गया बसंत, अब पसीना बहाया जाए,
दो वक्त की रोटी,
अब कमाया जाए।
रहने को घर नहीं,
कहीं बसेरा बनाया जाए,
घने पेड़ की छाँव के
नीचे, चैन से सोया जाए।
नाउम्मीद हूँ मैं,
अब कोई आस जगाया जाए,
उम्मीद के तारों
से, अपना सपना सजाया जाए।
मुफ़लिसी है, कोई
जुगत लगाई जाए,
मेहनत से, अपनी किस्मत चमकाई जाए।
सोचा बहुत अपने
बारे में, अब कुछ ऐसा किया जाए,
दूसरों के लिए भी,
अपना पसीना बहाया जाए।
जी लिए बहुत, अब
दुनिया को अलविदा कहा जाए,
रहे हमसफ़र जिंदगी
में, उनका शुक्रिया अदा किया जाए।
-© राकेश कुमार श्रीवास्तव
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