साच पास - (भाग - 2)
अभी तक आपने पढ़ा कि कैसे मैंने साच पास जाने का प्रोग्राम बनाया। चमेरा लेक और भलेई मंदिर का भ्रमण कर पूर्व निर्धारित स्थल एप्पल माउंटेन विला होमस्टे (बघाई गढ़) में रात बिताई।अब गतांग से आगे ...
होटल लेक व्यू और एप्पल माउंटेन विला होमस्टे (बघाई गढ़) के मालिक श्री अशोक बकाड़िया जी ने टाटा सूमो से सच पास जाने का व्यवस्था कर रखा था। अतः सुबह हमलोग आराम से तैयार हो रहे थे, तभी केयर-टेकर ने आ कर बताया कि टाटा सूमो वाला किसी कारण से नहीं आ रहा है। मैंने श्री अशोक बकाड़िया जी से इस संदर्भ में बात की, तो उन्होंने दूसरी गाड़ी का इंतज़ाम किया और हमलोगों ने जब गाड़ी के ड्राईवर से बात की तो उसने कहा की आपलोग नक्रोड़ क़स्बा पहुँचे, मैं वहीँ मिलूँगा। हमलोग सुबह नौ बजे अपनी गाड़ी से नक्रोड़ लिए निकल पड़े। पहाड़ो से नीचे उतरने का अपना अलग अनुभव था। रस्ते में टीले पर बैठा एक गुर्जर और थोड़ी ही दूर पर उसका परिवार दूध बेच रहा था। यह गुर्जर परिवार प्रकृति के साथ इस तरह मिले लग रहे थे मानों प्रकृति इनके बिना अधूरी है। ऐसा नज़ारा देखकर हमलोगों ने गाड़ी को रोका और उनकी अनुमति ले कर उनके साथ अपनी तस्वीरें ली।गुर्जर उत्कृष्ट जनजातीय ड्रेसिंग शैली के लिए जाने जाते हैं और पुरुषों और महिलाओं दोनों के मामले में उनकी ड्रेसिंग की शैली विशिष्ट पैटर्न की होती है। गुर्जर पुरुषों द्वारा अनोखे अंदाज में पहने जाने वाला रंग-बिरंगी पगड़ी जिसे अफ़गानी टोपी भी कहा जाता है बहुत आकर्षक होता है। गुर्जर महिलाओं द्वारा पहने जाने वाला दुपट्टा जी एक रंग-बिरंगी शाल की तरह दिखता है। ये गूजर आदिवासी महिलाएं गहनों की बहुत शौकीन होती हैं। इसका प्रमाण तब मिला जब हमलोग वहाँ से चलने लगे तो उन्होंने पैसे नहीं माँगे वरन वे मेरी पत्नी की हाथ में पहनी हुई लाख की चूड़ियाँ माँग ली और मेरी पत्नी ने ख़ुशी-ख़ुशी उन्हें दे भी दिया। हमलोग टेढ़े-मेढ़े सर्पीले पहाड़ी रास्तों से होते हुए प्रकृति का आनंद ले रहे थे। कल रात जिस रास्ते पर चलना भयावह लग रहा था वही रास्ता आनंद दे रहा था।
हमलोग जब नक्रोड़ क़स्बा पहुँचे तो वहाँ सच पास ले जाने के लिए ड्राइवर इंतज़ार कर रहा था और हमलोग अपनी कार वहीँ पर पार्क कर एस यू वी गाड़ी में सवार हो गए। हमलोगों ने रास्ते में रुककर नाश्ता किया और अपनी मंजिल की तरफ लिकल पड़े।हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले में सच दर्रा (जिसे साच दर्रा भी कहा जाता है) एक उच्च ऊंचाई वाला दर्रा है। 4,420 मीटर की ऊंचाई पर, यह चंबा घाटी को पांगी घाटी से जोड़ता है। हिमपात के बाद दर्रा हर साल जून के अंत में नागरिकों के लिए खोला जाता है और मध्य अक्टूबर तक इस रास्ते को बंद कर दिया जाता है।