ख़िताबत
बस ! मुझे भी तुम इंसान समझो तब तो बात हो,
ख़ुद की ख़िताबतों पर अमल करो तब तो बात हो,
ख़ुद की ख़िताबतों पर अमल करो तब तो बात हो,
फूलों भरी राह हो तो सभी सफ़र आसान हो,
काँटो भरी राह पर सफ़र करो तब तो बात हो ।
मैख़ाने में देख मुझे काफ़िर समझते हैं वे,
यहाँ आकर तुम मुसलमान बनो तब तो बात हो ।
मेरी रोज़ी-रोटी चलती है, ख़ुद को बेच कर,
मुझे ख़रीद, ख़ुदा की बात करो तब तो बात हो ।
मेरी अस्मत लुटती है सरेआम बाज़ार में,
अपने घर में मुझको पनाह दो तब तो बात हो ।
मेरे दर्द को तुम ना समझ पाओगे उम्र भर,
मेरी जगह पर तुम ख़ुद को रखो तब तो बात हो।
ना देख हिक़ारत की नज़रों से मुझे ऐ “राही”
मुझ में बसे ख़ुदा को तुम देखो , तब तो बात हो ।
ख़िताबत = 1. संबोधित करना 2. भाषण देना।
मुसलमान = मुसल्लम ईमान वाला।
मुसलमान = मुसल्लम ईमान वाला।
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मेरे पोस्ट के प्रति आपकी राय मेरे लिए अनमोल है, टिप्पणी अवश्य करें!- आपका राकेश श्रीवास्तव 'राही'