82वाँ किला रायपुर खेल मेला 2018
यात्रा पूर्व :
आप माने या ना माने परन्तु सूचना क्रान्ति का लाभ पर्यटक सबसे ज्यादा उठाते हैं. किसी भी अज्ञात स्थान पर जाना हो तो किसी से कुछ भी पता करने की जरूरत नहीं पड़ती, बस गूगल मैप खोला और चल पड़े. पर्यटक को किसी स्थल का भ्रमण करना है तो जाने से पहले ही सम्पूर्ण जानकारी इंटरनेट से हासिल कर पूर्व-नियोजित कार्यक्रम के अनुसार ही किफायत और कम समय में यात्रा संपन्न कर लेते हैं . इस क्रांति का सबसे बड़ा लाभ यह है कि किसी भी पर्यटन स्थल की जितनी जानकारी एक पर्यटक को होती है उतनी जानकारी वहाँ के स्थानीय लोगों को भी नहीं रहती . खैर ! मैंने तो इस बात को इस लिए छेड़ा है क्योंकि मुझे आपको 82 वाँ किला रायपुर खेल मेला 2018 के बारे में विस्तृत जानकारी देनी है. मैं, किला रायपुर, लुधियाना से करीब 82 कि.मी. की दूरी पर विगत 25 वर्षों से रह रहा हूँ और इस किला रायपुर खेल मेला की जानकारी अक्सर इस मेले के समाप्ति पर स्थानीय अखबारों के माध्यम से मिलती थी. किला रायपुर खेल मेला की अखबारों में रिपोर्टिंग पढ़ कर, मैं रोमांचित हो जाता था और अगले साल मैं इस मेले को देखने जरूर जाऊँगा, इस प्रण के साथ अगले साल का इंतज़ार करता. परन्तु जानकारी के अभाव में और अन्य कारणों से वहाँ के खेल का आनंद अभी तक नहीं ले पाया था . यह संयोग मात्र है कि जनवरी’2018 में मैंने, अपने ब्लॉग मित्र के पोस्ट पर किला रायपुर के खेल मेला, जिसे रूरल ओलंपिक भी कहा जाता है, के बारे में पढ़ा. उत्सुकता वश मैंने इसके बारे में इंटरनेट पर तलाश शुरू की तो कोई ख़ास जानकारी हासिल नहीं हो पा रही थी और जब मैंने रूरल ओलंपिक लुधियाना सर्च किया तब जाकर किला रायपुर खेल मेले का आधिकारिक वेब-साईट (www.ruralolympic.net) मिली. इस वेब-साईट के माध्यम से पता चला कि 2, 3 एवं 4 फरवरी 2018 को किला रायपुर में खेल मेला आयोजित किया जाएगा. पूरा विवरण पढ़ने के बाद मैंने निर्णय लिया कि 4 फरवरी 2018 को किला रायपुर जाऊँगा क्योंकि उस दिन रविवार की छुट्टी है और इसी दिन लगभग सभी खेलों का फाइनल मैच खेला जाना है. मैंने अपनी मंशा अपने भाई सुनील को बताई, तो वह भी साथ चलने को सहर्ष तैयार हो गया.
यात्रा प्रारंभ:
हम लोग तय कार्यक्रम के अनुसार 4 फरवरी 2018 को सुबह 10 बजे बुलेट मोटर-साईकल पर सवार होकर किला रायपुर के लिए रवाना हुए. 101 कि.मी. की यात्रा कर करीब दोपहर 12 बजे हम लोग किला रायपुर स्टेडियम पहुँचे. यहाँ इस बात का जिक्र करना जरूरी है कि इस खेल को स्पोर्ट्स ऑथोरिटी ऑफ़ इंडिया, पर्यटन विभाग - भारत सरकार, पंजाब खेल विभाग - पंजाब सरकार, पर्यटन विभाग - पंजाब सरकार एवं लुधियाना प्रशासन से मान्यता प्राप्त और एम आर एफ टायर जैसी कंपनी के प्रायोजक होने के बावजूद लुधियाना से लेकर किला रायपुर तक, इस खेल से सम्बंधित एक भी विज्ञापन नज़र नहीं आया.
