(भाग – 11)
आपने अभी तक “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”, “आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3) हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)” , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4) लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा” , आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5) यमनोत्री धाम की यात्रा”, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन”, आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –7) गंगोत्री धाम की यात्रा", आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –8) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -1"), आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –9) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -2") एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –10) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -3") में पढ़ा कि कैसे ब्लॉग एवं अन्य माध्यम से जानकारी जुटा कर मैंने यात्रा से संबंधित एक बारह दिवसीय कार्यक्रम की रूप-रेखा बनाई. जब विश्वसनीय वेब-साईट से पता चला कि सड़क एवं मौसम यात्रा के लिए अनुकूल है तब जाकर हमलोग ने अपनी यात्रा प्रारंभ की. “हर की पौड़ी”, ऋषिकेश, यमनोत्री, बड़कोट, उत्तरकाशी, गंगोत्री यात्रा एवं सिद्ध गुरु बाबा चौरंगीनाथ के मंदिर दर्शन एवं ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ धाम दर्शन के के साथ ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ जी का रुद्राभिषेक कर उन सभी यादों को दिल में सहेज कर वापस फाटा के लिए चल पड़े.
अब आगे ....
जब हमलोग फाटा जाने के लिए पिनाकल के ऑफिस पहुँचे उनलोगों ने फिर से हमलोगों को दो ग्रुप अर्थात् चार-चार सदस्यों में बाँट दिया. इस बार सबसे पहले हेलिकॉप्टर से जाने में मैं मेरी पत्नी, मेरा बेटा और मेरे भाई की पत्नी का नाम था. पिनाकल के फिल्ड-स्टाफ के दिशा-निर्देशानुसार मैं पायलट के बगल में बैठ गया और शेष तीनों पीछे की सीट पर बैठ गए. फिल्ड-स्टाफ के निर्देश में एक निर्देश यह भी होता है कि आप मोबाइल एवं कैमरा का इस्तेमाल नहीं करेंगे और लोभ-लुभावन प्राकृतिक दृश्य के बावजूद हमलोग ने फाटा से श्री केदारनाथ आने में इस निर्देश का पालन भी किया यह अलग बात थी कि पायलट महोदय खुद बड़े मज़े से हेलिकॉप्टर उड़ाते समय व्हाट्सऐप चलाते रहे. खैर! जब मैं पायलट के बगल में बैठा तो मैं पायलट को देख मुस्कुरा दिया चूँकि वही पायलट हमलोगों को लेकर आया था. हेलिकॉप्टर उड़ान भर चूका था और मैं सबसे आगे बैठा था. मेरे और प्राकृतिक नजारों के बीच बस एक काँच की खिड़की थी. पायलट के बगल में बैठ कर उड़ान भरना ऐसा लग रहा था मानों एक बड़ा चश्मा पहन कर मैं उड़ रहा हूँ और साथ कोई नहीं है. मैं अभी इस अद्भुत कल्पना का आनंद ही ले रहा था कि मेरे जैकेट की दायीं जेब में चुभन महसूस हुई. तब मुझे एहसास हुआ की जेब में पड़ी कैमरा पर सेफ्टी बेल्ट के दवाब से चुभन महसूस कर रहा था. अवचेतन मन से मैं अपने दायीं हाथ से कैमरा पकड़ कर दूसरी जेब में डालने के लिए निकाला ही था की पायलट ने मेरा हाथ पकड़ लिया और हेलिकॉप्टर वापस श्री केदारनाथ हेली-पैड पर मुझे उतारा और मेरे स्थान पर मेरे बेटे को बिठा कर वापस फाटा चला गया. मैं तो आवाक रह गया. फिल्ड-स्टाफ ने मुझसे कहा कि क्या आपने पायलट के साथ हाथापाई किया है तो जो घटना घटी थी उसको बताया फिर उसने मुझे पिनाकल के ऑफिस में जाने को बोला. इधर मेरे भाई के साथ अन्य सदस्य उड़ान भरने के इंतज़ार में थे. वे भी हैरान थे की क्या हुआ? मैं जब पिनाकल के मैनेजर से मिला तो उसने मुझे पूरी मदद का आश्वासन दिया और आराम से बैठने को कहा. उसने फोन द्वारा पायलट को मुझे ले जाने के लिए बहुत रिक्वेस्ट किया परन्तु वह नहीं माना. उसी के फोन से मैंने अपने परिवार से बात कर अपना कुशलक्षेम बताया तो उनलोगों को राहत मिली. उस मैनेजर की अथक प्रयास से मेरा टिकट का पैसा रिफंड हुआ और आर्यन एविएशन प्रा.लि. के हेलिकॉप्टर से फाटा पहुंचा जो पिनाकल के हेलिपैड से लगभग पाँच कि.मी. की दूरी पर था. वहाँ परिवार के सभी सदस्य मेरा बेचैनी से इंतज़ार कर रहे थे. सुबह 11 बजे के करीब हमलोग ऊखीमठ के लिए रवाना हुए जो यहाँ से करीब 25 किमी दूरी पर था.
