चित्र इंटरनेट से साभार |
अंतरात्मा की आवाज़
दुनियादारी
के चक्कर में पड़ा हूँ,
स्वार्थी
बनकर जिये जा रहा हूँ,
जिम्मेदारी
का एहसास हुआ है जब से
अंतरात्मा की आवाज़ को सुनता नहीं हूँ।
दोहरा चरित्र जीता रहा हूँ,
सच
को झूठ कहता रहा हूँ,
अपनी
कामयाबी की खातिर
अंतरात्मा की आवाज़ को सुनता नहीं हूँ।
चरित्र-निर्माण
पर भाषण मैंने दिया है,
उन
मूल्यों पर कब, मैंने
जिया है,
सफलता
हथियाने के रास्ते पर जब से
चला,
अंतरात्मा की आवाज़ को सुनता नहीं हूँ।
खुद
पर मैंने अन्याय किया था,
बच्चे
जैसे मन का, क़त्ल किया था,
मन की शान्ति के खातिर
कब, अंतरात्मा की आवाज़
को सुना था।
अब,
मंदिर-मस्जिद
भटक रहा हूँ,
गुरु-मौलवियों
के चक्कर में पड़ा हूँ,
ये
मेरा क्या उद्धार करेंगे
यहाँ
कोई अंतरात्मा की आवाज़ को सुनता
नहीं है .
गर
चैन से जीना है सबको,
निर्मल
करो चित्त और मन को,
अंतरात्मा की आवाज़ को सुनकर
सभी
फैसले लेना है तुमको.
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव
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