नहीं होता है किसी का,
प्रत्येक दिन एक समान।
बादल भी ढक लेता है,
सूरज को भी श्रीमान।
बादल की चाह यही है,
ना चमके सूरज जग में,
पर सूरज को तुम देखो,
सदा चमकता है नभ में।
बादल रहता है सफ़ेद,
जब तक सूरज है नभ में,
बादल काला पड़ जाता,
जब भानु चले पश्चिम में।
धरती की प्यास बुझाने
नभ से नीचे आना है,
सूरज की गरमी पाकर
फिर ऊपर उठ जाना है।
अच्छी संगत में रहना
अच्छे फल ही देते हैं,
ये संगी बुरे समय में
सदैव साथ निभाते हैं।
तुम सूरज ना बन पाओ,
तो बादल बन के रहना,
शत्रु न बनना सूरज का
दोस्त बन के ही रहना।
तुम चमको कभी शिखर पर
बाधाएं तो आएँगी,
कर्म न छोड़ना तुम कभी,
बाधाएं हट जाएँगी।
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मेरे पोस्ट के प्रति आपकी राय मेरे लिए अनमोल है, टिप्पणी अवश्य करें!- आपका राकेश श्रीवास्तव 'राही'