ऊखीमठ हमलोगों की इस छोटे चारधाम यात्रा के कार्यक्रम में शामिल नहीं था. जब हमलोग ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ जी का रुद्राभिषेक कर वापस फाटा के लिए आ रहे थे तो हमारे पुरोहित जी ने आग्रह पूर्वक कहा- महाराज! जब आप बद्रीनाथ जा ही रहें हैं तो रास्ते में ऊखीमठ जरूर जाइएगा क्योंकि पंचमुखी श्री केदारनाथ जी का शीतकालीन निवास वहीँ होता है. तो करीब 12 बजे हमलोग ओमकारेश्वर मंदिर पहुँचे. मंदिर अपनी सुंदर वास्तुशिल्प एवं चटकीले रंगों के रंग में आकर्षक लग रहा था. श्री केदारनाथ जी का शीतकालीन निवास स्थान को देख श्रद्धा से सर झुक गया और सम्पूर्ण मंदिर का दर्शन कर श्री बद्रीनाथ जी मंदिर के लिए रवाना हो गए.
सर्दियों के दौरान, केदारनाथ मंदिर और मद्महेश्वर मंदिर से मूर्तियों को डोली में सजा कर ऊखीमठ लाया जाता है और छह माह तक ऊखीमठ में इनकी पूजा की जाती है। भगवान केदारनाथ जी एवं मद्महेश्वर महादेव की शीतकालीन पूजा और पूरे साल भगवान ओंकारेश्वर की पूजा यहीं की जाती है। फिर इनको उसी प्रकार डोली में बिठा कर केदारनाथ मंदिर और मद्महेश्वर मंदिर ले जाया जाता है. डोली निकालने से पूर्व सुबह ही श्री केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा की विधिवत पूजा अर्चना होती है और श्रृंगार किया जाता है। इस अवसर पर सेना की जेकलाई रेजीमेंट की बैंड भी बजाया जाता है.
उषा (बाणासुर की बेटी) और अनिरुद्ध (भगवान कृष्ण के पौत्र) की शादी यहीं सम्पन की गयी थी। उषा के नाम से इस जगह का नाम ऊखीमठ पड़ा।
ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ जी की संक्षिप्त कथा ( विकिपीडिया से साभार ):
चौरीबारी हिमनद के कुंड से निकलती मंदाकिनी नदी के समीप, केदारनाथ पर्वत शिखर के पाद में, कत्यूरी शैली द्वारा निर्मित, विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर (3,562 मीटर) की ऊँचाई पर अवस्थित है। इसे 1000 वर्ष से भी पूर्व का निर्मित माना जाता है। जनश्रुति है कि इसका निर्माण पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय द्वारा करवाया गया था. ऐसी माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उनलोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक भैंस का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी भैंस पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस भैंस पर झपटे, लेकिन भैंस भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने भैंस की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर भैंस की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर भैंस के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।
शेष 07-12-2018 के अंक में .................................
इस यात्रा के दौरान नजारों का लुत्फ़ आप नीचे दिए गए चित्रों से लें :
अब आगे ....
