(पृष्ठभूमि :- स्त्री-पुरुष परस्पर पति-पत्नी के संबंध में जीवन के बहुमूल्य समय व्यतीत करते है, पत्नी अपनी पुराने सभी संबंधो को भुलाकर नए संबंधो को आत्मसात करने में शेष जीवन गुजार देती है | विडंबना यह है कि उसके जीवन के अंतिम समय में केवल उसका पति ही उसके होने या खोने का अर्थ जान पाता है | )
मेरे अंधेरे जीवन में,
तुम हो सूरज की पहली किरण।
तुम हो सूरज की पहली किरण।
जब भी गमों ने घेरा है,
तुम ही लाई हो ख़ुशी के क्षण।
मैं भटका हूँ पथ से कभी ,
तुमने दिखाया है मुझको दर्पण।
जब भी माँगा साथ तुम्हारा,
सदा दिया है मुझको समर्थन।
मेरे जीवन में खुशियों की खातिर,
तुमने किया है जीवन अर्पण।
अब तुम नहीं हो नश्वर जगत में ,
कैसे आओगी खुश करने मेरा मन।
मैं तो कठोर अभिमानी था,
तेरा मर्म न जान सका,
मुझको तुम तो माफ ही करना,
मैं तो हूँ अब तेरी शरण।
-राकेश कुमार श्रीवास्तव
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