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Thursday, October 25, 2012

जीवन साथी



       (पृष्ठभूमि :- स्त्री-पुरुष परस्पर पति-पत्नी के संबंध में जीवन  के बहुमूल्य समय व्यतीत करते है, पत्नी अपनी पुराने सभी संबंधो  को भुलाकर   नए संबंधो को आत्मसात  करने में  शेष जीवन  गुजार  देती है | विडंबना  यह है  कि  उसके जीवन  के अंतिम समय में केवल उसका   पति ही उसके होने या खोने का अर्थ जान पाता है | )



जीवन साथी

मेरे अंधेरे जीवन में,
तुम हो  सूरज की पहली किरण।
जब  भी गमों ने  घेरा है,
तुम ही लाई हो ख़ुशी  के  क्षण।
मैं भटका हूँ  पथ से कभी ,
तुमने दिखाया है मुझको दर्पण।
जब भी माँगा साथ तुम्हारा,
सदा दिया है मुझको समर्थन।
मेरे जीवन में खुशियों की  खातिर,
तुमने किया है जीवन अर्पण।
अब  तुम नहीं हो  नश्वर जगत में ,
कैसे आओगी खुश करने मेरा मन।
मैं तो कठोर अभिमानी  था,
तेरा मर्म न जान  सका,
मुझको तुम  तो माफ ही करना,
मैं तो हूँ अब तेरी शरण।
-राकेश कुमार श्रीवास्तव

सफ़र 



  (पृष्ठभूमि :- नायक अपनी नायिका को छोड़ कर किसी विशेष कार्य हेतु रेलगाड़ी  से  लम्बी  यात्रा  पर  निकलता   है   और  विरह  कि  आग  मै  जल  रहा   है |  इस जलन को  कम करने लिए नायक , नायिका  को याद   करते   हुए   अपने  मनोभाव को व्यक्त करता है | )


सफ़र 

तुझे छोड़ कर मै, सफ़र कर रहा हूँ,
मगर मेरे साथ, सदा चल रही है|
सुबह मै चला था, तू मेरे संग थी,
तेरी यादों में खोया , दिन भर  चला हूँ|
शाम हो रही है, सूरज ढल चुका  है,
मगर तू मेरे संग, चली जा रही है|
तेरे ख्यालों में , जिए जा रहा हूँ,
कभी हँस रहा हूँ, कभी मुस्कुरांऊँ   |
मुझे देख कर, लोग कर रहे इशारे,
मैं हो गया दीवाना, ये समझा रहे हैं|
चाँद आ गया, मगर तू वहीं है,
चाँद में भी बस, तुम्ही नजर आ रही हो|
तुझे भूलने की, जतन   मैंने की है,
सम्पूर्ण क्षितिज पर, तू छा गई है|
आँखें मूंदकर मैं, अब सोने लगा हूँ,
तेरी याद और भी, गहरा गई है|
अब मैं सो रहा हूँ, नींद आ गई है,
सपनों  में, तुम्हारी  याद आ रही है|
सुबह हो गई है, मैं जग गया हूँ,
चादर के सलवटों पे, तुझे ढूंढ़ रहा हूँ| 
अभी तू कहीं है, मगर मेरे दिल में,
मेरे साथ तू भी, सफ़र कर रही है|
तेरी याद न जाएगी, तू कहीं भी चली जा,
तेरी याद के बगैर, मैं जी न सकूँगा|
तुझे भूलाने का अब, जतन  न करूँगा,
तुझे छोड़ कर, अब सफ़र न करूँगा|
-राकेश कुमार श्रीवास्तव
(२९/०४/२००७)
३.

Monday, October 22, 2012

आशा


                      आशा 


तुम तो  इंसां     हो,
फिर भी  परेशां हो|
पा जाओ इससे   मुक्ति,
कर लो आशा से दोस्ती ।।
                                           राह न असां  हो,
                                           घोर निराशा हो।
                                           करना नहीं कोई गलती ,
                                           कर लो आशा से दोस्ती ।
बुरी संगति जीवन में,
मत पड़ो    व्यसन में ।
सुधार कर  अपनी संगति ,
कर लो     आशा से दोस्ती ।।
                                           मुश्किल डगर में ,
                                           नौका फंसी भंवर में।
                                           काम आए प्रभु की भक्ति ,
                                           कर लो आशा  से दोस्ती ।।
अनमोल    जीवन    है,
कुछ भी नहीं कठिन है।
तुम में है   बहुत   शक्ति ,
कर लो आशा से दोस्ती ।।


                                           

Tuesday, October 16, 2012

तन्हां

तन्हां

तन्हां तन्हां रह गया हूँ मैं।
आकर तन्हाईयों को दूर करो।।

मैं अँधेरों से घिरा रहता हूँ ।
प्यार का दीप जलाकर इसे गुलज़ार करो ।।

तेरी जज्बातों से मैं खेला हूँ ।
मेरी गुस्ताखियों को माफ़ करो ।।

लौट आओं हमारी दूनियाँ में ।
मौका देकर मुझ पे एहसान करो।।

जी नहीं सकता हूँ अब तेरे बगैर ।
आकर जीने का इंतजाम करो ।।

यकीं मुझ पे करो, ये असां तो नहीं ।
लौट आओं , मेरे एहसास को जिन्दा कर दो ।।