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Friday, July 20, 2018

भाप इंजन से बुलेट ट्रेन तक का भारतीय रेल का सफ़र ( भाग- 1 )


भाप इंजन से बुलेट ट्रेन तक का भारतीय रेल का सफ़र ( भाग- 1 )
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रेलगाड़ी भारतीयों के जीवन में इस तरह रची बसी है कि इसके बिना आम आदमी का जीवन मुश्किल है,  इसलिए भारत में रेल को हम जीवन रेखा के नाम से भी जानते है।   'अनेकता में एकताका सबसे बड़ा उदाहरण भारतीय रेल ही है। तो आइए! आपको ले चलते हैं, भारत में भाप इंजन से बुलेट ट्रेन तक के सफ़र पर।   

भारतीय रेल की परिकल्पना सर्वप्रथम लॉर्ड डलहौज़ी ने सन् 1843 में की थी।  सोलानी जलसेतुरुड़की के निर्माण के दौरान,  22 दिसंबर 1851 में भाप इंजन का इस्तेमाल कर भारत में एक नए युग की शुरुआत हुई । परन्तु भारतीय रेलवे का प्रथम भाप इंजन "फ़ॉकलैंड" नामक इंजन थाजिसका उपयोग शंटिंग के लिए किया गया। यह इंजन 18 फरवरी 1852 को मुम्बई आया और  मुम्बई के गवर्नर के नाम पर ही इसे  "फ़ॉकलैंड" का नाम दिया गया था। भारतीय रेल की सार्वजनिक परिवहन की परिकल्पना तब साकार हुई, जब सन् 1853  में आठ (2-4-0 प्रकार के) भाप इंजनों को भारतीय रेल-पथ पर उतारा गया और इन्हीं में से साहबसिंध और सुलतान नामक तीन इंजनों ने शाही अंदाज में 21 तोपों की सलामी लेकर 14 डिब्बों और 400 सवारी को लगभग 40 कि.मी./घंटा  की रफ़्तार से मुम्बई के उपनगर बोरीबंदर से ठाणे तक का सफर 16 अप्रैल 1853 को दोपहर 3:35 बजे पर चल कर 4:32 बजे पूरा किया। भारत में  ब्रॉड गेज का फेयरी क्वीन इंजन (2-2-2डब्लूटीडब्लूटीदुनिया में सबसे पुराने काम कर रहे स्टीम इंजनों में से एक है।
रेलगाड़ी को गति के नज़रिये से देखेंतो इसको तीन घटकों में बाँट कर समझ सकते हैं। 
पहला घटक है रेल-पथ : भारत में  रेल पथ 80 से 200 कि.मी./घंटा तक की गति से गुजरने वाली रेलगाड़ी के लिए सक्षम हैपरन्तु अभी तक 200 कि.मी./घंटा की गति का स्वाद इसने नहीं चखा है। भारतीय रेलवे में रेल-पथ के तीन गेज हैं : नैरो गेजमीटर गेज एवं ब्रॉड गेज और वर्तमान में इन तीनों गेजों पर आप सवारी का आनंद उठा सकते हैं।   
दूसरा घटक है इंजन:  इसके विकास की गतिविधियों पर संक्षिप्त नज़र डालते हैं। 
डब्ल्यूपी क्लास लोकोमोटिव 110 कि.मी./घंटा की गति तक काम करने में सक्षम थे और आसानी से इनके शंकु के आकार की उभरी हुई नाक से पहचाना जा सकता थाजिसके ऊपर एक रजत रंग का तारा सुशोभित था। विवेकानंद” नामक  पहला डब्ल्यूपी इंजन सन् 1947 में संयुक्त राज्य अमेरिका में बाल्डविन लोकोमोटिव वर्क्स से आयात किया गया था। 

