मेरी कविता
शब्दों में सब की भावनाओं को, जब मैं ढाल पाता हूँ,
तब मैं अपनी कविता को, कोरे कागज़ पर लिख पाता हूँ.
आपके सुख और दुःख को, जब मैं शिद्दत से महसूस करूँ,
सब की हँसी और आँसू को, जब भी मैं स्वयं महसूस करूँ,
या पल ऐसा हो, जो मेरी अंतरात्मा पर भी चोट करे
तब भावनाओं के रंगों से, मैं कविता की रचना करूँ.
मेरी कविता अश्रु बहाती , जब मैं मज़लूमों को देखूँ ,
मेरी कविता हँसने लगती, जब हँसते बच्चों को देखूँ ,
मैं कविता के प्रत्येक शब्द के साथ जीता व मरता हूँ
मैं कविता तब लिखता हूँ , जब मैं दर्द या ख़ुशी को देखूँ .
प्रकृति की छटा निराली देख, मानव हर्षित हो जाता है,
नील गगन में उड़ते पक्षी और फूल जब खिल जाता है,
मेरी कविता इस अनुभूति से कैसे दूर रह सकती है
कहो कौन है, जो इसे देख, अभिभूत नहीं हो जाता है.
मानव निर्मित कृतियों को देख कर मैं अचंभित होता हूँ,
इसके विनाशकारी कृत्यों को, कहाँ भूल मैं पाता हूँ ,
भूत-वर्तमान में घटित कर्मों के अवलोकन से उपजे
हर्ष-विषाद के इस रंग को अपनी कविता में लिखता हूँ .
मैं ना कहता मेरी कविता समाज को राह दिखाएगी,
मैं नहीं कहता मेरी कविता ज्ञान की ज्योति जलाएगी,
आशा है, जब कभी, आप मेरी कविताओं को पढ़ लेंगे
मेरी कविता की पंक्तियाँ, सोई संवेदना जगाएँगी.
No comments:
Post a Comment
मेरे पोस्ट के प्रति आपकी राय मेरे लिए अनमोल है, टिप्पणी अवश्य करें!- आपका राकेश श्रीवास्तव 'राही'