भाप इंजन से बुलेट ट्रेन तक का भारतीय रेल का सफ़र ( भाग- 2 )
पिछले भाग में आप मेरे साथ भारत में भाप इंजन से बुलेट ट्रेन तक के सफ़र पर थे । जिसमें रेलगाड़ी को गति के नज़रिये से तीन घटकों में बाँट कर मैं आपको समझा रहा था। आप अबतक इसके दो घटकों से परिचित हो चुके है जिसमें - पहला घटक था रेल-पथ एवं दूसरा घटक था इंजन। अब आपको तीसरे घटक से परिचय करा दें।
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तो, तीसरा घटक है बोगी एवं कोच : सन् 1955 के पहले लकड़ी के कोच बनते थे । उसके बाद तीन तरह के बोगी एवं कोच भारत में इस्तेमाल होते हैं, जिसमें सबसे पुराना है स्विस डिजाईन से निर्मित आई.सी.एफ. टाइप कोच एवं बोगी, जिसकी अधिकतम गति सीमा 130 कि.मी./घंटा है। यह परंपरागत यात्री कोच हैं, जो कि भारत में अधिकांशतः मुख्य लाइन ट्रेनों पर इस्तेमाल होते हैं। कोच एवं बोगी का डिजाइन 1950 के दशक में स्विस कार एंड एलेवेटर मैन्युफैक्चरिंग कंपनी, स्लिएरेन, स्विटजरलैंड के सहयोग से इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, पेरामबूर, चेन्नई, भा रत द्वारा विकसित किया गया था। स्विस कंपनी के स्थान के आधार पर इस डिजाइन को स्लिएरेन डिजाइन भी कहा जाता है। अब इस परंपरागत यात्री कोच के युग का अंत जल्द ही होने वाला है।
सवारी रेलगाड़ी के गति में बढ़ोतरी के लिए सन् 1990 के अंत में संयुक्त राष्ट्र संघ के सहायता कार्यक्रम के तत्वावधान में यूरोफिमा डिजाइन स्विट्जरलैंड पर आधारित आईआरवाई कोच एवं आईआर 20 बोगी का निर्माण रेल डिब्बा कारखाना, कपूरथला में किया गया, जिसकी अधिकतम गति सीमा 140 कि.मी./घंटे की थी। इसके बाद सन् 1995 से लिंकई हॉफमैन बुश (एलएचबी) एवं फ़िएट द्वारा विकसित कोच एवं बोगी का निर्माण रेल डिब्बा कारखाना, कपूरथला में किया जाता है । इन डिब्बों को 160 कि.मी./घंटा तक की ऑपरेटिंग गति के लिए डिज़ाइन किया गया है और इसकी गति 200 कि.मी./घंटा तक जा सकती है।
गति पर आधारित मुख्यतः भारत में चार प्रकार की ट्रेन चल रही हैं, पैसेंजर ट्रेन लगभग 40-80 कि.मी./घंटा की गति से चलती हैं। सुपर फास्ट एक्सप्रेस और मेल ट्रेन 100-110 कि.मी./घंटा तक की गति से चलती हैं। राजधानी और शताब्दी एक्सप्रेस जो क्रमशः सन् 1969 एवं सन् 1988 में नई दिल्ली को भारत की राज्य की राजधानियों से जोड़ने के लिए शुरू की गई थी, इसकी गति सीमा 130 कि.मी./घंटा है। जब हम गति की बात करते हैं, तो बुलेट ट्रेन की चर्चा होती है और जब आप मेट्टुपालयम(कोयंबटूर) - उदगमंडलम (ऊटी) यात्रा मेट्टुपालयम(कोयंबटूर) - उदगमंडलम पैसेंजर ट्रैन से 10 कि.मी./घंटा की औसत गति से यात्रा करेंगे तो आप उस अविस्मरणीय एवं सुखद पल को भूल नहीं पाएंगे। अतः हम कह सकते हैं कि तकनीकी विकास के साथ-साथ भारतीय रेल अपनी विरासत को भी बखूबी संभाले हुए है।
