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Saturday, June 14, 2014

सफलता

   
इंटरनेट से साभार 
 












           सफलता 

पक्षी अपने दो पंखों से
नील-गगन में उड़ता है,
हे मानव! तेरे पंख-असंख्य
फिर भी विफल हो, तू रोता है।

सपनों के पंख लगाकर तू
इन्द्रधनुष सजा जीवन में तू,
पूरा करना है सपनों को तो
क्यों सोकर वक्त बिताता है।

हे मानव! तेरे पंख-असंख्य
फिर भी विफल हो, तू रोता है।

हौसलों के पंख लगाकर तू
कर ले साकार सपनों को तू,
लाख बाधाएं हो जीवन में
तू कर्म करने से क्यूँ घबराता है।

हे मानव! तेरे पंख-असंख्य
फिर भी विफल हो, तू रोता है।

विश्वास का पंख लगाकर तू
कर्म में लगा दे तन-मन तू,
लक्ष्य तुम्हें मिल जाएगा
क्यूँ आशंकाओं से डरता है।

हे मानव! तेरे पंख-असंख्य
फिर भी विफल हो, तू रोता है।

अदृश्य पंखों से सजा खुद को
निराशावादी बनने से बचा खुद को,
सुनहरे अवसर खड़े हैं जीवन में
क्यों अवसर को यूँ खोता है।

हे मानव! तेरे पंख-असंख्य
फिर भी विफल हो, तू रोता है।

असफलता से न तू हार कभी
असफलता सफलता की सीढ़ी है,
जो खुद पर विश्वास करे जीवन में
उसको सफल करने में,
सारी कायनात लग जाती है।

हे मानव! तेरे पंख-असंख्य
फिर भी विफल हो, तू रोता है।

© राकेश कुमार श्रीवास्तव 







Wednesday, June 4, 2014

दिल की दास्तां

इंटरनेट से साभार 



















           दिल की दास्ताँ 

दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी,
छोटी-छोटी बातों में, यादें हैं हमारी,
कैसे सुनाऊं अपनी ,प्रेम-कहानी।

दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी। 

बचपन की बातें, अब लगेगी बेमानी,
पर यहीं से शुरू हुई थी अपनी, प्रेम-कहानी,
मेरी जीत पर, तेरा मुस्कुराना,
मेरी हार पर, तेरी ऑंखें डबडबाना।

दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी। 

मेरे रुमालों को, चुपके से चुराना,
प्यार से फिर मुझे, नई दे जाना,
तेरी उलझी लटों को, अपनी उंगली से सुलझाना,
मेरा काम था, बस तुमको ही ताकना। 

दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी। 

तेरे रिश्तेदारों का, तुम पर जुल्म ढाना,
हम दोनों के प्यार को नहीं, स्वीकारा ज़माना,
रस्मों-रिवाजों छोड़ तेरा, मुझे अपनाना,
इसी अदा पर मैं तो हो गया दीवाना।

दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी।

मुझे अपना कर जीवन, संघर्षों में डाला,
तिनका-तिनका जोड़ कर तुमने, मेरे घर को संभाला,
जिसने ठुकराया तुमको उनके बच्चों को तुमने पाला,
न किसी से शिकवा रखा, न किसी से तेरा रहा गिला ।

दिल की दास्ताँ, हमारी तुम्हारी,
कैसे समझेगी जानम, दुनिया ये सारी।

© राकेश कुमार श्रीवास्तव