गुजरे हुए वक्त के साये से, डर लगता है, तेरे बदले हुए तेवर से, डर लगता है, तुम किसी और के हो जाओगे , ये मालुम नहीं! मुझको अपने तकदीर से, डर लगता है। ग़मों के साये में जीना सीख लिया था मैंने, फिर से खुशियों का संसार दिखाया था तुमने, ताउम्र साथ निभाओगे, ये मालुम नहीं! फिर भी तुझे जीवन-साथी बनाया था मैंने। तन्हां रहना तो, अपनी थी किस्मत, खुशियों की महफ़िल मिली, तेरी थी रहमत, हम-सफर कब तक रहोगे, ये मालुम नहीं! माना हरेक बात जिससे मैं नहीं थी सहमत। दिल की बात कहने को बेचैन थी कब से, मेरे दरके हुए दिल की आवाज सुनोगे, ये आस थी तुम से, वक्त, मेरे लिए तेरे पास होगा, ये मालुम नहीं! इंतज़ार की इंतहा हो गई, बिदा लेती हूँ तुम से। आभासी दुनियाँ को अपना मत मानो, वास्तविक दुनियाँ को तुम पहचानो, मेरी बातों को कितना समझोगे, ये मालुम नहीं! तेरे जीवन का क्या हश्र होगा? ये तुम जानो।
जिंदगी यों ही संघर्षों में निकल गई, वक्त, मुठ्ठी में रेत की तरह फिसल गई, जो भी चाहा परिश्रम से मिला यारों, सफलता ही मेरी वजूद की दुश्मन बन गई। मैंने अपने-आप को खोकर पाया सब कुछ, अब रिश्तेदारी के नाम पर, बचा न अब कुछ, जो मेरे रुतबे को सलाम करते थे यारों, सम्मान के नाम पर, उन्हीं का सामान बचा है अब कुछ। सुख-दुःख में किसी के काम न आया, समय चक्र को समझ न पाया, अहंकार में जी रहा था यारों, अपना था जो वो हो गया पराया। अब मैं आशक्त पड़ा हुआ हूँ, दुःख-चिंता से घिरा हुआ हूँ, अब किसको आवाज़ दूँ यारों, अपनी नज़र में शर्मिंदा हुआ हूँ। मिल-जुल कर हम रहना सीखें, सब की इज्जत करना सीखें, जिंदगी अकेले जीने का नाम नहीं है यारों, सब को साथ लेकर जीना सीखें।
हम दोनों का घर एक हो, सुन्दर और सलोना ! हम दोनों के प्यार से महके, इस घर का हर कोना!! विश्वासों पर टिकी नींव हो, उस घर का क्या कहना! अहंकार की न दीवार कोई हो, मिलजुल कर है रहना!! खुले विचारों की द्वार-खिडकी हो, ऐसे घर में है रहना! खुशियों की छत सर पे हो, विपदा कभी पड़े ना!! प्रणय मिलन से दो फूल खिले हों, महके अपना घर-अँगना! सपनों का घर अपना ऐसा हो, एक-दूजे का साथ कभी छूटे ना!!