बैरागढ़ तक की सड़कें टूटी-फूटी परन्तु वाहनों के चलने के हिसाब से ठीक-ठाक है, परन्तु इसके बाद का रास्ता उत्तरोत्तर कठिन होता जाता है। बैरागढ़ के रास्ते में एक रोमांचक दृश्य देखने को मिला। एक पानी का झरना पहाड़ से ऐसे गिर रहा था कि मानो पानी का गुफा हो और वहाँ की सड़क उसका प्रवेश का मार्ग हो। ड्राइवर ने कुछ देर के लिए अपनी गाड़ी वहीँ खड़ी कर दी जिससे मुफ्त में गाड़ी की धुलाई हो गई। अभी हमलोग बैरागढ़ से जंगल के रास्ते आगे बढ़े ही थे कि हमलोगों का सामना रास्ते पर पड़े बहुत बड़े चट्टान के टुकड़े से पड़ा। दूर से देखने से ऐसा प्रतीत होता था कि आगे का रास्ता बंद है। हम लोग निराशा के साथ नीचे उतर कर चट्टान के पास गए, तब ड्राइवर ने अंदाजा लगाकर कहा कि कोशिश करते है शायद गाड़ी निकल जाए। बहुत मशक्कत के बाद ड्राईवर ने गाड़ी का एक पहिया चट्टान के किनारों पर चढ़ कर अवरोध को पार कराया। हमलोग अपने पहले पड़ाव सतरुंडी चेक पोस्ट की तरफ कच्चे और सर्पीले रास्तों पर आगे बढ़ रहे थे। रास्तों में अनेको छोटे झरने दिखे उसके बाद लगातार तीन बड़े झड़ने दिखे जो बहुत मनमोहक थे। झड़नों की कोलाहल करती जलधारा हमलोगों को उनके साथ अठखेलियाँ करने का निमंत्रण दे रही थी, प्रकृति के इस आग्रह को हमलोग ठुकरा नहीं सके और जमकर जलधारा के साथ मस्ती की।
जब हमलोग सतरुंडी चेक पोस्ट पर पहुँचे, तो वहाँ आइआरबी के जवानों ने गाड़ी की तालाशी लेकर हमलोगों का पंजीयन किया। उसके बाद हमलोगों का वीडियो रिकॉर्डिंग कर के आगे जाने की अनुमति दी। मीलों सुनसान पहाड़ी पथरीले रास्ते भयावह लग रहे थे। हरियाली और जीवों का नामों-निशान नहीं था। हमलोगों को कुछ दूर पर सतरुंडी हैलीपैड नज़र आया और यहीं पर हमें गिद्धराज के भी दर्शन हुए। इसके बाद कालाबन का वह क्षेत्र दिखा जहाँ 3 अगस्त 1998 को मिंजर मेले के दौरान कालाबन और सतरुंडी गांवों में आतंकियों ने 35 लोगों को मार गिराया था जबकि 11 अन्य लोग जख्मी हुए थे। उन्हीं की याद में बनी समाधि को देखकर आँखें नम हो गईं। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि ऐसी कौन सी वजह है, जिससे इतने दुर्गम स्थल पर नरसंहार किया गया और जिसके फलस्वरूप गुर्जरों और गद्दी जनजातियों के बीच संघर्ष हुआ।
खैर! भारी मन से हमलोग सर्पीले एवं पथरीले दुर्गम रास्तों से गुजर रहे थे कि प्रकृति ने अपना अचानक रौद्र रूप दिखाया और मुसलाधार बारिश शुरू हो गई जिसके कारण रास्तों में कीचड़ भर गया और गाड़ी की रफ़्तार पहले 10 कि.मी. प्रति घंटा था, वह फिसलन के कारण मात्र 5 कि.मी. प्रति घंटा हो गया फिर भी गाड़ी का पहिया फिसल रहा था। रास्ते के एक तरफ ऊँचा पहाड़ और दूसरी तरफ हजारों फ़ीट गहरी खाई को देख कलेजा मुँह को आ रहा था। किसी तरह हमलोग साच पास के उच्चतम चोटी पर पहुँचे। बर्फीली हवा में हो रही बारिश के कारण वहाँ रुकना असंभव हो रहा था। हमलोगों ने वहाँ चंद तस्वीरें ली और वापस उसी दुर्गम रास्ते से सतरुंडी चेक पोस्ट पर आ कर चाय-नाश्ता कर वापस लौटे। यहाँ पर एक बात आपलोगों से शेयर करना है कि आम तौर पर टूरिस्ट प्लेस के ड्राइवर अपने गंतव्य स्थान के पहले ही बहाना बनाने लगते है कि आगे का रास्ता खराब है या निर्धारित जगह यही है, परन्तु साच पास जाने वाले ड्राइवर ने कठिन परिस्थिति में भी हमलोगों को हँसी-ख़ुशी से सच-पास का दर्शन करवाया।