सन् 1949 में चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स कोभाप इंजनों का उत्पादन करने के लिए स्थापित किया गया था। देश की आज़ादी के बाद,  ब्रॉड गेज का पैसेंजर भाप इंजन 100 कि.मी./घंटा की गति से चल सकता था और मीटर गेज का भाप इंजन 75 कि.मी./घंटा की गति से ही चल सकता था। अतः इसकी गति सीमा बढाने के लिए डीजल इंजन एवं विद्युत इंजन की आवश्यकता पड़ी। भारतीय रेल ने लगभग सभी भाप इंजन को सन् 1990 तक डीज़ल इंजन में परिवर्तित कर दिया और मीटर गेज के भाप इंजन को अगस्त 1998 में  पूर्णतया बंद कर दिया गया। ब्रॉड गेज के शेर ए पंजाब’ नामक भाप इंजन ने अपनी अंतिम यात्रा 6 दिसम्बर 1995 को तय कर भाप इंजन के युग का अंत किया। चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स ने भाप और डीजल इंजनों का उत्पादन क्रमशः सन् 1973 और सन् 1994 में पूर्णतया बंद कर दिया।  
डीज़ल इंजन डब्लूडीएम-1 स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद अमेरिका से आयात होने वाला पहला डीजल इंजन था। इसकी अधिकतम गति सीमा 110 कि.मी./घंटा और क्षमता 1950 हॉर्स पावर थी। डीजल रेल इंजन कारखानाबनारस की स्थापना अगस्त 1961 में हुई और जनवरी 1964 में डब्लूडीएम-2 का निर्माण कर राष्ट्र को समर्पित किया गया।  इसकी अधिकतम गति सीमा 120 कि.मी./घंटा और क्षमता 2,600 हॉर्स पावर थी। इसके बाद 1995  में डब्लूडीपी-1  का निर्माण किया गयाजिसकी अधिकतम गति सीमा 140 कि.मी./घंटा थी। सन् 2001 में डब्लूडीपी-4   का निर्माण किया गयाजिसकी अधिकतम गति सीमा 160 कि.मी./घंटा और क्षमता 4,000 हॉर्स पावर थी।भारत में विद्युत इंजन के इतिहास में डब्लूएएम-1 महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत में अल्टरनेट करंट (AC) से चलने वाला पहला इंजन था। यह 30 नवंबर 1959 को भारत में लाया गया। सन् 1961 से विद्युत लोको और सन् 1980 में विद्युत यात्री लोको श्रृंखला डब्लूएपी-1  का निर्माण आरडीएसओ के विनिर्देशों पर  चित्तरंजन लोकोमोटिव वर्क्स  द्वारा  शुरू हुआ । डब्लूएपी-1 अधिकतम गति सीमा 130 कि.मी./घंटा और क्षमता 3,800 हॉर्स पावर थी। इस लोको को पहली बार हावड़ा-दिल्ली राजधानी के लिए इस्तेमाल किया गया था। जुलाई 1993 में 3 फ़ेज के तीस इंजन एबीबीस्विट्ज़रलैंड से खरीदने का करार हुआ। नवंबर 1998 में, डब्लूएजी-9  भारत में बनाया जाने वाला सबसे पहला  3-फेज़ एसी इलेक्ट्रिक लोको सीएलडब्ल्यू में निर्मित हुआ था। इसे "नवयुग" नाम दिया गया और नए युग और नई सहस्राब्दी की शुरुआत में सीएलडब्ल्यू ने भारत को डब्लूएपी -5 क्लास के "नवोदित" और "नवजागरण" नामक दो इलेक्ट्रिक इंजन उपहार स्वरुप दिये। डब्ल्यूएपी -7 आरडीएसओ और एडट्रान्ज़ के परामर्श से सीएलडब्ल्यू ने एक हैवी ड्यूटी यात्री इलेक्ट्रिक लोकोमोटिव डिजाइन का विकास किया था और इस प्रोटोटाइप का नाम "नवकिरण" रखा गया था। डब्लूएपी 5 इंजन की अधिकतम गति सीमा 160 कि.मी./घंटा है। तीन फेज लोकोमोटिव का मुख्य पार्ट कर्षण कनवर्टर है, जो एकल फ़ेज को 3 फ़ेज में परिवर्तित करता है। हमलोग अभी जिटियो तकनीक आधारित कनवर्टर का इस्तेमाल करते हैं, जबकि उच्चगति के लिए आईजीबीटी तकनीक आधारित कनवर्टर चाहिए और इसके लिए जिटियो तकनीक आधारित कनवर्टर को आईजीबीटी तकनीक आधारित कनवर्टर में बदलने का कार्य चल रहा है। डब्लूएपी-5 इंजन को आईजीबीटी तकनीक से लैस कर देने से इसकी वर्तमान गति सीमा बढ़कर 200 कि.मी./घंटा तक की हो गई है।

भाप इंजन से बुलेट ट्रेन तक का भारतीय रेल का सफ़र ( भाग- 2 ) पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें। 
  
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"

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