माँ नैना देवी मंदिर की यात्रा
अभी तक आपने भाखड़ा-नंगल बहुउद्देश्यीय बाँध यात्रा के बारे में पढ़ा, अब आगे.......
मेरी श्रीमती जी को ऐतिहासिक धरोहर के दर्शन करने में कोई ज्यादा दिलचस्पी नहीं हैं। चूँकि मैंने पहले ही उनको समझा दिया था कि भाखड़ा-नंगल बाँध, माँ नैना देवी मंदिर जाने के रास्ते में पड़ता है और वहाँ ज्यादा समय भी नहीं लगा, इसलिए यात्रा बिना किसी विवाद के गोबिंद सागर झील के सौंदर्य को निहारते हुए आराम से कट रही थी।
भाखड़ा-डैम से माता नैना देवी जी के मंदिर की दूरी 23.6 कि.मी. थी। भाखड़ा-डैम से माता नैना देवी जी के लिए रोप-वे का प्रवेश द्वार 19.5 कि.मी.पर है और यहाँ से कुछ ही दूरी पर माँ नैना देवी की चढ़ाई का प्रवेश द्वार है। पहले यहाँ से 1.25 कि.मी. की चढ़ाई पैदल, पालकी या अन्य साधन से तय की जाती थी परन्तु अब वाहन सीधे ऊपर तक पहुँच जाती है। उसके बाद लगभग 300 मी. की चढ़ाई पैदल, पालकी या अन्य साधन से तय की जाती है।
सुबह 11 बजे भाखड़ा-डैम से माता नैना देवी जी की यात्रा के लिए निकल पड़े। सुबह 11:30 बजे हमलोग रोप-वे के पास पहुँच गए। थोड़ी दुविधा थी कि हमलोगों की कार नैना देवी की पहाड़ी पर चढ़ पाएगी की नहीं। बच्चे रोप-वे से जाना चाहते थे और मेरा भाई अपना ड्राइविंग कौशल दिखाना चाहता था। अंत में वही होता है जिसके कब्जे में कार की स्टीयरिंग होती है और कार पहाड़ों पर चढ़ने लगी। चंद मिनटों में हमलोग माँ नैना देवी की चढ़ाई के प्रवेश द्वार पर पहुँच गए। परन्तु ये क्या ? वहाँ कारों की कतार प्रवेश के लिए उलटी दिशा से लगी हुई थी क्योंकि प्रवेश के लिए यहाँ पर U टर्न लेना पड़ता है और ऊपर के कण्ट्रोल रूम से आदेश मिलने पर ही ट्रैफिक पुलिस के आदेश पर सिमित संख्या में वाहनों को ऊपर जाने दिया जाता है । हमारी भी कार प्रवेश के इंतज़ार में खड़ी हो गई। अभी तक सब सही चल रहा था परन्तु चिंता थी तो आंनदपुर साहिब पहुँचने की। एक घंटे के इंतज़ार के बाद हमें प्रवेश के लिए हरी झंडी मिली। तो अब पहाड़ की चढ़ाई का इम्तिहान शुरू हो गया । एक तो खड़ी और घुमावदार चढ़ाई , उस पर से ऊपर से उतरने वाले स्थानीय व्यावसायिक ड्राइवरों का आतंक। सोने पर सुहागा ये कि सामने से आ रही पी.डब्लू.डी. की कार्यरत बुलडोज़र का ड्राइवर, मेरे भाई की ड्राइविंग कौशल की जाँच के लिए उसे पहाड़ के एक खोह में घुसने को कह रहा था जिससे उसकी गाड़ी नीचे की तरफ जा सके। बड़ी मुश्किल से कार को आगे-पीछे कर के उस खोह में गाडी खड़ी हो पाई जिससे बुलडोज़र निकल पाया। परन्तु ये क्या ? बुलडोजर के निकलते ही पीछे की सभी गाड़ियाँ ऊपर को जाने लगी। जब सब गाड़ी निकल गई तब हमारी गाड़ी निकल पाई। ऐसा इम्तिहान कई बार हुआ। 1. 25 कि.मी. का सफर ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा था। अन्तोगत्वा जब हमारी कार नैना देवी के पार्किंग में करीब दोपहर 12:50 बजे खड़ी हुई तब साँस में साँस आई। मंदिर जाने का मार्ग साफ़-सुथरा था। सड़क के दोनों तरफ दुकाने सजी हुई थी। जल्द ही हमलोग मंदिर के प्रांगण में दाखिल हुए। वहाँ से चारों तरफ कतार में खड़े श्रद्धालु ही दिख रहे थे। पूछने पर कतार के प्रारंभिक छोर का पता चला और हमलोग भी उस कतार का हिस्सा बन गए। दस कदम बढ़ने पर कतार भीड़ में बदल गई। बाई तरफ खाई एवं दाई तरफ दीवार के बिच फंसे श्रद्धालु अपने आप को संतुलित करने में असमर्थ महसूस कर रहे थे। हालांकि पच्चीस कदम बढ़ने के बाद दोनों तरफ रेलिंग की वजह से भीड़ सुरक्षित कतार में बदल गई और सुविधाजनक ढंग से माँ नैना देवी का दर्शन कर करीब दोपहर को दो बजे हमलोग नीचे आ गए। दोपहर का खाना खा कर लगभग तीन बजे हमलोग आंनदपुर साहिब के यात्रा को रवाना हो गए।
आंनदपुर साहिब की यात्रा - भाग 1-विरासत-ऐ-खालसा को पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
यह मंजर 3 अगस्त 2008 की दुर्घटना को याद दिलाने में सक्षम है, परन्तु न तो प्रशासन को फ़िक्र है न श्रधालुओं को सब्र।
माता श्री नैना देवी जी का इतिहास और पुराण
श्री नैना देवी मंदिर 1177 मीटर की ऊंचाई पर जिला बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश मे स्थित है | कई पौराणिक कहानियां मंदिर की स्थापना के साथ जुडी हुई हैं |
एक पौराणिक कथा के अनुसार, देवी सती ने खुद को यज्ञ में जिंदा जला दिया, जिससे भगवान शिव व्यथित हो गए |और उन्होंने सती के शव को कंधे पर उठा कर तांडव नृत्य शुरू कर दिया |जिससे स्वर्ग में सभी देवता भयभीत हो गए कि भगवान शिव का यह रूप प्रलय ला सकता है तो सबों ने भगवान विष्णु से यह आग्रह किया कि वे अपने चक्र से सती के शरीर को 51 टुकड़ों में काट दें | श्री नैना देवी मंदिर वह जगह है जहां सती की आंखें गिरी थीं।
विशेष अन्य जानकारी मंदिर न्यास की आधिकारिक वेब-साइट http://www.srinainadevi.com/ पर जा कर प्राप्त कर सकते हैं।
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© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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