जब हमलोग फाटा जाने के लिए पिनाकल के ऑफिस पहुँचे उनलोगों ने फिर से हमलोगों को दो ग्रुप अर्थात् चार-चार सदस्यों में बाँट दिया. इस बार सबसे पहले हेलिकॉप्टर से जाने में मैं मेरी पत्नी, मेरा बेटा और मेरे भाई की पत्नी का नाम था. पिनाकल के फिल्ड-स्टाफ के दिशा-निर्देशानुसार मैं पायलट के बगल में बैठ गया और शेष तीनों पीछे की सीट पर बैठ गए. फिल्ड-स्टाफ के निर्देश में एक निर्देश यह भी होता है कि आप मोबाइल एवं कैमरा का इस्तेमाल नहीं करेंगे और लोभ-लुभावन प्राकृतिक दृश्य के बावजूद हमलोग ने फाटा से श्री केदारनाथ आने में इस निर्देश का पालन भी किया यह अलग बात थी कि पायलट महोदय खुद बड़े मज़े से हेलिकॉप्टर उड़ाते समय व्हाट्सऐप चलाते रहे. खैर! जब मैं पायलट के बगल में बैठा तो मैं पायलट को देख मुस्कुरा दिया चूँकि वही पायलट हमलोगों को लेकर आया था. हेलिकॉप्टर उड़ान भर चूका था और मैं सबसे आगे बैठा था. मेरे और प्राकृतिक नजारों के बीच बस एक काँच की खिड़की थी. पायलट के बगल में बैठ कर उड़ान भरना ऐसा लग रहा था मानों एक बड़ा चश्मा पहन कर मैं उड़ रहा हूँ और साथ कोई नहीं है. मैं अभी इस अद्भुत कल्पना का आनंद ही ले रहा था कि मेरे जैकेट की दायीं जेब में चुभन महसूस हुई. तब मुझे एहसास हुआ की जेब में पड़ी कैमरा पर सेफ्टी बेल्ट के दवाब से चुभन महसूस कर रहा था. अवचेतन मन से मैं अपने दायीं हाथ से कैमरा पकड़ कर दूसरी जेब में डालने के लिए निकाला ही था की पायलट ने मेरा हाथ पकड़ लिया और हेलिकॉप्टर वापस श्री केदारनाथ हेली-पैड पर मुझे उतारा और मेरे स्थान पर मेरे बेटे को बिठा कर वापस फाटा चला गया. मैं तो आवाक रह गया. फिल्ड-स्टाफ ने मुझसे कहा कि क्या आपने पायलट के साथ हाथापाई किया है तो जो घटना घटी थी उसको बताया फिर उसने मुझे पिनाकल के ऑफिस में जाने को बोला. इधर मेरे भाई के साथ अन्य सदस्य उड़ान भरने के इंतज़ार में थे. वे भी हैरान थे की क्या हुआ? मैं जब पिनाकल के मैनेजर से मिला तो उसने मुझे पूरी मदद का आश्वासन दिया और आराम से बैठने को कहा. उसने फोन द्वारा पायलट को मुझे ले जाने के लिए बहुत रिक्वेस्ट किया परन्तु वह नहीं माना. उसी के फोन से मैंने अपने परिवार से बात कर अपना कुशलक्षेम बताया तो उनलोगों को राहत मिली. उस मैनेजर की अथक प्रयास से मेरा टिकट का पैसा रिफंड हुआ और आर्यन एविएशन प्रा.लि. के हेलिकॉप्टर से फाटा पहुंचा जो पिनाकल के हेलिपैड से लगभग पाँच कि.मी. की दूरी पर था. वहाँ परिवार के सभी सदस्य मेरा बेचैनी से इंतज़ार कर रहे थे. सुबह 11 बजे के करीब हमलोग ऊखीमठ के लिए रवाना हुए जो यहाँ से करीब 25 किमी दूरी पर था.
ऊखीमठ हमलोगों की इस छोटे चारधाम यात्रा के कार्यक्रम में शामिल नहीं था. जब हमलोग ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ जी का रुद्राभिषेक कर वापस फाटा के लिए आ रहे थे तो हमारे पुरोहित जी ने आग्रह पूर्वक कहा- महाराज! जब आप बद्रीनाथ जा ही रहें हैं तो रास्ते में ऊखीमठ जरूर जाइएगा क्योंकि पंचमुखी श्री केदारनाथ जी का शीतकालीन निवास वहीँ होता है. तो करीब 12 बजे हमलोग ओमकारेश्वर मंदिर पहुँचे. मंदिर अपनी सुंदर वास्तुशिल्प एवं चटकीले रंगों के रंग में आकर्षक लग रहा था. श्री केदारनाथ जी का शीतकालीन निवास स्थान को देख श्रद्धा से सर झुक गया और सम्पूर्ण मंदिर का दर्शन कर श्री बद्रीनाथ जी मंदिर के लिए रवाना हो गए.
सर्दियों के दौरान, केदारनाथ मंदिर और मद्महेश्वर मंदिर से मूर्तियों को डोली में सजा कर ऊखीमठ लाया जाता है और छह माह तक ऊखीमठ में इनकी पूजा की जाती है। भगवान केदारनाथ जी एवं मद्महेश्वर महादेव की शीतकालीन पूजा और पूरे साल भगवान ओंकारेश्वर की पूजा यहीं की जाती है। फिर इनको उसी प्रकार डोली में बिठा कर केदारनाथ मंदिर और मद्महेश्वर मंदिर ले जाया जाता है. डोली निकालने से पूर्व सुबह ही श्री केदारनाथ की पंचमुखी प्रतिमा की विधिवत पूजा अर्चना होती है और श्रृंगार किया जाता है। इस अवसर पर सेना की जेकलाई रेजीमेंट की बैंड भी बजाया जाता है.
