चित्र jagranjunction.com से साभार |
Wednesday, September 28, 2016
Wednesday, September 21, 2016
वाक्यांश- पेशा
वाक्यांश- पेशा
अपने पिता जी के दिवंगत होने के बाद दीनानाथ जी ने सेवानिवृति उपरांत अपने पैतृक गाँव में बसने का निर्णय लिया। खेत-खलिहानों से प्यार उनके रग-रग में बसा था। जब कभी उनको नौकरी से छुट्टी मिलती वे गाँव चले जाते। खेती-बाड़ी में खुलकर तन-मन-धन से अपने पिता जी को सहयोग करते। उनके पिता जी दूरदर्शी थे इस लिए उन्होंने जीते जी जमीन-जायदाद का रजिस्टर्ड बटवारा तीनो बेटों के नाम कर दिया। यह बात उनके मरणोपरांत ही उनके तीनों बेटों को पता चली । तब दीनानाथ जी के सेवानिवृति में अभी दो वर्ष शेष थे। दीनानाथ जी के दोनों भाई ज्यादा पढ़ नहीं पाये इसलिए वे खेती-बाड़ी पर ही आश्रित थे। दोनों भाई सपरिवार खेती-बाड़ी के कार्य में जुटे थे और मज़े में अपना जीवोकोपार्जन कर रहे थे । दोनों भाइयों के घर में ट्रैक्टर, गाय-भैंस, एल ई डी टीवी, फ्रिज़ आदि सभी प्रकार के सुख सुविधायें उपलब्ध थी। शहर के विस्तार होने कारण दीनानाथ जी का गाँव अब शहर के सरहद में आ गया था। मल्टीनेशनल कम्पनियाँ के नए-नए प्रोजेक्ट गाँव के आस-पास लगाने से बिजली, पानी और सडकों की उत्तम व्यवस्था हो गई थी। खैर ! दीनानाथ जी ने दो साल में एक सुंदर मकान बनवाया चूँकि पुश्तैनी मकान में उनके दोनों भाइयों ने कब्ज़ा जमा लिया था और वे सेवानिवृति उपरांत अपनी पत्नी एवं एक मात्र लडके के साथ गाँव में आकर बस गए। उनका लड़का ग्रेजुएशन करके बेरोजगार था और उसकी सरकारी नौकरी के आवेदन करने की उम्र पात्रता भी ख़त्म हो गई थी। दीनानाथ जी ने सोचा चलो ईश्वर कृपा से इतनी उपजाऊ जमीन है। बेटा मेहनत करेगा तो उसकी शादी कर देंगे और उसकी ज़िन्दगी खुशहाल हो जाएगी। इसी सोच के साथ वह सुबह उठे। सुबह बाप-बेटे ने नास्ता किया उसी दौरान दीनानाथ जी ने बेटे से कहा कि आज तुम्हें मेरे साथ खेत पर चलना है। बाप-बेटे दोनों तैयार होकर ट्रैक्टर से खेत की तरफ निकल पड़े।
खेत के विशाल भू-खंड को देख कर सीना चौड़ा कर के दीनानाथ जी ने अपने बेटे से कहा -" देखो ये हमारी विरासत है और इसको आगे चल कर तुम्हे संभालना है इसलिए इसमें तुम रूचि लेना शुरू करो।"
बेटे ने भी ख़ुशी-ख़ुशी हाँ में हाँ मिलाई। उसने चारों तरफ नज़र दौड़ाई, चंद टुकड़े खेत को छोड़ कर सभी तरफ उसे फैक्ट्री, मॉल और नई -नई कॉलोनी के प्लॉट दिखाई दे रहे थे।
दीनानाथ जी ने बेटे से कहा - "खेतों में मैंने धान के बीज डाल दिए थे। कल धान के पौधों को पुरे खेत में लगाना है इसलिए मजदूरों की जरुरत होगी। चलो ! उनकी बस्ती चलते है।"
इतना सुनते ही उनका बेटा ट्रैक्टर से कूद पड़ा और जोर से बोला - "अच्छा पिता जी! आप चाहते हैं कि मैं खेती करूँ परंतु मैं आपको साफ़-साफ़ बता देना चाहता हूँ कि मैं इस खेत की प्लॉटिंग तो कर सकता हूँ परंतु खेती नहीं।"
इतना सुनते ही दीनानाथ जी को लगा जैसे बेटा कह रहा हो कि मैं आपकी सेवा तो नहीं कर सकता अपितु अंतिम संस्कार अवश्य कर सकता हूँ। दीनानाथ जी यह बात सहन नहीं कर पाए और हृदयाघात के कारण वहीं ट्रैक्टर से गिर पड़े।
आज वहाँ पैराडाइज हाऊसिंग सोसाइटी का बोर्ड लगा है और उनका बेटा बिचौलियों के जाल में फंस कर नशे का आदि हो गया। सब कुछ बिक जाने के बाद आज दीनानाथ जी का बेटा पैराडाइज हाऊसिंग सोसाइटी के कांट्रेक्टर के अधीन काम कर रहा है।
वाक्यांश - "शब्द–समूह के लिए एक शब्द"
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
Wednesday, September 14, 2016
वाक्यांश- खुशहाली
चित्र http://www.hotelsinmahabaleshwar.net.in/ से साभार |
वाक्यांश- खुशहाली
