साक़ी क्या मिलाई है, तू ने प्यालों में।
पीकर रहता हूँ, तेरे ही ख़यालों में।
तुम मुझे चाहो, मेरी चाहत है साक़ी,
मेरा कभी नाम हो, चाहने वालों में।
कलम से निकले थे, कभी अरमान साक़ी,
उन्हीं खतों का चर्चा है, शहर वालों में।
तेरा करम, जो तू ने मुझ को अपनाया
मशहूर हो गया मैं, सभी दिलवालों में।
जब से छोड़ गई हो, अकेले इस जग में,
उलझे हुए हैं, बेवजह के सवालों में।
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 16 दिसम्बर 2019 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार यशोदा बहन।
DeleteBehad hi marmsparshi or bhavo ko kriya denewala bhaav aa gya. akalpaniya atthah prem.
ReplyDeleteआपकी टिप्पणी पढ़ कर हौसला मिलता है। आप निरंतर मेरे ब्लॉग को अनुकरण करते हैं, इसके लिए मैं आपका आभारी हूँ।
Delete"पीकर रहता हूँ, तेरे ही ख़यालों में"
ReplyDeleteइस रचना पर आपका ध्यान आया इसके लिए आभार राकेश जीमैं आपका आभारी हूँ।
ReplyDeleteजब से छोड़ गई हो, अकेले इस जग में,
ReplyDeleteउलझे हुए हैं, बेवजह के सवालों में
बेहद हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन
वाह!!!
उत्साहवर्धन के लिए आभार सुधा जी।
Deleteबहुत दिनों बाद आपकी रचना पढ़कर अच्छा लगा सर।
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखे हैं।
श्वेता बहन आभार।
Deleteख्यालोंं में आने के लिये पीना जरूरी ना करें।
ReplyDeleteख्याल रखूँगा महोदय, आभार।
Deleteबहुत सुन्दर और हृदयस्पर्शी सृजन ।
ReplyDeleteमीना जी आभार!
Deleteजब से छोड़ गई हो, अकेले इस जग में,
ReplyDeleteउलझे हुए हैं, बेवजह के सवालों में
बहुत सुंदर मनभावन रचना राकेश जी | आपके ब्लॉग पर आपके लेखन से हलचल हुई , बहुत अच्छा लग रहा है |सस्नेह शुभकामनायें |
आभार रेणु बहन।
ReplyDeleteआभार ओंकार जी।
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