ने पूरे केदारधाम को बर्बाद कर दिया था. मजबूत से मजबूत इमारतों को तिनके की तरह बहाता ले गया था वो सैलाब. महज कुछ मिनटों में ही केदारधाम का नामोनिशान मिटा गया. लेकिन अगर इस तबाही के बीच भी केदारनाथ का मंदिर चट्टान की तरह खड़ा रहा तो इसके पीछे कोई चमत्कार नहीं, वही दिव्य शिला थी.

हमलोग वहाँ नत-मस्तक हुए और भक्ति भाव से परिक्रमा पूरी कर मंदिर के पीछे भैरव नाथ मंदिर की तरफ बढ़े तो देखा भारत सरकार ने मंदिर को सुरक्षित रखने के लिए मंदिर से करीब दो सौ मीटर दूरी पर कंक्रीट की मोटी ऊँची दोहरी दीवार बना रखी है और दीवारों पर मनोरम शिव की झाँकी प्रदर्शित की गई है. दीवारों के ऊपर पहाड़ों का विहंगम दृश्य देखने के लिए छोटे यात्री दीर्घा बनाए गए हैं. दीवारों के बायीं तरफ अलकनंदा एवं दायीं तरफ सरस्वती बहती है और इन दोनों को यात्री दीर्घा से देखना किसी स्वर्ग में खड़े होकर देखने जैसा है. 

जून 2013 की आपदा में मंदाकिनी व सरस्वती (स्थानीय नदी) नदियों का संगम मंदिर के पीछे होने से ही केदारपुरी में भारी तबाही मची थी। भविष्य में इसी तरह की आशंका को देखते हुए निम (नेहरू पर्वतारोहण संस्थान) ने इटालियन कंपनी नक्काफेरी के सहयोग से मंदिर के पीछे एक मीटर चौड़ी, ढाई मीटर गहरी, एक हजार फीट लंबी और बारह फीट ऊंची थ्री लेयर दीवार बनाई गई। इससे अब मंदिर के पीछे दोनों नदियों का संगम होने के आसार ना के बराबर रह गए हैं। अब केदारनाथ मंदिर से लगभग 500 मीटर पीछे अलग-अलग दिशाओं में मंदाकिनी व सरस्वती नदी बहती हैं और मंदिर से 300 मीटर नीचे इनका संगम होता है।

हमलोग भैरव मंदिर की तरफ आगे बढ़े परन्तु सरस्वती नदी को पार करने के लिए कोई सुरक्षित रास्ता नहीं था अतः हमलोग पुनः मंदिर वापस आ गए. वहाँ से थोड़ी दूरी पर एक होटल में समोसा, जलेबी एवं छोले-भठूरे खाए. शाम 7:30 बजे से 8:30 बजे तक मनोहारी आरती देख हमलोग अपने धर्मशाला में रात का भोजन कर सो गए.

केदारनाथ के संत और रावल (मुख्य पुजारी), केदारनाथ मंदिर की आरती में शामिल होते हैं. मुख्य पुजारी (रावल) कर्नाटक के वीराशिवा समुदाय से संबंधित हैं। मुख्य पुजारी श्री राजशेखर लिंग महाआरती में भाग लेते हैं. हालांकि, बद्रीनाथ मंदिर के विपरीत, केदारनाथ मंदिर का रावल पुजा नहीं करते हैं. पुजा रावल के सहायकों द्वारा उनके निर्देशों पर किए जाते हैं। सर्दियों के मौसम के दौरान रावल, देवता के साथ ऊखीमठ चले जाते हैं है। मंदिर के लिए पांच मुख्य पुजारी हैं, और वे रोटेशन द्वारा एक वर्ष के लिए मुख्य पुजारी बन जाते हैं। केदारनाथ में भगवान शिव की पूजा के दौरान मंत्र कन्नड़ भाषा में उच्चारण किए जाएंगे। यह सैकड़ों वर्षों से एक रीति रही है. मंदिर के गर्भगृह में एक त्रिकोणीय आकार की ज्योतिर्लिंग की पूजा की जाती है। उत्तराखंड में 7वीं से 11वीं शताब्दी में कत्यूर वंश के राजाओं ने कई मंदिरों का निर्माण करवाया. विशेष आकार और प्रकार की इस शैली को नागर या रेखा शिखर शैली (इंडो-आर्यन शैली) बाद में कत्यूर शैली कहा गया. मंदिर के ऊपर 20 द्वार की चौखुटी है व सबसे ऊपर सुनहरा कलश है। (चित्र शीर्षक के साथ दिया गया है) 

