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Monday, December 16, 2019

मोहब्बत



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मोहब्बत

साक़ी क्या मिलाई है, तू ने प्यालों में। 

पीकर रहता हूँ, तेरे ही ख़यालों में। 


तुम मुझे चाहो, मेरी चाहत है साक़ी,  

मेरा कभी नाम हो, चाहने वालों में। 


कलम से निकले थे, कभी अरमान साक़ी, 

उन्हीं खतों का चर्चा है, शहर वालों में। 


तेरा करम, जो तू ने मुझ को अपनाया

मशहूर हो गया मैं, सभी दिलवालों में। 


जब से छोड़ गई हो, अकेले इस जग में,  

उलझे हुए हैं, बेवजह के सवालों में।  

©  राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'


17 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 16 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. Behad hi marmsparshi or bhavo ko kriya denewala bhaav aa gya. akalpaniya atthah prem.

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    1. आपकी टिप्पणी पढ़ कर हौसला मिलता है। आप निरंतर मेरे ब्लॉग को अनुकरण करते हैं, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ।

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  3. "पीकर रहता हूँ, तेरे ही ख़यालों में"

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  4. इस रचना पर आपका ध्यान आया इसके लिए आभार राकेश जीमैं आपका आभारी हूँ।

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  5. जब से छोड़ गई हो, अकेले इस जग में,
    उलझे हुए हैं, बेवजह के सवालों में
    बेहद हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन
    वाह!!!

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    1. उत्साहवर्धन के लिए आभार सुधा जी।

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  6. बहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगा सर।
    बहुत अच्छा लिखे हैं।

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  7. ख्यालोंं में आने के लिये पीना जरूरी ना करें।

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    1. ख्याल रखूँगा महोदय, आभार।

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  8. बहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी सृजन ।

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  9. जब से छोड़ गई हो, अकेले इस जग में,
    उलझे हुए हैं, बेवजह के सवालों में
    बहुत सुंदर मनभावन रचना राकेश जी | आपके ब्लॉग पर आपके लेखन से हलचल हुई , बहुत अच्छा लग रहा है |सस्नेह शुभकामनायें |

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मेरे पोस्ट के प्रति आपकी राय मेरे लिए अनमोल है, टिप्पणी अवश्य करें!- आपका राकेश श्रीवास्तव 'राही'