मेरे मित्र श्यामचरण जी ने आधी से अधिक उम्र किराये के एक ही मकान में गुजार दी। दो कमरों के उस मकान में अपने बच्चों के साथ उनके यहाँ आने वाले मेहमानों के लिए भी जगह मिल जाती थी। आर्थिक परेशानियों के बावजूद उनके मकान में आने वाले मेहमानों का स्वागत स्वादिष्ट व्यंजनों से होता, यही कारण था कि मेहमान भी स्वाद लोलुपता को त्याग नहीं कर पाते और यात्रा कहीं का भी हो बीच में विश्राम स्थल श्यामचरण जी के घर के लिए बना ही लेते थे। हँसी-ठहाको से उनका मकान सदा गुंजायमान रहता था। अपनी पत्नी की ज़िद के कारण सेवानिवृति उपरांत मिले पैसों से एक मकान बनाकर रहने लगे। अपनी इकलौती बेटी की शादी वे पहले ही कर चुके थे और नौकरी लगते ही बेटों की भी शादी कर दिए और जल्द ही उनके दोनों बेटे अपनी पत्नीयों को ले कर अपने-अपने शहर चले गए। श्यामचरण जी का मकान शहर से दूर होने के कारण मेहमानों का आना-जाना बंद हो गया और बच्चों के नहीं रहने के कारण पाँच कमरों का मकान में सन्नाटा पसरा रहता। इस नई कॉलोनी में बुजुर्गों की संख्या ना के बराबर थी और नई पीढ़ी को बुजुर्गों से बात करने के लिए ना समय था ना ही जरुरत। एक दिन मैं श्यामचरण जी से मिलने उनके घर चला गया तो उनकी पत्नी ने कहा- "श्रीवास्तव भाई साहब क्या बताऊँ यहाँ किसी से बात न करने के कारण मुँह दुखने लगता है जबड़ों में जकड़न सी आ गई है।"
इस वाक़िया के बीते अभी दो महीने भी नहीं हुए थे कि पता चला श्यामचरण जी की पत्नी परलोक सिधार गई। श्यामचरण जी अपने बड़े बेटे के पास गुडगौंव चले गए और यहाँ खाली पड़े मकान में दरारें पड़ने लगी थी।
किसी कार्यवश मुझे गुडगौंव जाने का मौका मिला तो शाम के वक्त उनके बेटे के घर पहुँचा। घर क्या था महल था, दरवाजे पर दरबान को मैंने अपना परिचय दिया तो उसने इण्टरकॉम से बात कर मुझे अंदर जाने दिया। लॉन पार करते ही बरामदे में दिवाकर खड़ा मिला। उसने नमस्ते चाचा जी कह कर गर्म जोशी से स्वागत किया। हमलोग गेस्ट रूम में बैठ कर एक दूसरे का हालचाल पूछ रहे थे तभी मैंने श्यामचरण से मिलने की इच्छा जताई। उसने कहा कि मैं पता करता हूँ।
मैंने पूछा - पता करता हूँ का क्या मतलब है दिवाकर!
दिवाकर ने कहा - "ऐसा है चाचा जी मैं नीचे ऑफिस में काम करता हूँ और मोनिका क्लब गई हुई है और बच्चे स्कूल से सीधा ट्यूशन चले जाते है और वे रात को घर पहुँचते हैं। ऐसे में पिता जी घर में है या लॉन के किसी पेड़ के नीचे बैठे है पता करके बताता हूँ।"
उसने घंटी बजाई और वहाँ एक सुंदर स्त्री उपस्थित हुई। उसने रौबदार आवाज़ में आदेश दिया- "देखो ! पिता जी कहाँ हैं पता करो और उनसे कहो की उनसे कोई मिलने आया है।"
वो चली गई। मैं स्तब्ध था और उस सुंदर स्त्री को जाते देख मैं उलझन में था तभी दिवाकर ने कहा - "ये मेरी परिचारिका है।"
थोड़ी देर में परिचारिका हांफती हुई उपस्थित हुई और बोली पापा जी बंगले के पीछे पेड़ के नीचे बैठे है और कह रहें है कि जिसे भी मिलना हो वो यहाँ पर आये। दिवाकर का चेहरा थोड़ा उतर सा गया और झेपते हुए बोला चाचा जी मैं जाकर बुलाता हूँ।
मैंने कहा - "रहने दो मैं श्याम से वहीं मिल लेता हूँ।"
उसने परिचारिका को इशारे में मुझे श्यामचरण के पास ले जाने को कह कर सामने ऑफिस रूम में चला गया। मैं भी परिचारिका के पीछे-पीछे चल पड़ा। पहले स्टडी रूम, डाइनिंग रूम, किचेन रूम, स्विमिंग पूल और बिलियर्ड रूम के बाद लॉन दिखा। कुछ कदम चलने पर एक पेड़ के नीचे कुर्सी पर श्याम चुपचाप प्रकृति को निहार रहा था। मैंने जैसे ही आवाज दी वह पलट कर देखा और खिल पड़ा। लगभग दौड़ता हुआ आ कर गले लगा और रोते हुए बोला - "श्रीवास्तव! मुद्दतों बाद किसी ने मुझे प्यार से पुकारा है और मुझे किसी की प्राइवेसी में दखल देने की इज़ाज़त नहीं है, इस लिए मैं अक्सर यहीं बैठ जाता हूँ इन बेजुबां पेड़-पौधों और चिड़ियों से बात करने।"
मेरी आँखें भर आई और मैं खो गया उन ठहाकों भरी महफ़िल के शोर में जो अकसर श्याम के घर की खिड़की से सुनाई देती थी जब भी मैं गुजरता था उसके घर के गली से।
वाक्यांश - "शब्द–समूह के लिए एक शब्द"
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"
Subscribe to:
Posts (Atom)