इन्टरनेट साभार
अवसाद
गुजरे हुए वक्त के साये से, डर लगता है,
तेरे बदले हुए तेवर से, डर लगता है,
तुम किसी और के हो जाओगे , ये मालुम नहीं!
मुझको अपने तकदीर से, डर लगता है।
ग़मों के साये में जीना सीख लिया था मैंने,
फिर से खुशियों का संसार दिखाया था तुमने,
ताउम्र साथ निभाओगे, ये मालुम नहीं!
फिर भी तुझे जीवन-साथी बनाया था मैंने।
तन्हां रहना तो, अपनी थी किस्मत,
खुशियों की महफ़िल मिली, तेरी थी रहमत,
हम-सफर कब तक रहोगे, ये मालुम नहीं!
माना हरेक बात जिससे मैं नहीं थी सहमत।
दिल की बात कहने को बेचैन थी कब से,
मेरे दरके हुए दिल की आवाज सुनोगे, ये आस थी तुम से,
वक्त, मेरे लिए तेरे पास होगा, ये मालुम नहीं!
इंतज़ार की इंतहा हो गई, बिदा लेती हूँ तुम से।
आभासी दुनियाँ को अपना मत मानो,
वास्तविक दुनियाँ को तुम पहचानो,
मेरी बातों को कितना समझोगे, ये मालुम नहीं!
तेरे जीवन का क्या हश्र होगा? ये तुम जानो।
-राकेश कुमार श्रीवास्तव
No comments:
Post a Comment
मेरे पोस्ट के प्रति आपकी राय मेरे लिए अनमोल है, टिप्पणी अवश्य करें!- आपका राकेश श्रीवास्तव 'राही'