वक़्त तो गुजरने के लिए होता है,
वक़्त ही ख़ुशी-गम का सबब होता है.
वक़्त एक सा होता है इस शहर में,
उसी पल मातम कहीं जश्न होता है.
अपने आप पर गुरुर ना कर ऐ दोस्त,
एक वक़्त, राजा भी यहाँ रोता है.
मुक़द्दर देगा तेरे दर पर दस्तक,
वक़्त है कर्म का और तू सोता है.
वक़्त खुद ही रंग दिखाएगा इक दिन,
तू सब्र कर, होने दे जो होता है.
वक़्त आ गया है जब बीज बोने का,
तू सुनहरे मौके को क्यूँ खोता है.
वक़्त की जो कद्र नहीं करते "राही",
वो अपनी किस्मत पर सदा रोता है.
वक़्त ही ख़ुशी-गम का सबब होता है.
वक़्त एक सा होता है इस शहर में,
उसी पल मातम कहीं जश्न होता है.
अपने आप पर गुरुर ना कर ऐ दोस्त,
एक वक़्त, राजा भी यहाँ रोता है.
मुक़द्दर देगा तेरे दर पर दस्तक,
वक़्त है कर्म का और तू सोता है.
वक़्त खुद ही रंग दिखाएगा इक दिन,
तू सब्र कर, होने दे जो होता है.
वक़्त आ गया है जब बीज बोने का,
तू सुनहरे मौके को क्यूँ खोता है.
वक़्त की जो कद्र नहीं करते "राही",
वो अपनी किस्मत पर सदा रोता है.
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
वाह कर्म का सुनहरा पैगाम लिये सार्थक रचना ।
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