समाजवाद
तेरी
मेरी चाहत का
मेल
नहीं हो सकता है,
तुम्हें
चाहिए चाँद-सितारे,
मुझे
रोटी में ही सुख दिखता है।
तुम्हें
चाहिए ऋतु- भादों,
शरद,
बसंत,
मुझे
जून में पसीना बहाना अच्छा
लगता है.
तुम
ढूढ़ते हो सुख-
धन-दौलत
में,
मुझे
माँ के साये में सच्चा सुख
मिलता है।
तुम्हें
पसंद है छल-प्रपंच,
मैं
मासूम मुस्कानों में बिक जाता
हूँ।
तुम्हें
मुबारक हो महल-चौबारे,
जहाँ
नींद नहीं तुम्हें आती है।
मुझको
मेरी झोपड़ी ही प्यारी,
जहाँ
टाट पे ठाठ से सो जाता हूँ।
तेरी
चाहत, मेरी
चाहत
एक
तभी हो सकते है,
समाजवाद
का फूल खिलेगा,
सब
को समान अधिकार मिलेगा,
सब
को शिक्षा, सब
हो स्वस्थ,
सबको
रोटी, कपड़ा
और मकान मिलेगा।
आओ
! ऐसा
समाज बनाएं,
जिसमें
किसी को किसी से बैर न होगा,
तेरी
चाहत, मेरी
चाहत में,
बुनियादी
कोई फर्क न होगा।
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव
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