अपराध पर आधारित एक रोमांचक कथा को
ग़ज़ल के माध्यम से कहने की कोशिश की है।
प्रतिक्रिया अवश्य दें - राही
एक हसीना थी
रग-रग से सभी को पहचानती थी वो,सभी के दिल में क्या है? जानती थी वो।
प्यार में दग़ा दे कर, मशहूर हो गई,
यारों को ही रक़ीब, बना गई थी वो।
शमशीरें निकल पड़ीं, वो देखती रही,
हश्र क्या होगा इसका? जानती थी वो।
अंजाम कुछ भी, उसे फ़र्क नहीं पड़ता,
जीत उनकी तय थी, ये जानती थी वो।
हुस्न व इश्क में तकरार जब भी होगी,
हुस्न ही जीतेगा, ये जानती थी वो।
खंजर थी सीने में, आँखें नम मेरी,
लहराकर यूँ गोद में, आ गिरी थी वो।
आँखें खुलीं थी उसकी, मैंने बंद की,
जीत की गुरुर में, मुस्कुरा रही थी वो।
-©राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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