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Thursday, January 1, 2015

सच

       






      सच


आँखों से मैंने जो भी देखा,
उसको सच माना मगर,
वो हमेशा सच ही होगा,
ऐसा भला होता है क्या?

जमीं और आसमां क्षितिज पर,
मिलते नज़र आते हैं मगर,
क्षितिज के पार नई दुनिया मिलेगी,
ऐसा भला होता है क्या?

रहते हैं वो इस फ़िराक में,
पड़ोसियों का घर कैसे जले, मगर,
घर जलेगा और वो बचेंगे,
ऐसा भला होता है क्या?

करनी ऐसी कि देखिए,
बोया है पेड़ बबूल का, मगर,
आशा करते हैं कि आम होगा,
ऐसा भला होता है क्या?

ज्ञान का अभाव है उनमें,
अँधेरे में तीर चलाते हैं मगर,
तीर हमेशा निशाने पर लगेगा,
ऐसा भला होता है क्या?

सुख-दुःख में कभी हम साथ थे,
अब वो दूर हो गए मगर,
नज़रें मिले और दिल में कसक न हो,
ऐसा भला होता है क्या?

वो जो चाहते हैं ,
उनको मिल जाता है मगर,
सब का नसीब उनके जैसा ही हो,
ऐसा भला होता है क्या?

- © राकेश कुमार श्रीवास्तव "राही"



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