अगर आप रेलवे की शाही सवारी कर भारत को करीब से जानना चाहते हैं, तो आप के लिए हैं, भारत की सबसे शानदार ट्रेन : पैलेस ऑन व्हील्स, महाराजा एक्सप्रेस, गोल्डन चॅरियट, डेक्कन ओडिसी, रॉयल राजस्थान ऑन व्हील्स, महापरिनिर्वाण एक्सप्रेस, भारत दर्शन एवं स्टीम एक्सप्रेस और अगर आप भारत के मशहूर पहाड़ी स्टेशनों जैसे दार्जिलिंग, शिमला, ऊटी और माथेरान आदि का रेल द्वारा दर्शन करना चाहते हैं तो भारतीय रेल का नैरो गेज की 4500 किलोमीटर लंबा ट्रैक आपके स्वागत में टॉय ट्रेनों के साथ हाज़िर है।
सब-अर्बन ट्रेनों के लिए डीएमयू, डीएचएमयू, ईएमयू एवं एमईएमयू चलाई जाती है, जिसकी अधिकतम गति सीमा 80 किमी/घंटा होती है। अक्टूबर 1994 में पहली डीएमयू ट्रेन का निर्माण आई.सी.एफ., मद्रास में हुआ। पहली डीसी ईएमयू ट्रेन ने 3 फरवरी 1925 को मुंबई से कुर्ला तक का सफ़र तय किया। सन् 1957 में रेलवे ने विद्युतीकरण के लिए 25 केवी, 50 चक्र एकल फ़ेज एसी सिस्टम को अपनाने का निर्णय लिया। इसके बाद एसी ईएमयू ट्रेन का चलन प्रारंभ हुआ और साठ दशक के अंत में भारत हैवी इलेक्ट्रिकल लिमिटेड ने स्वदेशी ईएमयू ट्रेन बनाना शुरू कर दिया। ईएमयू ट्रेन की गति बढाने के लिए आई.सी.एफ. ने एमईएमयू ट्रेन का निर्माण सन् 1994 में किया।
कोलकाता, दिल्ली एवं मुंबई महानगरों में सड़क परिवहन के ऊपर बढ़ते दबाव को कम करने के लिए विभिन्न तरह की ट्रेन चलाई गई । 24 अक्टूबर 1984 में कोलकाता मेट्रो ट्रेन चली जिसकी अधिकतम गति 55 किमी/घंटा है एवं 24 दिसंबर 2002 को दिल्ली मेट्रो ट्रेन चली जिसकी अधिकतम गति 80 किमी/घंटा है। मुंबई में मोनोरेल ने आंशिक रूप से 2 फरवरी 2014 में व्यावसायिक संचालन शुरू हुआ। अब भारत में मेट्रो ट्रेन छोटे-बड़े शहरों में काम कर रही है या परियोजनाओं को लागू करने का कार्य प्रगति पर है। मेट्रो ट्रेन भारतीय रेल का अंग नहीं है।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारतीय रेलवे, ट्रेनों की गति बढ़ाने के लिए सतत प्रयत्नशील रही है और भारत सरकार के विशेष अनुरोध पर सीमित साधनों में सेमी हाई-स्पीड ट्रेन तेजस का निर्माण कर भारतीयों के आँखों में बुलेट ट्रेन के सपने को पंख लगा दिए। अहमदाबाद, गुजरात और भारत के आर्थिक केंद्र मुंबई, महाराष्ट्र के शहरों को आपस में जोड़ने वाली एक उच्च-गति वाली रेल लाइन मुंबई-अहमदाबाद हाई-स्पीड रेल कॉरिडोर का निर्माण प्रगति पर है। यह भारत की पहली उच्च गति वाली रेल लाइन होगी।
भारत में सबसे तेज 160 कि.मी./घंटा की गति से चलने वाली गतिमान एक्सप्रेस ट्रेन है, जो 5 अप्रैल 2016 को शुरू की गई।
