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Wednesday, September 20, 2017

जय अपराधी बाबा की

 जय अपराधी बाबा की 

सर्वप्रथम जेल में सज़ा काट रहे सभी बाबाओं को साष्टांग प्रणाम अर्थात  सिर, हाथ, पैर, हृदय, आँख, जाँघ, वचन और मन इन आठों से युक्त होकर भूमि पर सीधे लेटकर मेरा प्रणाम। एक ही बात को बार-बार लिखने या कहने की विधा मैंने इन्हीं बाबाओं से सीखी है और यहाँ तो मजबूरी है कि एक तो बाबाओं की शैक्षणिक योग्यता कम है या हिंदी की कुछ शब्दों के भाव को नहीं जानते है। साष्टांग प्रणाम इन बाबाओं के भक्तों को भी, जो इन बाबाओं के विरुद्ध साक्ष्य होने के बाद भी अपनी भक्ति में कोई कमी नहीं रखी। इसके साथ ही मैं वैधानिक ढंग से क्षमा चाहता हूँ उन बाहुबली भक्तों से जो महाबली बन कर भारत के सम्प्रभुता को चुनौती देते आए है तो मैं किस खेत की मूली हूँ। 

वस्तुतः  इस हास्य-व्यंग का मूल उद्देश्य बाबाओं को महिमामंडित करने का है फिर भी अगर किसी को लगे कि मैंने इन महापुरुषों के प्रति गुस्ताख़ी की हो तो उन पाठकों से विनम्र निवेदन है कि इस आलेख को पुनः पढ़ कर अपनी प्रतिक्रिया बदलें या अपनी प्रतिक्रिया फिर भी ना बदल पाएं तो मेरे इस विशेष अनुरोध पर किसी नास्तिक से इस लेख के बारे में राय लें। 

इन बाबाओं के चरणों में अपना श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए मैं यह कहना चाहता हूँ कि आपलोग यूथ आइकॉन है. आपकी महिमा का डंका सम्पूर्ण सोशल मीडिया में बजता है। इस चराचर जगत में सबसे ज्यादा पैसा, शोहरत, आनंद और  रुतबा है तो इस बाबागिरी में है। अब वह दिन दूर नहीं जब कॉर्पोरेट जगत या आईआईटियन सुनियोजित ढंग से आपके ही रास्तों पर चल कर अतुल्य भारत का निर्माण कार्य में सहयोग देंगे। ऐसे भी आपका जीवन अनुकरणीय है क्योंकि आप हिन्दू शास्त्रों के अनुरूप जीवन व्यतीत करते है पहले आप किसी ना किसी गुरुकुल में रहते है। ज्ञान अर्जन के उपरांत आप गृहस्थ आश्रम वरण करते हुए अपने एवं अपने वंशजो के लिए अकूत सम्पति अर्जित करते है फिर अंगुलिमाल डाकू की तरह कुख्यात हो जाते है तो कोई जज रुपी बुद्ध आपको आध्यात्मिक राह दिखाते है और तब आप सभी सांसारिक मोह-माया को त्याग कर वानप्रस्थ आश्रम को वरण करते है और स्वं को जानने हेतु तपस्या करने के लिए जेल की सेवा लेते हैं। अंत में 20 से 25 वर्ष का वानप्रस्थ काल को भोग कर संन्यास आश्रम को वरण करेंगे इसी मनोकामना के साथ इस आलेख के समापन के पूर्व मैं कहना चाहता हूँ कि "हे भक्तों, बाबा अपने क्रम-संन्यास का भोग कर रहें है और मोक्ष की ओर अग्रसर है। अतः यह शोक की घडी नहीं है। इस स्वर्णिम अवसर को लपको और तुम भी बाबा बन जाओ। तुम्हें तो पता ही होगा कि इस सत्संग परिपाटी में एक बाबा के जाने के बाद अनेकों बाबाओं की उत्पत्ति होती है। इसलिए तुम सभी चिंताओं से मुक्त होकर बाबा बनने की प्रक्रिया में शामिल हो जाओ और परम पद को प्राप्त करो। भक्त ही तुम्हारा कल्याण करेंगे। जय अपराधी बाबा की। इति।।

-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"







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