इंटरनेट से साभार |
दिल की दास्ताँ
दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी,
छोटी-छोटी बातों में, यादें हैं हमारी,
कैसे सुनाऊं अपनी ,प्रेम-कहानी।
दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी।
बचपन की बातें, अब लगेगी बेमानी,
पर यहीं से शुरू हुई थी अपनी, प्रेम-कहानी,
मेरी जीत पर, तेरा मुस्कुराना,
मेरी हार पर, तेरी ऑंखें डबडबाना।
दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी।
मेरे रुमालों को, चुपके से चुराना,
प्यार से फिर मुझे, नई दे जाना,
तेरी उलझी लटों को, अपनी उंगली से सुलझाना,
मेरा काम था, बस तुमको ही ताकना।
दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी।
तेरे रिश्तेदारों का, तुम पर जुल्म ढाना,
हम दोनों के प्यार को नहीं, स्वीकारा ज़माना,
रस्मों-रिवाजों छोड़ तेरा, मुझे अपनाना,
इसी अदा पर मैं तो हो गया दीवाना।
दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी।
मुझे अपना कर जीवन, संघर्षों में डाला,
तिनका-तिनका जोड़ कर तुमने, मेरे घर को संभाला,
जिसने ठुकराया तुमको उनके बच्चों को तुमने पाला,
न किसी से शिकवा रखा, न किसी से तेरा रहा गिला ।
दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी।
- © राकेश कुमार श्रीवास्तव
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