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Friday, August 24, 2018

आंनदपुर साहिब की यात्रा - भाग 1


विरासत-ऐ-खालसा की यात्रा  



मेरी श्रीमती जी, माँ नैना देवी मंदिर के दर्शन कर भाव-विभोर थी। नैना देवी पहाड़ी पर चढ़ने से आसान उतरना था क्योंकि चढ़ाई चढ़ने वालों की संख्या लगभग नगण्य थी। हमलोग अपने लक्ष्य की तरफ अग्रसर थे। हमलोग करीब शाम को 3:45 बजे आनंदपुर साहिब शहर में प्रवेश कर गए परन्तु विरासत-ऐ-खालसा पहुँचते पहुंचते शाम के चार बज गए। विरासत-ऐ-खालसा के मुख्य  द्वार पर चार बजे  तक ही प्रवेश के नोटिस को पढ़ कर, हम निराश हो गए, तभी वहाँ खड़े एक गार्ड ने हमें अंदर जाने का इशारा किया तो बच्चों के  चेहरे पर मुस्कान फ़ैल गई और वो चिल्ला पड़े चलो। हमलोगों की कार तेजी से अंदर प्रवेश की और जल्दी से उतर कर टिकट काउंटर से प्रवेश टिकट लिया जो निशुल्क था फिर हमलोग विरासत-ऐ-खालसा इमारत की तरफ बढ़ लिए। वहाँ खड़े गार्ड प्रवेश का रास्ता बता रहे थे। अंदर प्रवेश करते ही एक ख़ूबसूरत घुमावदार झील दिखा। खुले वातावरण में हरे-भरे मैदान के किनारे उस झील में विरासत-ऐ-खालसा की इमारत की प्रतिबिम्ब झील की सुन्दरता में चार-चाँद लगा रही थी और उसके ऊपर एक पुल हमलोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ था जो झील के एक तरफ से विरासत-ऐ-खालसा की ईमारत से जुडी हुई थी। हमलोग उस पुलनुमा गैलरी में आगे बढ़ने लगे।  यह पुल 540 फीट लंबा है।
विरासत-ऐ-खालसा के इमारत को जब हम झील की तरफ से देखेंगे तो इसको हम दो भागों में बाँट सकते है इसका पश्चिमी हिस्सा में , एक पुस्तकालय है जिसका  एक भाग संगीत को समर्पित है एवं  400 सीटों का एक सभागार है और पूर्वी हिस्सा सिख इतिहास, धर्म और संस्कृति को पेश करने वाली स्थायी प्रदर्शनी दीर्घा है, जिसके अवलोकन का विस्तृत विवरण निम्न प्रकार है।  

1.     “द बोट बिल्डिंग” : सामान्य सुरक्षा जाँच के बाद हम पञ्च-पानी नामक  दीर्घा में प्रवेश किए . यह एक नाव के आकार की इमारत “द बोट बिल्डिंग” है जो पंजाब के संस्कृति, विरासत, जलवायु, मौसम और त्योहारों को समर्पित है. इस अँधेरे दीर्घा में प्रवेश कर आगे बढ़े तो अचानक नदियों की कल-कल करती आवाजचिड़ियों की चहचहाहट और मध्यम नीली रौशनी के साथ एक विशाल 360 डिग्री के भित्ति चित्र फलक हमलोगों के सामने था। मनमोहक विशाल दीवार जिसका ओर-छोड़ पता नहीं चल रहा था. उस पर रंग-बिरंगी चलायमान चित्र पंजाब की विरासत एवं भगौलिक स्थिति को बयाँ करने में पुर्णतः सक्षम थी। इस भवन की छत कांच से बनी है और नीचे गहरा कुआं जिसका तल पानी से भरा हुआ है। दीवारों को बहुआयामी चित्रित कटआउट के साथ पंजाब के संस्कृति, जलवायु, मौसम, और त्योहारों को प्रदर्शित किया गया है। दृश्य, ध्वनि और प्रकाश के साथ-साथ जसबीर जस्सी की आवाज का प्रभाव शानदार है। सूर्योदय के साथ दिन की शुरुआत से, पंजाबी प्रेम कहानियों, पंजाबी त्योहारों, अनुष्ठानों, व्यावसायिक कार्यों, स्वर्ण मंदिर, और सूर्यास्त के साथ समाप्त होने वाला यहाँ का माहौल आपको मंत्रमुग्ध करने में सक्षम है। ओरिजीत सेन और लगभग 400 कलाकार ने मिलकर इसके अंदरूनी हिस्सों को साढ़े तीन साल में सजाकर तैयार किया  जिनमें चित्रकला, मूर्तियां शामिल है। इस दीर्घा के दर्शन के बाद शेष दीर्घाओं के लिए, आगंतुकों को ऑटो-ट्रिगर ऑडियो गाइड दिया जाता है, जो अंग्रेजी, हिंदी और पंजाबी भाषा में उपलब्ध हैं। 'ऑटो-ट्रिगर' का तात्पर्य है कि जब आप किसी भी गैलरी में जाते हैं तो ऑडियो गाइड स्वतः उस क्षेत्र के बारे में बताता है।
2.     “द ट्रायंगल बिल्डिंग” :  “द बोट बिल्डिंग” के मंत्रमुग्ध वातावरण से निकल कर इस दीर्घा में प्रवेश करना अपने-आप में अनोखा अनुभव था आप अपने-आप को पंजाब के 15 वीं शताब्दी के इतिहास में पाते हैं. यहाँ लोदी शासन, जातिवाद और अंधविश्वास लोगों का सजीव चित्र प्रदर्शित किया गया है।
3.     “द ड्रम बिल्डिंग” : पंजाब के 15 वीं शताब्दी से निकल कर, एक-ओंकार की विचार-विमर्शकारी अवधारणा के वातावरण में एक क्रिस्टल ग्लोब पर गुरुमुखी लिपि में लिखी नारंगी रंग का एक-ओंकार को हमलोग अपना सर ऊपर उठाकर अपलक देख रहे थे। फाइबर ऑप्टिक रोशनी के माध्यम से एवं उच्च तकनीक प्रदर्शन के द्वारा ऐसा लगता है जैसे सिख धर्म के मूल सिद्धांत एक ओंकार अंतरिक्ष में स्थापित है।
4.     5. 6. 7. 8. इसके बाद पूर्वोत्तर इमारत को पाँच  पंखुड़ियों के रूप में आकार दी गई है वो पंज पियारा का प्रतिनिधित्व करते हैं। इन पाँच पंखुड़ियों में क्रमशः श्री गुरु नानक देव जी का प्रारंभिक जीवन, करतारपुर में श्री गुरु नानक देव जी की जीवन, गुरु अंगद देव जी और गुरु अमर दास जी का जीवन, गुरु रामदास जी का जीवन एवं  गुरु अर्जुन देव जी का जीवन का सजीव चित्रण किया गया है
इस दीर्घा से निकलने पर गुरु अर्जुन जी की शहादत को खुले छत पर एक मूर्ति तत्ती-तवा में सिख गुरुओं को ज़िन्दा जलाए जाने को प्रतीकात्मक रूप में चित्रित किया गया है, जिसको देख कर आँखें स्वतः नम हो जाती है।