अब हमलोगों का निर्धारित प्रोग्राम में बदलाव करना था। हमलोग अब किसी भी हालत में होटल लेक व्यू और एप्पल माउंटेन विला होमस्टे (बघाई गढ़) नहीं रुकना चाहते थे और अन्य कोई जगह ठहरने का ठिकाना पता नहीं था। जब हमलोगों ने अपनी परेशानी ड्राईवर को बताई, तब उसने तिस्सा में आर. के. होटल के बारे में बताया। उसने कहा कि पहले वहाँ खाना खा लें और होटल का कमरा भी देख लीजियेगा। पसंद आए तो वहीँ रात्रि विश्राम कीजियेगा। उसने खाने के लिए फोन पर ही आर्डर दे दिया। हमलोग करीब सात बजे रात में होटल पहुँचे। गरमा-गर्म खाना तैयार था। हमलोगों ने खाना खाया और होटल के कमरों को देखा। एक फॅमिली रूम पसंद आया जिसमें एक कमरा और एक बहुत बड़ा लॉबी थी जिसमें डबल बेड एवं डाइनिंग टेबल लगा था। आज रात को अपनी पत्नी की बर्थ डे मनाने के लिए यह कमरा उपयुक्त लगा। सभी सदस्यों को सामान सहित कमरे में टिका कर ड्राइवर के साथ अपनी कार एवं बर्थडे केक और अन्य पार्टी के सामान के लिए निकल पड़े। बेकरी से केक एवं खाने-पीने का सामान लेकर अपनी कार से करीब नौ बजे रात को तिस्सा के होटल पहुँचे।पार्टी धूम-धाम से मनाई गई और देर रात को हमलोग सोने गए।
अंत में एक सेव का पेड़ और एक झड़ने के दृश्यों का आनंद लें :अगले दिन सुबह भी होटल के बरामदे से पहाड़ों का नज़ारा मन को असीम शान्ति प्रदान करने वाला था। हमलोग सुबह तैयार होकर अपने घर के लिए निकल पड़े । करीब 11 बजे हमलोग चमेरा लेक के पास होटल व्यू लेक पहुँचे। होटल के मालिक श्री अशोक बकाड़िया जी ने हमलोगों का स्वागत बड़े गर्मजोशी के साथ किया। दोपहर का लंच कर पुनः अपनी यात्रा शुरू की और करीब 10 बजे रात को अपने घर पहुँचे।
-------समाप्त--------- ✍️© राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'
खूबसूरत चित्र सुन्दर वर्णन।
ReplyDeleteशुक्रिया जोशी जी।
Deleteबहुत ही रोचक ...कहीं कहीं दिल दहलाने वाले दृश्य.पंद्रह वर्ष पूर्व हम भी चेरापूँजी गए थे ठीक ऐसे ही रास्ते थे एक तरफ़ खाई एक तरफ़ पहाड़ी पल पल दिल दहलने वाले हदसे ...
ReplyDeleteसादर
शुक्रिया अनीता बहन।
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteशुक्रिया ओंकार जी।
Deleteबहुत सुंदर और रोचक यात्रावृतांत,पहाड़ियाँ के ये खतरनाक रास्ते कभी कभी डराते भी हैं,सादर नमन आपको
ReplyDeleteशुक्रिया कामिनी बहन।
Deleteशुक्रिया नवीन जी।
ReplyDeleteGreat post!
ReplyDeleteThis is such a helpful post
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