बैधनाथ धाम एवं वैशाली गणराज्य की यात्रा
भाग-3
बैधनाथ धाम की कथा
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श्री
वैधनाथ धाम की कथा-
पार्वती जी
के कहने पर भगवान शंकर जी ने
सोने का महल बनवाया और गृह-प्रवेश
के लिए रावण के पिता विश्वश्रवा को बुलाया। विश्वश्रवा
ने शंकर जी के कहने पर दक्षिणा
स्वरुप सोने का महल ही मांग
लिया। भगवान
शंकर ने दक्षिणा में सोने का
महल विश्वश्रवा को दे दिया
जो बाद में लंका के नाम से
प्रसिद्ध हुआ। पार्वती जी
ने विश्वश्रवा को श्राप दिया
“ हे लालची ब्राह्मण !
तेरी आनेवाली
पीढ़ी इस महल का उपयोग नहीं कर
सकेगी, तुम्हारा
सारा वंश एक साथ नष्ट हो जाएगा। " इसी श्राप को
लेकर चिंतित रहने वाली रावण
की माँ कैकसी ने रावण से कहा
कि यदि भगवान शंकर लंका में
नहीं आए तो हम सब का विनाश
निश्चित है। यह
सुनकर रावण भगवान शंकर को पाने
के लिए कैलाश पर्वत पर जाकर
घोर तप किया। उसने
एक-एक
कर अपने नौ सिर काट कर हवन कुंड
में चढ़ा दिया। जब
वह दसवां सिर चढाने वाला था
तो भगवान शंकर प्रकट हुए। उन्होंने उसके
चढ़ाये हुए नौ सिरों को यथावत्
जोड़ कर वर माँगने को कहा। तब रावण ने
भगवान शंकर से कहा कि यदि आप
मुझ से प्रसन्न है तो आप मेरी
नगरी लंका चल कर रहें। भगवान
शंकर ने कहा कि मेरे बारह
ज्योतिर्लिंग है। तुम मुझे
जिस रूप में ले जाना चाहो ले
जा सकते हो और इस लिंग को रास्ते
में नीचे मत रखना नहीं तो मैं
वहीँ स्थापित हो जाऊँगा। रावण ने जब
माता पार्वती द्वारा पूजित
आत्मलिंग को चुना तो पार्वती
जी ने आचमन कर उसे उठाने को
कहा। आचमन
कर रावण आत्मलिंग को ले कर
पुष्पक विमान से लंका के लिए
चल पड़ा। रास्ते
में आचमन के प्रभाव से उसे
लघुशंका त्यागने कि इच्छा
हुई। वहाँ
खड़े ग्वाला को आत्मलिंग पकड़ा
कर लघुशंका निवारण हेतु कुछ
दूर चला गया। बहुत
इंतज़ार करने के बाद ग्वाला,
आत्मलिंग को
धरती पर रख कर चला गया। जब रावण आया
तो आत्मलिंग को स्थापित देख
उसे उठाने की कोशिश की परन्तु
भगवान शिव टस से मस नहीं हुए
और रावण को बैरंग लंका लौटना
पड़ा। देवघर
ही वह स्थान है जहाँ आत्मलिंग
स्थापित है।
आत्मलिंग,
माघेश्वरलिंग,
कामदलिंग या
कामनालिंग, रावणेश्वर
महादेव, श्री
बैधनाथ लिंग, मर्ग,
तत्पुरुष और
वामदेव या वैजुनाथ ये बाबा
बैधनाथ के आठ नाम है.
