गिरगिट
पहचान कर भी, मुझसे वे अनजान बनते हैं,मतलब निकल पड़े तो, मुझे भाईजान कहते हैं,
जानता हूँ इस तरह के लोगों को बहुत ख़ूब
रंग बदलने ये गिरगिट को भी शर्मसार करते हैं।
जो माँ-बाप की इज्जत करना, नहीं थे जानते,
ख़ुद बुजुर्ग हुए तो, बेटों को भेजते हैं लानतें,
ऐसे ही लोगों से परेशान हैं, हमारा ये समाज
रंग बदलने में गिरगिट को गुरु, हैं ये मानते।
विश्वास करके जिसने, इनको इज्जत सौंप दी,
उसकी आबरू लूट कर सड़कों पर छोड़ दी,
ऐसे ही लोगों के कारण बदनाम है पुरुष
रंग बदलने में इन्होंने गिरगिट को भी मात दी।
सभी गलत काम करते हैं वो चुपचाप से,
इमानदारी का पाठ ये पढ़ाते हैं शान से,
ऐसे ही लोगों के कारण ये देश शर्मसार है
रंग बदलते हैं गिरगिट की तरह बड़े आराम से।
सफ़ेद कपड़े पहन कर सफ़ेद झूठ बोलते हैं ये,
धर्म और जाति के नाम पर देश को बाँटते हैं ये,
ये अगर सही हों तो देश में अमन-चैन हो
रंग बदलने में गिरगिट के रिश्तेदार लगते हैं ये।
आओ ऐसे लोगों को उनको हम औकात दिखाएँ,
करें ये कितना भी जतन इनके झांसे में ना आएं,
कर्मठ और ईमानदार उम्मीदवार का हम करें चुनाव,
रंग बदले जो गिरगिट जैसा, उनको हम सबक सिखाएं।
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"