अभी तक आपने भाखड़ा-नंगल बहुउद्देश्यीय बाँध यात्रा, माँ नैना देवी मंदिर की यात्रा और आंनदपुर साहिब की यात्रा - भाग 1-विरासत-ऐ-खालसा के बारे में पढ़ा, अब आगे.......
विरासत-ऐ-खालसा का अवलोकन कर हमलोग बहुत थक गए थे। थकान की हालत में हमलोग कुछ मिनटों में गुरुद्वारा केसगढ़ साहेब के पार्किंग स्थल पर कार पार्क कर गुरुद्वारा दर्शन के लिए निकल पड़े। जब हमलोग तख़्त श्री केसगढ़ साहिब गुरुद्वारा में प्रवेश कर ही रहे थे तो ऐसा लगा मानो मन और शरीर में नई ऊर्जा आ गई। थकान कहाँ गायब हो गई पता ही नहीं चला। मैंने महसूस किया है कि जिस स्थान पर किसी महापुरुष ने साधना की हो उस स्थान पर उनकी फैज़ बरसती है। अतः ऐसे स्थानों पर जितना समय आप बिता सकें उतना समय वहां अवश्य शांत-चित्त हो कर बैठना चाहिए। इससे मानसिक शांति एवं रूहानियत फायदा अवश्य मिलता है। खैर ! इस विषय पर फिर कभी चर्चा होगी। सिख धर्म में सभी गुरुद्वारों का महत्त्व एक समान है परन्तु वास्तु-शिल्प एवं सुन्दरता के मामले में , स्वर्ण मंदिर, अमृतसर का स्थान सबसे ऊपर है और रूहानियत के अनुसार मैं श्री बेर साहिब गुरुद्वारा, सुलतानपुर लोधी।
तख़्त श्री केसगढ़ साहिब गुरुद्वारा, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा स्थापित खालसा पंथ का जन्म स्थली है। सन् 1699 में वैसाखी वाले दिन, उनके द्वारा यहीं पर पंज प्यारे को अमृत छका कर उन्हें सिंह की उपाधि दी और उन्हीं पाँचों प्यारों के हाथ अमृत छक कर गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह कहलाए। यहीं पर उन्होंने घोषणा कि आज से सभी सिख पुरुष "सिंह" और औरतें "कौर"- (यह संस्कृत शब्द 'कंवर' का व्युत्पन्न है।) कहलाएंगी। यहीं पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने पांच ककार भी धारण करने को कहा, जो इस प्रकार हैं – कंघा - बालों की नियमित सफाई के लिए , कड़ा- सुरक्षा का प्रतीक ( हिम्मत प्रदान करता है और भय दूर करता है), कच्छहरा (कच्छा)- सेवा और लड़ाई के समय असुविधा रहित पहनावा, किरपान (कृपाण)- आत्म रक्षा हेतु शस्त्र, केस (बाल)- अकाल पुरख द्वारा दिया गया देन। यहीं पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा के रहन-सहन पर भी नियम बनाए।
यहीं से खालसा सिख और नानक-पंथी सिख दोनों साथ-साथ चले। आगे चल कर जो अमृतधारी थे वे खालसा सिख और जो अमृतधारी नहीं थे वे सहजधारी सिख कहलाते हैं।
यह बहुमंजली गुरुद्वारा अपने-आप में बेमिशाल है। यहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा प्रयोग किए गए शस्त्र रखें गए जिसमें विशेष है खंडा- दो धार वाली तलवार जिसके द्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा पवित्र अमृत तैयार किया गया था। गुरुद्वारा के पश्चिम में एक 80 मीटर वर्ग का सरोवर है।
तख़्त श्री केसगढ़ साहिब गुरुद्वारा, गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा स्थापित खालसा पंथ का जन्म स्थली है। सन् 1699 में वैसाखी वाले दिन, उनके द्वारा यहीं पर पंज प्यारे को अमृत छका कर उन्हें सिंह की उपाधि दी और उन्हीं पाँचों प्यारों के हाथ अमृत छक कर गुरु गोबिंद राय से गुरु गोबिंद सिंह कहलाए। यहीं पर उन्होंने घोषणा कि आज से सभी सिख पुरुष "सिंह" और औरतें "कौर"- (यह संस्कृत शब्द 'कंवर' का व्युत्पन्न है।) कहलाएंगी। यहीं पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने पांच ककार भी धारण करने को कहा, जो इस प्रकार हैं – कंघा - बालों की नियमित सफाई के लिए , कड़ा- सुरक्षा का प्रतीक ( हिम्मत प्रदान करता है और भय दूर करता है), कच्छहरा (कच्छा)- सेवा और लड़ाई के समय असुविधा रहित पहनावा, किरपान (कृपाण)- आत्म रक्षा हेतु शस्त्र, केस (बाल)- अकाल पुरख द्वारा दिया गया देन। यहीं पर गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा के रहन-सहन पर भी नियम बनाए।
यहीं से खालसा सिख और नानक-पंथी सिख दोनों साथ-साथ चले। आगे चल कर जो अमृतधारी थे वे खालसा सिख और जो अमृतधारी नहीं थे वे सहजधारी सिख कहलाते हैं।
यह बहुमंजली गुरुद्वारा अपने-आप में बेमिशाल है। यहाँ गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा प्रयोग किए गए शस्त्र रखें गए जिसमें विशेष है खंडा- दो धार वाली तलवार जिसके द्वारा गुरु गोबिंद सिंह जी द्वारा पवित्र अमृत तैयार किया गया था। गुरुद्वारा के पश्चिम में एक 80 मीटर वर्ग का सरोवर है।
© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"