यहाँ सती का
ह्रदय गिरा था और चिता बनाकर
अंतिम संस्कार हुआ अतः बाबा
बैधनाथ मंदिर शक्ति पीठ भी
है। इसलिए इस चिताभूमि को
हार्द्रपीठ बैधनाथ भी कहते
है। मंदिर
के भीतरी प्रकोष्ठ में शिवलिंग
के उपर एक चंदोवा लगा है जिससे
बूंद-बूंद
जल गिरता रहता जो चातुपाश्र्व
आकार के अष्टदल कमल के बीच
चंद्रकांता मणि से निकलता
है। समझा
जाता है कि यह मणि कुबेर की
राजधानी अलकापुरी
में थी जिसे रावण ने लाकर मंदिर
में लगवाया था।
पूर्वी,
पश्चिमी एवं
उत्तरी दिशा से मंदिर में
प्रवेश करने के लिए तीन प्रवेश
द्वार बने हैं। मुख्य
प्रवेश द्वार उत्तर दिशा में
है इसे सिंह द्वार भी कहते है। जब सिंह द्वार
से प्रवेश करेंगे तो बायीं
तरफ रावण द्वारा निर्मित
चंद्रूप कुआं है। इससे आगे बढ़ने
पर बायीं तरफ पार्वती जी का
मंदिर है जिसके अन्दर दो प्रतिमाएं
हैं, बायीं तरफ पार्वती जी एवं
दायीं तरफ दुर्गा जी। इनका मुख मध्य
में बने बाबा बैधनाथ मंदिर
की तरफ है।
इन
दोनो मंदिरों के शिखर लाल धागे
से जुड़े रहते हैं। लाल धागा
शिव-शक्ति
के वैवाहिक संबंध का घोतक है
और इस संबंध को अविच्छिन्न
बनाए रखने हेतु ही लाल धागा बांधने की यह परम्परा
चली आ रही है।
शादीशुदा
जोड़ा दोनों मंदिरों के शिखर
को लाल धागे से जोड़ते है जिसे
गठबंधन भी कहते है। इसका मूलभाव
यह है कि जैसे शिव-पार्वती
का संबंध है वैसा ही संबंध हम
दोनों पति-पत्नी
में हो। इन
दो मंदिरों के अलावा 21
अन्य मंदिर
है जो मंदिर के प्रांगन को
भव्य बनाते है। सिंह
द्वार से बाहर लगभग 50
मी.
उत्तर निकलने
पर शिव गंगा जलाशय है जिसका
उद्भव रावण के लघुशंका निवारण
के बाद हाथ धोने के लिए धरती
पर रावण के मुक्का मारने से
हुआ।
समुद्र
मंथन का कार्य श्रावण माह में
हुआ था और उससे निकले हलाहल
का पान भगवान शंकर ने किया। विष के प्रभाव
को कम करने के लिए भगवान शंकर
ने चन्द्रमा को सर पर धारण
किया और विष के जलन को कम करने
के लिए सभी देवता,
बाबा भोलेनाथ
को गंगा जल चढ़ाने लगे। तभी से भक्तगण
शिवलिंग पर जल चढ़ाते है और
विशेष कर श्रावण माह में शिव
भक्त कांवड़ में गंगाजल लेकर
नंगे पाँव चलकर बाबा भोलेनाथ
को जल चढ़ाते है.
देवघर से 105
कि.मी.
उत्तर सुल्तानगंज
में गंगा उत्तरायण होकर बहती
है. वही
से भक्त कांवड़ में गंगाजल लेकर
नंगे पाँव बाबा बैधनाथ को जल चढ़ाने आते हैं।
बारह
ज्योतिर्लिंग है और प्रत्येक
ज्योतिर्लिंग की पूजा से
अलग-अलग
कार्य सिद्ध होते है जैसे
मोक्ष के लिए काशी विश्वनाथ
ज्योतिर्लिंग की पूजा,
मरण,मोहन
उच्चाटन से मुक्ति के लिए
उज्जैन के महाकाल ज्योतिर्लिंग,
शांति और शीतलता
के लिए सौराष्ट्र में स्थित
सोमनाथ ज्योतिर्लिंग आदि.
परन्तु सभी
मनोकामनाओं की पूर्ति ,
देवघर स्थित
बैधनाथ ज्योतिर्लिंग की पूजा
से होती है.
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव
बम-बम भोले आप सभी पर कृपा करें.
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव
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