तेजस एक्सप्रेस का उद्घाटन सीएसटी मुंबई से करमीली, गोवा तक 24 मई 2017 को हुआ । इसके डिब्बों एवं बोगी का निर्माण रेल कोच फैक्टरी, कपूरथला में किया जाता है। यह ट्रेन डब्ल्यूडीपी 3 ए इंजन की शक्ति से 130 कि.मी./घंटा की औसत गति से चलती है, लेकिन कुछ हिस्सों पर 180 कि.मी./घंटा की गति को छूने की अनुमति दी गई है।
10,000 कि.मी. की डायमंड चतुर्भुज (दिल्ली-मुंबई, मुंबई-चेन्नई, चे न्नई-कोलकाता और कोलकाता-दिल्ली) और दो विकर्ण (दिल्ली-चेन्नई और मुंबई-कोलकाता) देश के प्रमुख महानगर और विकास केंद्रों को जोड़ने के लिए, उच्च गति रेल कोरिडोर की परियोजना पर भी काम चल रहा है। इस परियोजना का लक्ष्य सन् 2020 में ट्रेन की वर्तमान गति 110-130 कि.मी./घंटा से बढ़ा कर 160-200 कि.मी./घंटा करने के लिए ट्रैक बनाने का है। भारत के कुछ हिस्सों में मौजूदा लाइनों को उन्नत कर 200 कि.मी./घंटा की गति तक के लिए सुसज्जित किया गया है और अन्य बची हुई लाइनों को उन्नत करने का कार्य प्रगति पर है।
अब हमारे कदम उच्च गति वाली बुलेट ट्रेन की तरफ बढ़ गए हैं। उच्च गति वाली रेल लाइन गलियारे का निर्माण कार्यक्रम के अनुसार 14 सितंबर 2017 को शुरू हुआ और पहली बुलेट ट्रेन 320 कि.मी,/घंटा की गति से 15 अगस्त 2022 को अपनी पहली दौड़ के लिए निर्धारित है। मेक इन इंडिया कार्यक्रम का समर्थन करने के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण के साथ, शिंकानसेन ई-5 (बुलेट ट्रैन) तकनीक को सिखाने के लिए, जापान भारतीय रेल कर्मचारियों को प्रशिक्षण प्रदान करेगा। बेशक बुलेट ट्रेन की प्रौद्योगिकी जापान की है परन्तु इसके अधिकांश संसाधन स्वदेशी होंगे।
मेरे इस कथन में कोई अतिश्योक्ति नहीं है कि प्रौद्योगिकी का कोई भी युग हो, ये अपने समय- काल में देश, समाज एवं सभ्यता के विकास का इंजन बनते हैं, चाहे भाप इंजन का युग हो या अब बुलेट युग। अब वो दिन दूर नहीं जब आने वाली भारत की आज़ादी की हीरक जयंती प्रगति के बुलेट पर सवार होगी।
विश्व पटल पर भारतीय रेलवे बहुत पिछड़ा हुआ है, परन्तु जापान ने बुलेट ट्रेन की प्रौद्योगिकी हस्तांतरण कर एक नई आशा जगाई है। हम भारतीय उम्मीद कर सकते हैं कि जापानी तकनीक की सहायता से बुलेट ट्रेन के इतिहास में भारत नए आयाम स्थापित करेगा। जैसे 21 अप्रैल 2015 को जापान की मैग्लेव ट्रेन ने 603 किलोमीटर प्रति घंटा की गति प्राप्त कर विश्व रिकॉर्ड बनाया है, वैसे ही अत्याधुनिक चुंबकीय तकनीक मैग्नेटिक लेविटेशन से चलने वाली इस ट्रेन को सन् 2027 तक भारत में चलाने की योजना है।
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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