बादल का टुकड़ा
तुम ने मुझे
अपना आसमां माना,
तुम ने मेरे सभी आदेशों को माना,
तुम्हारी
सभी मांगे थी छोटी-छोटी
उन मांगों
को मगर मैंने कहाँ माना।
ना तुम्हें
चाँद पाने की चाहत थी,
ना तुम्हें
सितारों की ख्वाहिश थी,
तुमने माँगा
मेरे दिल का एक कोना
मेरे लिए तुम
अनबुझ पहेली थी।
अथक करती थी
तुम मेहनत,
गिरती जा रही
थी तेरी सेहत,
मगर मैं खुदगर्ज
ऐसा था
पूरी की बस
अपनी ही चाहत।
सुकून की
ज़िंदगी मेरी, तेरे ही दम पर है,
इस घर की
हंसी-ख़ुशी, तेरे ही दम पर है,
ये इज़हार करने
में जीवन की साँझ हो गई
मेरी खता को
माफ़ करना ये भी तुम पर है।
दुःख सह कर
रिश्तों को तुमने था पकड़ा,
तुमने ना
सुनाया अपना कोई भी दुखड़ा,
तेरी दुनियां
का आसमां था मैं
ना दे सका
तुमको बादल का एक टुकड़ा।
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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