कानों सुनी बातों का असर,
डाले ये, समझने पर असर
जगाता है झूठा अहंकार,
सजाता है नफ़रत का शहर.
आसां नहीं है सत्य का डगर,
तय करता है ये लम्बा सफ़र,
टूटती है उम्मीदें कितनी,
शैतान इससे है बे-असर.
कानों में घोलते हैं जहर,
फैलाते हैं उन्मादी लहर,
बचना तुम ऐसे लोगों से,
नहीं तो जल जाएगा शहर.
भाईचारे पर बुरी नज़र,
जो पड़ जाए कहीं भी अगर,
समझ लेना उनकी चाल को,
उनको मिलकर बेनक़ाब कर.
पा लिया अब ज्ञान का सागर
दिखा दो अभी प्यार का मंज़र,
शैतान अंधे हो जाएँगे,
जब देखेंगे यहाँ का सहर.
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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