इसके बाद छः दीर्घा है, जिसका विवरण निम्नलिखित है :

 9.“द ट्रायंगल बिल्डिंग” :   - यह दीर्घा गुरु अर्जुन देव की शहादत को दर्शाता है।
          ग्रैंड स्टेर केस :    - यह दीर्घा में गुरु के मिरी-पिरी (लौकिक-अलौकिक) की शक्ति  के स्थापना को दर्शाता है।
10. “क्रेसन्ट बिल्डिंग –1” : - यह दीर्घा गुरु हरगोबिंद जी, गुरु हर राय जी और गुरु हरकृष्ण जी के जीवनी एवं उनके द्वारा किए गए सामाजिक सुधार और मानवीय कार्यों को दर्शाता है।
11. “क्रेसन्ट बिल्डिंग –2” : - यह दीर्घा गुरु तेग बहादुर जी त्याग और गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवनी को दर्शाता है।
12. “क्रेसन्ट बिल्डिंग –3”: - यह दीर्घा खालसा पंथ के निर्माण से जुड़े  गुरु गोबिंद सिंह जी के जीवन को समर्पित है। यहाँ एक छोटा सभागार है, जहाँ आप खालसा पंथ के निर्माण पर दिव्य दत्ता एवं कबीर बेदी द्वारा वर्णित एक छोटी सी फ़िल्म देख सकते हैं।
13. “क्रेसन्ट बिल्डिंग -4”: - इस दीर्घा में खालसा पंथ निर्माण के बाद की घटना क्रम को बड़ी खूबसूरती के साथ प्रदर्शित किया गया है। जिसमे सबसे पहले उतरते हुए, रंग-बिरंगी रौशनी एवं विभिन्न लिपि में आप गुरु ग्रंथ साहब के छोटे-छोटे अंश पढ़ सकते हैं। उसके बाद यहाँ 18 वीं शताब्दी की शुरुआत से वर्तमान समय तक के सिख समुदाय का विकास, सामाजिक-राजनीतिक और धार्मिक गतिविधियों का पता चलता है। सिख मिसल (1716-1799), महाराजा रणजीत सिंह के दरबार और सिखों का ब्रिटिश के प्रति विरोध का जीवंत मुर्तिया स्थापित है, जिन्हें देख कर दर्शक स्वतः कलाकार की तारीफ़ करते नहीं थकते और अपलक उसे निहारते आगे बढ़ते हैं। शहीद भगत सिंह, करतर सिंह साराभा, मास्टर तारा सिंह और अन्य राजनीतिक और धार्मिक सिख नेताओं को भी यहाँ जगह मिली हुई  है ।  

ऐसे तो मैंने बहुत सी जीवंत मूर्तियाँ देखी हैं परन्तु मास्टर तारा सिंह जी को एक एनिमेटेड रोबोट के माध्यम से पलकों को झपकाते, हाथों और चेहरे को घुमाते हुए उनके भाषण को जीवंतता प्रदर्शित करती अमर कृति को देख कर मैं दंग रह गया।

विरासत-ऐ-खालसा, आम लोगों के लिए शाम को 6 बजे बंद हो जाता है। हमलोग भागते हुए सभी दीर्घा का अवलोकन कर शाम को 6 बजे बाहर आ गए। बाहर आकर हमलोग वहीँ के कैंटीन से स्नैक्स और आइसक्रीम खा कर गुरुद्वारा केशगढ़ साहेब के दर्शन के लिए निकल पड़े। 

नोट : विरासत-ऐ-खालसा के अवलोकन के लिए कम से कम चार घंटा चाहिए। 

उपरोक्त विरासत-ऐ-खालसा के इमारत को समझने के लिए एक लेबल किया हुआ तथा अन्य तस्वीर आप भी देखें। 











©  राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

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