नारी सशक्तिकरण
दरवाज़े के पीछे, तुम ऐसे न ठहर,
तुम लाँघ लो इस बार, चौखट को अपनी
आएगी जीवन में, सुनहरी सी सहर।
बढ़ रहा, कारवाँ, गाँव-गाँव, शहर-शहर,
तुम शामिल हो इसमें, न सोच अगर-मगर,
अगर इस बार भी तुम ना निकली, तो फिर
रहेगी हरदम , नीची तेरी ये नज़र।
चल रही है,कब से, परिवर्तन की लहर-2
चल रही है,कब से, परिवर्तन की लहर-2
पहले तू ,अपने-आप पर विश्वास कर,
अबला बनकर यूँ न जीवन, बर्बाद कर,
नहीं आएगा कोई, तुम को बचाने
तुम खुद ही, अपनी शक्ति का विस्तार कर।
चल रही है,कब से, परिवर्तन की लहर-2
सम्मान से ऊँचा रहे, ये अपना सर,
तो अपने सपनों को दे दो बस, एक पर,
लाख दुश्वारियाँ आ जाए जीवन में,
अपने हौसलों से ही, उनको फ़तह कर।
चल रही है,कब से, परिवर्तन की लहर-2
चल रही है,कब से, परिवर्तन की लहर-2
आपस में हमेशा, यूँ ना तुम, लड़-झगड़,
सबला है तू, यूँ शक्ति का न, विनाश कर,
एकजुट हो, कर, अपना शक्ति प्रदर्शन
और तू अपने दुश्मनों का संहार कर.
चल रही है,कब से, परिवर्तन की लहर-2
हिम्मत दिखा दे अब, खुद को आज़ाद कर,
बाहर निकल, पैर की जंजीर तोड़ कर,
कब तक होगी तेरे सब्र की इम्तिहाँ
अब यूँ ही ना तुम ज़ुल्म को स्वीकार कर.
चल रही है,कब से, परिवर्तन की लहर-2
बहू-बेटी में तू भी, अब ना फर्क कर,
साथ मिलकर तू, मुक्ति-पथ, प्रशस्त कर,
हो कोई लाचार, हो कोई पीड़िता,
एकजुट हो, कर, अपना शक्ति प्रदर्शन
और तू अपने दुश्मनों का संहार कर.
चल रही है,कब से, परिवर्तन की लहर-2
हिम्मत दिखा दे अब, खुद को आज़ाद कर,
बाहर निकल, पैर की जंजीर तोड़ कर,
कब तक होगी तेरे सब्र की इम्तिहाँ
अब यूँ ही ना तुम ज़ुल्म को स्वीकार कर.
चल रही है,कब से, परिवर्तन की लहर-2
बहू-बेटी में तू भी, अब ना फर्क कर,
साथ मिलकर तू, मुक्ति-पथ, प्रशस्त कर,
हो कोई लाचार, हो कोई पीड़िता,
आगे बढ़ कर उसकी, मदद कर, मदद कर।
चल रही है,कब से, परिवर्तन की लहर-2
चल रही है,कब से, परिवर्तन की लहर-2
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
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