नारी के हालात नहीं बदले,
हालात अभी, जैसे थे पहले,
द्रौपदी अहिल्या या हो सीता,
इन सब की चीत्कार तू सुन ले।
राम-कृष्ण अब ना आने वाले,
अपनी रक्षा अब खुद तू कर ले,
सतयुग, त्रेता, द्वापर युग बीता,
कलयुग में अपना रूप बदल ले।
लक्ष्य कठिन है, फिर भी तू चुन ले,
मंजिल अपनी अब तू तय कर ले,
अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ,
अपना जीवन तू जी भर जी ले।
जो भी हैं अबला कहने वाले,
हक़ यूँ नहीं तुम्हें देने वाले,
उनसे क्या आशा रखना जिसने,
मुँह से छीन ली तेरे निवाले।
बेड़ियाँ हैं अब टूटने वाली,
मुक्ति-मार्ग सभी तेरे हवाले,
लक्ष्मी, इंदरा, कल्पना जैसी,
दम लगा कर हुंकार तू भर ले।
हालात अभी, जैसे थे पहले,
द्रौपदी अहिल्या या हो सीता,
इन सब की चीत्कार तू सुन ले।
राम-कृष्ण अब ना आने वाले,
अपनी रक्षा अब खुद तू कर ले,
सतयुग, त्रेता, द्वापर युग बीता,
कलयुग में अपना रूप बदल ले।
लक्ष्य कठिन है, फिर भी तू चुन ले,
मंजिल अपनी अब तू तय कर ले,
अपनी दृढ़ इच्छा शक्ति के साथ,
अपना जीवन तू जी भर जी ले।
जो भी हैं अबला कहने वाले,
हक़ यूँ नहीं तुम्हें देने वाले,
उनसे क्या आशा रखना जिसने,
मुँह से छीन ली तेरे निवाले।
बेड़ियाँ हैं अब टूटने वाली,
मुक्ति-मार्ग सभी तेरे हवाले,
लक्ष्मी, इंदरा, कल्पना जैसी,
दम लगा कर हुंकार तू भर ले।
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
सुन्दर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय सुशील जी .
Deleteलाज़बाब!!!
ReplyDeleteधन्यवाद विश्वमोहन जी.
Deleteराम-कृष्ण अब ना आने वाले,
ReplyDeleteअपनी रक्षा अब खुद तू कर ले,
सतयुग, त्रेता, द्वापर युग बीता,
कलयुग में अपनी रूप बदल ले।
व्यग्यात्मक रचना
बधाई आदरणीय
सादर
शुक्रिया रवीन्द्र जी.
Deleteबहुत ही लाजवाब... प्रेरक रचना...
ReplyDeleteवाह!!!
सुधा जी आभार.
Deleteराम-कृष्ण अब ना आने वाले,
ReplyDeleteअपनी रक्षा अब खुद तू कर ले,
सतयुग, त्रेता, द्वापर युग बीता,
कलयुग में अपना रूप बदल ले।
बहुत ही प्यारी ओज भरी रचना आदरणीय राकेश जी |
सचमुच आजकी नारी अपने उसी रूप को पाने की ओर अग्रसर है |सादर , सस्नेह शुभकामनायें |
शुक्रिया अनुराधा जी.
ReplyDeleteरेणु जी, आपकी टिप्पणी इस कविता को अपनी मुकाम पर पहुँचाता है. आभार .
ReplyDeleteराम-कृष्ण अब ना आने वाले,
ReplyDeleteअपनी रक्षा अब खुद तू कर ले,
सतयुग, त्रेता, द्वापर युग बीता,
कलयुग में अपना रूप बदल ले।
लाजबाब रचना आदरणीय 👌
प्रणाम
आभार अनीता जी.
Deleteअद्भुत सर ,ओज से परिपूर्ण रचना ,और सत्य भी ,नारी अपनी दुखो का कारण स्वयं हैं और उसका निवारण भी उसे ही करना होगा ,कोई और हाथ बढ़ायेगा तो वो फिर से लाचारी ही होगी ,सादर नमस्कार
ReplyDeleteशुक्रिया कामिनी जी,
Deleteवाहह्हह.. अप्रतिम..बेहद सुंदर सहज ओजपूर्ण अभिव्यक्ति राकेश जी..👌
ReplyDeleteआभार श्वेता जी.
Deleteबहुत सुन्दर और सारगर्भित रचना ...
ReplyDeleteधन्यवाद श्रीमान जी.
DeleteWow such great and effective guide
ReplyDeleteThank you so much for sharing this.
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