82 वाँ किला रायपुर खेल मेला 2018 की रिपोर्टिंग:
खैर! जब हम वहाँ पहुँचे, तो वहाँ का प्राकृतिक नज़ारा अद्भुत था. साफ नीले आकाश में सफ़ेद बादल ऐसे फैले हुए थे मानो कोई चितेरा अपनी कूची को सफ़ेद रंग में डुबो कर नीले कैनवस पर चित्र बनाने के लिए कहीं-कहीं हल्के स्ट्रोक्स का इस्तेमाल किया हो. चालीस हज़ार दर्शक दीर्घा वाले स्टेडियम में रंग-बिरंगी पोशाकों में एक तरफ दर्शक बैठे थे. जाड़े की गुनगुनी धूप के बीच भगवंत मेमोरियल गोल्ड कप हॉकी टूर्नामेंट का फाइनल मैच चल रहा था. मैंने सबसे पहले पूरे स्टेडियम का एक चक्कर लगा कर वहाँ के गतिविधियों का जायजा लिया. लगभग पचास की संख्या में मीडिया के पत्रकार, प्रेस-रिपोर्टर, फोटोग्राफर एवं विडियोग्राफर मैदान के अंदर मौजूद थे. हाथी एवं ऊँट दौड़ का आयोजन होना था इसलिए हाथी एवं ऊँट सज-धज कर अलग-अलग मैदान के दोनों छोर पर आमने-सामने खड़े थे. हॉकी मैच के बीच-बीच में 100, 200, 400 एवं 800 मी. की रेस चल रही थी और उद्घोषक विजेताओं के नाम के साथ-साथ उत्साहित दर्शकों द्वारा खिलाड़ियों के लिए अलग से नगद पुरस्कार की घोषणा भी कर रहे थे. हॉकी मैच टाई होने के बाद, बहुत ही रोमांचकारी ढंग से, पेनाल्टी शूट-आउट के आधार पर विजेता टीम का नाम घोषित किया गया. इसके बाद तो मानो दर्शकों का सैलाब सा आ गया. एक साथ कई इवेंट शुरू हो गए. कबड्डी, एथेलेटिक्स, ट्रैक्टर लोडिंग अन-लोडिंग, साइकिलिंग, जिम्नास्टिक, दिव्यांगों द्वारा हैरतअंगेज कारनामों वाले करतब एवं अन्य प्रतियोगिताएँ संपन्न हुईं. स्टेडियम लगभग खचाखच भरा हुआ था. इसी बीच हाथियों एवं ऊँटों की दौड़ शुरू हुई जिसे मैंने अपनी जीवन में पहली बार देखा, इस अनुभव को मैं अपने शब्दों में बयाँ नहीं कर सकता. एक सौ बावन पतंगों को एक डोर में उड़ते हुए देख कर सभी अचंभित थे. वहाँ पर देश-विदेश से आए फोटोग्राफर भी उड़ती हुई पतंगों की तस्वीर लेने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे थे. सभी तरह की प्रतियोगिताएँ समाप्त हो जाने के बाद, बुलेट मोटर-साईकल पर महिला, पुरुष एवं एक महिला-पुरुष जोड़ी ने साहसिक करतब दिखा कर सभी दर्शकों को दाँतों तले उंगलियाँ दबाने पर मजबूर कर रहे थे, तभी एक पैरा-ग्लाइडर नीले आकाश में उड़ता दिखा. सभी दर्शकों की नज़रें आसमान में उड़ते उस पैरा-ग्लाइडर पर जम गई. पैरा-ग्लाइडर उड़ाने वाला भी पैरा-ग्लाइडर को पतंगों की डोर के कभी नीचे से तो कभी ऊपर से उड़ा कर सभी दर्शकों के होश उड़ा रहा था.
यात्रा समाप्ति पूर्व:
इन सब के बीच मैंने वहाँ के मेले का भी अवलोकन किया. सैकड़ों की संख्या में कार एवं मोटर-साईकल अलग-अलग स्टैंड पर व्यवस्थित ढंग से लगे हुए थे. तरह-तरह के पकवान, पेय पदार्थ, खिलौने एवं अन्य स्टॉल सजे हुए थे. स्टेडियम एवं उसके आस-पास की सफाई देख कर मुझे नहीं लगा कि मैं किसी गाँव के खेल मेले में आया हुआ हूँ. शाम को रंगारंग कार्यक्रम होने वाला था, परन्तु मुझे वापस कपूरथला जाना था. अब मुझे 82वाँ किला रायपुर खेल मेला 2018 को अलविदा कहना पड़ा और दिलों में वहाँ की ढेर सारी यादों के साथ अपने गंतव्य स्थान के लिए इस उम्मीद से प्रस्थान किया कि अगले साल फिर आयेंगे.
किला रायपुर खेल मेला का संक्षिप्त परिचय:
लुधियाना से करीब 19 कि.मी. की दूरी पर है किला रायपुर, यहाँ के एक समाज सेवक इंदर सिंह ग्रेवाल ने वार्षिक मनोरंजक बैठक की कल्पना की, जिसमें किला रायपुर के आसपास के क्षेत्रों के किसानों के शारीरिक सहनशक्ति का परीक्षण किया जाए। इस विचार ने 1933 में किला रायपुर खेल मेले की नींव रखी और आज इसे पूरे विश्व में निर्विवाद रूप से "ग्रामीण ओलंपिक" या "मिनी ओलंपिक" के रूप में जाना जाता है।
किला रायपुर खेल मेला आमतौर पर फरवरी के पहले सप्ताह के अंत में ग्रेवाल स्पोर्ट्स एसोसिएशन द्वारा आयोजित किया जाता है। इस खेल मेले का एकमात्र उद्देश्य "स्वस्थ शरीर में स्वस्थ दिमाग", जो ओलंपिक खेलों के लैटिन में सूत्रवाक्य सिटियस, एल्टियस, फोर्टियस जिसका हिंदी अनुवाद "तेज़, उच्च, मजबूत" से प्रेरित है।
बैल-गाड़ी एवं घोड़ा-खच्चर की दौड़ों पर सन् 2014 से रोक लगी हुई है, परन्तु इस बार विशेष देख-रेख में कुत्तों की दौड़ का भी आयोजन किया गया।