सुबह चार बजे पंडित जी ने गर्म पानी का व्यवस्था कर जल्दी से तैयार हो कर मंदिर चलने का निर्देश दिया और हमलोगों ने उनका निर्देश को पालन कर बच्चों को छोड़ हमलोग केदारनाथ जी के रुद्राभिषेक के लिए पंडित जी के साथ निकल पड़े. लगभग आधे घंटे तक मंत्रौच्चारण के साथ महादेव जी का रुद्राभिषेक किए. पंडित जी ने जब एक गमछा गले में डाला तो मैं भाव-विभोर हो कर कातर नज़रों से ज्योतिर्लिंग को देखा और मन में कहा- हे महादेव! आप कितने कृपालु है कि मुझ जैसे तुच्छ प्राणी को ऐसा सौभाग्य प्रदान किया है. आज मेरे 21 वीं शादी की सालगिरह पर आपका आशीर्वाद मिलना किसी स्वप्न जैसा ही है." महा-मृतुन्जय का जाप करते हुए हमदोनों पति-पत्नी गर्भ गृह से बाहर आए और धर्मशाला में पंडित जी को उचित दक्षिणा दे कर सामान के साथ वापस फाटा जाने के लिए हेली-पैड के पास पिनाकल के ऑफिस पहुँचे.
पुरोहित जी के साथ 
पूजा का समय-प्रातः एवं सायंकाल है। सुबह की पूजा निर्वाण दर्शन कहलाता है. इसमें शिवपिंड को प्राकृतिक रूप से पूजा जाता है। सायंकालीन पूजा को श्रृंगार दर्शन कहते हैं जब शिव पिंड को फूलो, आभूषणों से सजाते है। यह पूजा मंत्रोच्चारण, घंटीवादन एवं भक्तो की उपस्थिति में ही संपत्र किया जाता है। 
शेष  30-11-2018 के  अंक में .................................
इस यात्रा के दौरान नजारों का लुत्फ़ आप नीचे दिए गए चित्रों से लें :
























भाग -1  पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व

भाग -2 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :

“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व


भाग -3 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :


आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3)  हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)

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आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4)  लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा

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एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5)  यमनोत्री धाम की यात्रा

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©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
     

Wednesday, November 21, 2018

MEME SERIES - 20


Biweekly Edition (पाक्षिक संस्करण) 21 Nov'2018 to 04 Dec'2018

मीम (MEME)

"यह एक सैद्धांतिक इकाई है जो सांस्कृतिक विचारों, प्रतीकों या मान्यताओं आदि को लेखन, भाषण, रिवाजों या अन्य किसी अनुकरण योग्य विधा के माध्यम से एक मस्तिष्क से दूसरे मस्तिष्क में पहँचाने का काम करती है। "मीम" शब्द प्राचीन यूनानी शब्द μίμημα; मीमेमा का संक्षिप्त रूप है जिसका अर्थ हिन्दी में नकल करना या नकल उतारना होता है। इस शब्द को गढ़ने और पहली बार प्रयोग करने का श्रेय ब्रिटिश विकासवादी जीवविज्ञानी रिचर्ड डॉकिंस को जाता है जिन्होने 1976 में अपनी पुस्तक "द सेल्फिश जीन" (यह स्वार्थी जीन) में इसका प्रयोग किया था। इस शब्द को जीन शब्द को आधार बना कर गढ़ा गया था और इस शब्द को एक अवधारणा के रूप में प्रयोग कर उन्होने विचारों और सांस्कृतिक घटनाओं के प्रसार को विकासवादी सिद्धांतों के जरिए समझाने की कोशिश की थी। पुस्तक में मीम के उदाहरण के रूप में गीत, वाक्यांश, फैशन और मेहराब निर्माण की प्रौद्योगिकी इत्यादि शामिल है।"- विकिपीडिया से साभार.

MEME SERIES - 20

By looking at this picture you might be having certain reaction in your mind, through this express your reaction as the title or the  caption. The selected title or caption of few people will be published in the next MEME SERIES POST.

इस तस्वीर को देख कर आपके मन में अवश्य ही किसी भी प्रकार के प्रतिक्रिया उत्पन्न हुई होगी, तो उसी को शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)के रूप में व्यक्त करें। चुने हुए शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION)को अगले MEME SERIES POST में प्रकाशित की जाएगी।

परिवर्तन !
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The next edition will be published on  DECEMBER 05, 2018. If you have similar type of picture on your blog, leave a link of your post in my comments section. I will link your posts on my blog in the next edition. Thank you very much dear friends for all your valuable captions for MEME SERIES-19 . Your participation and thoughts are deeply appreciated by me. Some of the best captions are listed below.

अगला संस्करण 05 दिसम्बर , 2018 को प्रकाशित किया जाएगा। यदि आपके ब्लॉग पर इस तरह की कोई तस्वीर है, तो अपने पोस्ट का लिंक मेरी टिप्पणी अनुभाग में लिख दें। मैं अगले संस्करण में अपने ब्लॉग पर आपका पोस्ट लिंक कर दूंगा। मेरे प्रिय मित्रों, आपके सभी बहुमूल्य शीर्षक(TITLE) या अनुशीर्षक(CAPTION) के लिए धन्यवाद। MEME SERIES-19 के पोस्ट पर आपकी भागीदारी और विचारों ने मुझे बहुत प्रभावित किया, उनमें से कुछ बेहतरीन कैप्शन नीचे उल्लेखित हैं। 


MEME SERIES-19 के बेहतरीन कैप्शन


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निर्माण का भार हमारे कन्धों पर, 
लगता अँगूठा अनजाने अनुबंधों पर।.................................................Ravindra Singh Yadav
यहाँ के हम सिकंदर, रखें वक्त को अपनी जेब के अंदर.........................Abhilasha Chauhan
एक रंग सुरक्षा जैकेट
जान बचाने की खातिर
धार्मिक उन्माद नहीं ....................................................  ..............सुशील कुमार जोशी (SKJoshi)


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