प्रतीक एवं साक्षी लम्बे समय से लिव-इन-रिलेशनशिप में रह रहे थे, परंतु विगत कुछ दिनों से इन दोनों में अनबन चल रही थी। बात इतनी बिगड़ गई कि दोनों ने अलग रहने का फैसला किया। उनके बीच की समस्या ऐसी नहीं थी कि पैचअप न हो सके, परंतु दोनों का अहंकार आड़े आ रहा था। दोनों एक-दूसरे से अलग होने के फैसले से दुखी भी थे, परंतु इस बात को एक-दूसरे को कहने में झिझक रहे थे। दोनों ने अलग रहने के लिए अपना-अपना आशियाना भी ढूंढ लिया और शिफ्ट होने के लिए अपने-अपने सामान पैक करने लगे। उन्हें व्यक्तिगत सामानों को पैक करने में कोई दिक्कत नहीं आई, परंतु साझा सामानों को समेटने में दोनों को संकोच हो रहा था। फिर भी उन्होंने बैठ कर आपसी समझौते से साझे सामान का बँटवारा कर लिया।
दो दिन के बाद वे दोनों शिफ्ट होने वाले थे, तभी शहर में कोरोना महामारी के कारण लॉकडाउन हो गया। उन दोनों को विश्वास था कि चौदह दिन के बाद लॉकडाउन खुल जाएगा। अतः दोनों अपने-अपने पैकिंग को खोले बिना किसी तरह गुज़ारा करने लगे। न चाहते हुए भी वे एक-दूसरे का सामान साझा करने लगे। साक्षी के पाक-कला कौशल को देख कर प्रतीक हैरान था, तो वहीँ प्रतीक का घरेलू कार्यों में सहयोग के लिए साक्षी चाह कर भी आभार व्यक्त नहीं कर पा रही थी। दोनों एक-दूसरे के भावनाओं को सम्मान दे रहे थे। आर्थिक एवं शारीरिक आकर्षण के लिए वे एक दूसरे के करीब आए थे और कभी विवाह के बंधन में बंधने के बारे में सोच रहे थे, परन्तु समयाभाव के कारण वे एक-दूसरे को वक़्त नहीं दे पा रहे थे। जिसके कारण उनका आपसी ताल-मेल बिगड़ने लगा था। ऐसे भी स्वार्थ पर टिके रिश्तों का हश्र ऐसा ही होता है।
अब उन दोनों के पास एक-दूसरे के साथ बिताने के लिए वक्त ही वक्त था। वे एक-दूसरे को अब अच्छी तरह से समझ रहे थे और उनदोनों के बीच आत्मिक सम्बन्ध मजबूत हो रहे थे। एक दिन प्रतीक ने कहा, “साक्षी मुझे आज यह स्वीकार करने में ज़रा भी संकोच नहीं है कि पहले मैं तुमसे प्यार नहीं करता था और अब मैं तुम्हारे बिना जी नहीं सकता। क्या हमलोग अपने एक-दूसरे से अलग होने के निर्णय पर पुनः विचार नहीं कर सकते हैं?”
साक्षी ने कहा, “इस लॉकडाउन में मुझे भी तुम्हें समझने का मौका मिला और जो तुम्हारे दिल का हाल है, वैसा ही हाल मेरे दिल का है।”
इतना कहने-सुनने के बाद वे एक दूसरे से आलिंगनबद्ध हो गए। कोरोना के लॉकडाउन का चौथा चरण चल रहा है और इन दोनों के प्रेम का वायरस उनके आत्मा तक को प्रभावित करने लगा है।
© राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'
© राकेश कुमार श्रीवास्तव 'राही'
लॉकडाउन के अच्छे बुरे दोनों परिणाम सामने आने लगे हैं। कहानी यथार्थ को दर्शाती है।
ReplyDeleteशुक्रिया मीना बहन।
Deleteपरिस्थितियों के अनुरूप इंसान का व्यवहार बहुत सारे भ्रम मिटा देती है।।
ReplyDeleteसकारात्मक कहानी सर।
शुक्रिया श्वेता बहन।
Deleteसही मायने में तो कहानी का शीर्षक होना चाहिए
ReplyDelete'वेड लॉक डाउन' !
शुक्रिया विश्वमोहन जी।
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(३०-०५-२०२०) को 'आँचल की खुशबू' (चर्चा अंक-३७१७) पर भी होगी
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का
महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
**
अनीता सैनी
आभार अनीता बहन।
Deleteलिंक की जाँच करें।
Deleteसकारात्मकता से परिपूर्ण कथा हेतु बधाई 🙏💐
ReplyDeleteआभार वर्षा बहन।
ReplyDeleteलॉकडाउन का उजला रूप पेश करती सकारात्मकता से भरपूर कहानी ।
ReplyDeleteआभार मीना बहन।
Deleteबात सिर्फ अहसासों की होती है ,अहसास हो जाये तो बात बन जाये ,ये अवसर कोरोना की वजह से उन्हें मिल गया ,अच्छी लघु कथा ,अंत भला तो सब भला ।
ReplyDeleteआभार ज्योति जी।
Deleteलॉकडाउन कुछ के दिल टूटे तो कुछ के जुड़े
ReplyDeleteजितनी जल्दी समझ आ जाय उतना ही अच्छा,
अंत भला तो सब भला
बहुत अच्छी सकारात्मक प्रस्तुति
शुक्रिया कविता बहन।
ReplyDeleteबहत भावपूर्ण कथा राकेश जी | आज पढ़ पाई जिसके लिए बहुत खेद है | लिव इन का परिणाम यदि जीवन भर का साथ हो तो इससे बेहतर कुछ नहीं | सुखद अंत आहलादित कर गया | सस्नेह शुभकामनाएं और बधाई |
ReplyDeleteआभार रेणु बहन।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteशुक्रिया ओंकार जी।
Deleteबहुत खूब आदरणीय
ReplyDeleteप्रथम टिप्पणी के लिए शुक्रिया दिव्या जोशी जी।
ReplyDeleteVery Nice , I am happy by reading this..
ReplyDeleteCurrent GK
For the 1st day of Locdown to till now, many have lost everything.
ReplyDelete