उषा (बाणासुर की बेटी) और अनिरुद्ध (भगवान कृष्ण के पौत्र) की शादी यहीं सम्पन की गयी थी। उषा के नाम से इस जगह का नाम ऊखीमठ पड़ा।
ज्योर्तिर्लिंग श्री केदारनाथ जी की संक्षिप्त कथा ( विकिपीडिया से साभार ):
चौरीबारी हिमनद के कुंड से निकलती मंदाकिनी नदी के समीप, केदारनाथ पर्वत शिखर के पाद में, कत्यूरी शैली द्वारा निर्मित, विश्व प्रसिद्ध केदारनाथ मंदिर (3,562 मीटर) की ऊँचाई पर अवस्थित है। इसे 1000 वर्ष से भी पूर्व का निर्मित माना जाता है। जनश्रुति है कि इसका निर्माण पांडवों या उनके वंशज जन्मेजय द्वारा करवाया गया था. ऐसी माना जाता है कि महाभारत के युद्ध में विजयी होने पर पांडव भ्रातृहत्या के पाप से मुक्ति पाना चाहते थे। इसके लिए वे भगवान शंकर का आशीर्वाद पाना चाहते थे, लेकिन वे उनलोगों से रुष्ट थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशी गए, पर वे उन्हें वहां नहीं मिले। वे लोग उन्हें खोजते हुए हिमालय तक आ पहुंचे। भगवान शंकर पांडवों को दर्शन नहीं देना चाहते थे, इसलिए वे वहां से अंतर्ध्यान हो कर केदार में जा बसे। दूसरी ओर, पांडव भी लगन के पक्के थे, वे उनका पीछा करते-करते केदार पहुंच ही गए। भगवान शंकर ने तब तक भैंस का रूप धारण कर लिया और वे अन्य पशुओं में जा मिले। पांडवों को संदेह हो गया था। अत: भीम ने अपना विशाल रूप धारण कर दो पहाडों पर पैर फैला दिया। अन्य सब गाय-बैल तो निकल गए, पर शंकर जी रूपी भैंस पैर के नीचे से जाने को तैयार नहीं हुए। भीम बलपूर्वक इस भैंस पर झपटे, लेकिन भैंस भूमि में अंतर्ध्यान होने लगा। तब भीम ने भैंस की त्रिकोणात्मक पीठ का भाग पकड़ लिया। भगवान शंकर पांडवों की भक्ति, दृढ संकल्प देख कर प्रसन्न हो गए। उन्होंने तत्काल दर्शन देकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उसी समय से भगवान शंकर भैंस की पीठ की आकृति-पिंड के रूप में श्री केदारनाथ में पूजे जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि जब भगवान शंकर भैंस के रूप में अंतर्ध्यान हुए, तो उनके धड़ से ऊपर का भाग काठमाण्डू में प्रकट हुआ। अब वहां पशुपतिनाथ का प्रसिद्ध मंदिर है। शिव की भुजाएं तुंगनाथ में, मुख रुद्रनाथ में, नाभि मदमदेश्वर में और जटा कल्पेश्वर में प्रकट हुए। इसलिए इन चार स्थानों सहित श्री केदारनाथ को पंचकेदार कहा जाता है।
शेष 07-12-2018 के अंक में .................................
इस यात्रा के दौरान नजारों का लुत्फ़ आप नीचे दिए गए चित्रों से लें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 1) यात्रा पूर्व”
भाग -2 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
“आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 2) यात्रा पूर्व”
भाग -3 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 3) हरिद्वार (प्रथम पड़ाव एवं विधिवत रूप से चार धाम यात्रा का श्री गणेश)”
भाग -4 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 4) लक्ष्मण झुला दर्शन एवं बड़कोट की यात्रा”
भाग -5 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
एवं आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 5) यमनोत्री धाम की यात्रा”
भाग -6 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग – 6) उत्तरकाशी की यात्रा एवं विश्वनाथ मंदिर और शक्ति मंदिर दर्शन”
भाग -7 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –7) गंगोत्री धाम की यात्रा)
भाग -8 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –8) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -1
भाग -9 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –9) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -2
भाग -10 पढ़ने के लिए नीचे क्लिक करें :
आओ छोटा चार धाम यात्रा पर चलें – (भाग –10) श्री केदारनाथ धाम की यात्रा -3
© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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