त्रिवेणी - यही दस्तूर है जीवन का-1
1.
जो मैंने चाहा ना मिला तो क्या हुआ,
जो तुमने चाहा मिल गया तो क्या हुआ,
नई चाह है अब हम दोनों के पास, यही दस्तूर है जीवन का।
2.
फूल खिलने पर तुम खुश होते हो,
उसके मुरझाने पर तुम रोते हो,
कुछ भी करो बस चलते रहो , यही दस्तूर है जीवन का।
3.
जिसे तुम चाहोगे शायद ना मिले,
बिन माँगे तुमको बहुत कुछ मिला,
चुपचाप कर्म करो अपना, यही दस्तूर है जीवन का।
4.
जब प्राण संकट में पड़ जाते हैं,
भौतिक सम्पदा काम नहीं आती है.
मुक्ति मिलते ही फिर भागते हो, यही दस्तूर है जीवन का।
5.
नैतिकता नहीं है अब तुम में,
फिर भी ढूंढते हो तुम औरों में,
जो बोया है वही काटोगे, यही दस्तूर है जीवन का।
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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