आप ने बहुत से किलों का अवलोकन किया होगा परन्तु किला गोबिंद गढ़ , अमृतसर को "वर्चुअल रियलिटी थीम पार्क" में तबदील कर दिया गया है और इसको देखना अपने-आप में सुखद और दुःखद दोनों ही प्रकार की स्थितियों का एहसास होना आपके नज़रिए पर निर्भर करता है। अगर आप पुरातत्व-प्रेमी हैं तो यहाँ आकर आपको निराशा ही हाथ लगेगी और अगर आप खुले विचारों के हैं तो यह किला आपके दर्शन के लिए उपयुक्त है । यहाँ, पुरातन किले के दर्शन के साथ-साथ आपके मनोरंजन का पूरा ख़्याल रखा गया है और इसका मुख्य श्रेय जाता है, पंजाब हेरीटेज एंड टूरिज्म प्रोमोशन बोर्ड एवं रजत-पट की अभिनेत्री दीपा शाही की कंपनी "मायानगरी" को, जो अपने लक्ष्य को हासिल करने में शत-प्रतिशत कामयाब हुए परन्तु इनका यह प्रयोग इतिहास प्रेमियों को शायद ही पसंद आए। बाजारीकरण की होड़ में कहीं न कहीं राष्ट्रीय धरोहर की अवहेलना हुई है। मेरे अनुसार, पंजाब हेरीटेज एंड टूरिज्म प्रोमोशन बोर्ड ने अपनी धरोहर एवं विरासत को प्रदर्शित करने के लिए 1. हेरिटेज वाक 2. विरासत-ए-खालसा 3. फ़तेह बुर्ज़ 4. जंग-ऐ-आज़ादी यादगार भवन 5. महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली: रामतीरथ मंदिर, अमृतसर आदि परियोजनाओं पर बहुत बेहतरीन कार्य किया है, परन्तु एतिहासिक धरोहर के साथ ऐसा प्रयोग उचित नहीं है।
खैर ! आज के आधुनिक विचार-धारा के अनुरूप बने इस किले की साज-सज्जा का आनंद आप यहाँ आकर ले सकते हैं, इसके लिए आपको प्रवेश शुल्क न्यूनतम 30 रु. अदा करना पड़ेगा और अधिकतम 590 रु. ।
12 दिसंबर 2016 को, पंजाब सरकार ने, 142 एकड़ में फैले इस ऐतिहासिक किला गोबिंद गढ़ का लोकार्पण किया था। यहाँ पर अल्ट्रा मॉर्डन टेक्नोलॉजी वाले शो, लाइव शो एवं हॉट-बाज़ार आपको मन्त्र-मुग्ध करते हैं, जिसका विवरण निम्न लिखित है :
1. शेर-ए-पंजाब
लगभग 14.5 मिनट का महाराजा रणजीत सिंह पर एक 7 डी शो - जो आपको 19वीं शताब्दी में ले जाता है। इसका निर्देशन अंतरराष्ट्रीय स्तर के प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक श्री केतन मेहता ने किया है।
2. कंडा बोलियाँ ने - गोबिंदगढ़ की कहानी पर एक शो
सूर्यास्त के बाद पंजाबी और अंग्रेजी भाषा में 30 मिनट के दो शो, 100 फीट x 50 फीट के एक दीवार पर लेजर रोशनी, कंप्यूटर एनीमेशन और प्रोजेक्शन मैपिंग टेक्नोलॉजीज, 20,000 लुमेन प्रोजेक्टर और 7.1 सराउंड साउंड के साथ एक मल्टी-मीडिया प्रकाश एवं ध्वनि के माध्यम से , गोबिंदगढ़ किले की कहानी को बयां किया जाता है जिसे आप किले के ऐतिहासिक खुले लॉन में बैठ कर आनंद लेते हैं ।
3. द स्प्रिट ऑफ़ पंजाब : ए लाइव शो
परंपरागत परिधानों में संगीतकारों और नर्तकियों के मनोरंजक नृत्य एवं अविश्वसनीय मार्शल आर्ट्स फॉर्म "गतका" का लाइव प्रदर्शन भरपूर मनोरंजन करता है।
4. हाट-बाज़ार:
फुलकारी, जूतियां, विरासत शिल्प के टुकड़े, पुराने ज़रदोज़ी काम की खरीदारी के साथ-साथ आप लज़ीज़ खाने का स्वाद भी आप यहाँ ले सकते हैं।
इसके अलावा झूले और ऊंट की सवारी का भी आनंद आप ले सकते हैं।
आइए आपको वहाँ की कुछ झलकियाँ तस्वीरों के माध्यम से दिखाता हूँ :
अंत में किला गोबिंद गढ़ , अमृतसर का संक्षिप्त इतिहास: श्री हरमंदिर साहिब व अमृतसर शहर की,मुसलमानों के बाहरी व भीतरी हमलों से सुरक्षा के लिए भंगी रियासत के प्रमुख गुज्जर सिंह ने इस किले की नींव 18वीं शताब्दी में रखी थी। 1805 में महाराजा रणजीत सिंह ने पाँच बड़ी तोपों के साथ के साथ इस किले पर कब्जा कर लिया। 1805 से 1809 के बीच महाराजा रणजीत सिंह ने इस किले को और मजबूत किया और सिखों के दसवें गुरु "गुरु गोबिंद सिंह" के नाम पर इस किले का नाम "गोबिंद गढ़" रखा। गोबिंदगढ़ किले का निर्माण ईंटों और चूने से किया गया है एवं इसका आकर चौकोर है। इसकी प्राचीर पर 25 तोप लगी हुई हैं। इसके मुख्य प्रवेश द्वार का नाम नलवा गेट है जो हरि सिंह नलवा के नाम पर है। पीछे तरफ का प्रवेश द्वार का नाम "खूनी द्वार" है और यहाँ से लाहौर के लिए एक भूमिगत सुरंग थी । मशहूर हीरा "कोहिनूर" को यहीं पर रखा गया था।
पंजाब पर अंग्रेजों का राज हो जाने पर 1849 में यह किला भी उनके पास चला गया। किवदंती के अनुसार जरनल डायर का निवास स्थान यहीं था जिसका कोई पुख्ता सबूत इतिहास के पन्नों में नहीं मिलता है। आजादी के बाद यह किला भारतीय सेना के कब्जे में रहा। छावनी क्षेत्र में होने के कारण आम जनता की नजर में यह कभी आया ही नहीं।
अक्टूबर 1948 से 5 अक्टूबर 2008 तक किले पर आर्मी का कब्जा रहा। इस दौरान 26 इंडियन आर्मी यूनिट यहां पर रही। 6 अक्टूबर 2008 को आर्मी ने इस किले को पंजाब सरकार को सुपुर्द कर दिया था।
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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